संवाददाता, पटनाहमें मत मारो मां. मुझे पढ़ना है. मुझे भीख नहीं मांगना. वह देखो मां, मेरी दोस्त स्कूल जा रही है. मुझे भी स्कूल जाने दो. कुछ इसी तरह का आग्रह चुनिया और मुनिया अपनी मां से कर रही थीं, लेकिन उनकी मां उनकी बातें सुनने को तैयार नहीं थी. बस उन्हेंभीख नहीं मांगने की बात पर पीटे जा रही थी. यह नजारा रहा गांधी मैदान का, जहां बिहार दिवस पर समाज कल्याण विभाग की ओर से लगे पवेलियन में सक्षम की ओर से ‘कैसा हो बचपन’ नाटक का मंचन किया गया. इसमें मुनिया और चुनिया नामक दो बेटियों की मां उसे गरीबी और अज्ञानता वश जबरन उनसे भीख मांगने को कहती है, लेकिन वे अपनी दूसरी सहेलियों की तरह पढ़ना और खेलना चाहती हैं. मत छीनो हमसे हमारा बचपनइसी बीच कुछ परियों का समूह बच्चों को अधिकारों की जानकारी देने आकाश से धरती पर उतरता है. वे बताती हैं कि बच्चों को सम्मान पाने का अधिकार है. उन्हें अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता का अधिकार है. इस तरह नाटक के जरिये शिक्षा और स्वास्थ्य को मुख्य रूप से बताते हुए इसकी जानकारी देते हुए बचपन नहीं छीनने का संदेश दिया गया. अंत में समाज सेवी वहां आते हैं और सरकार द्वारा संचालित मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना की जानकारी देते हैं. वे बताते हैं कि सरकार भिखारियों को पुनर्वासित कर रही है. इसके लिए उन्हें रोजगार से जोड़ा जा रहा है. साथ ही उनके बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है.
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बिहार दिवस : बच्चों के अधिकारों का हनन है भीख मांगना
संवाददाता, पटनाहमें मत मारो मां. मुझे पढ़ना है. मुझे भीख नहीं मांगना. वह देखो मां, मेरी दोस्त स्कूल जा रही है. मुझे भी स्कूल जाने दो. कुछ इसी तरह का आग्रह चुनिया और मुनिया अपनी मां से कर रही थीं, लेकिन उनकी मां उनकी बातें सुनने को तैयार नहीं थी. बस उन्हेंभीख नहीं मांगने की […]
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