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जन्म के पहले सप्ताह में अधिकतर बच्चों की मौत

पटना: सूबे में हर साल करीब 27 लाख बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें लगभग एक लाख की मौत हो जाती है. राज्य में रोजाना 250 बच्चे वैसे कारणों से मौत के शिकार होते हैं,जिनकी रोकथाम की जा सकती है. हालांकि बिहार में पिछले पंद्रह साल में शिशु मृत्यु दर 68 (एनएफएचएस-2 रिपोर्ट) से घट कर […]

पटना: सूबे में हर साल करीब 27 लाख बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें लगभग एक लाख की मौत हो जाती है. राज्य में रोजाना 250 बच्चे वैसे कारणों से मौत के शिकार होते हैं,जिनकी रोकथाम की जा सकती है.

हालांकि बिहार में पिछले पंद्रह साल में शिशु मृत्यु दर 68 (एनएफएचएस-2 रिपोर्ट) से घट कर 57 (एनएफएचएस-3 रिपोर्ट) और 43 (एसआरएस 2012) हो गयी है. इनमें अधिकतर मौत जन्म के पहले सप्ताह में होती है. जन स्वास्थ्य अभियान बिहार के संयोजक डॉ शकील ने सोमवार को आयोजित बैठक में ये तथ्य पेश किये. बैठक में मौखिक विवेचना से हासिल शिशु मृत्यु दर से जुड़े तथ्यों को साझा किया गया.

उसकी समीक्षा की गयी. जन स्वास्थ्य अभियान ने बिहार के दस जिलों के 19 प्रखंडों के 38 सब हेल्थ सेंटर में शिशु मृत्यु दर का अध्ययन किया. अध्ययन का मूल मकसद सामाजिक-आर्थिक, जनसांख्यिकीय और पर्यावरणीय कारकों का पता लगाना था,जो बच्चों के जिंदा रहने के लिए जरूरी है. अध्ययन में पता चला कि तीन चौथाई लोगों ने बीमार शिशु को घर से स्वास्थ्य सेवा केंद्र तक पहुंचाने के लिए किराये पर निजी वाहनों का इंतजाम किया. महज पांच फीसदी लोगों ने बीमार शिशु का इलाज कराने के लिए एंबुलेंस का इस्तेमाल किया. बैठक में यूनिसेफ, सिविल सोसाइटी, स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता व स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य लोग मौजूद थे.

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