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इस साल भी मरीजों को नहीं मिल सकेगा वायरोलॉजिकल लैब
पटना: स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही कहें या सुस्ती. दो साल के लंबे अंतराल के बाद भी सूबे के मरीजों को वायरोलॉजिकल जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है. साल-दर-साल एइएस (एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिंड्रोम) के बढ़ते खतरे को देखते हुए राज्य सरकार ने इसको लेकर योजना बनायी थी. पिछले साल तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ […]
पटना: स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही कहें या सुस्ती. दो साल के लंबे अंतराल के बाद भी सूबे के मरीजों को वायरोलॉजिकल जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है. साल-दर-साल एइएस (एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिंड्रोम) के बढ़ते खतरे को देखते हुए राज्य सरकार ने इसको लेकर योजना बनायी थी. पिछले साल तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन की पहल पर राशि का आवंटन भी हुआ, लेकिन सूबे के किसी भी मेडिकल कॉलेज में इसकी सुविधा शुरू नहीं हो पायी है.
बिहार के छह मेडिकल कॉलेजों में वायरोलॉजिकल लैब बनाये जाने की रफ्तार को देखते हुए उम्मीद है कि इस साल भी मरीजों को लैब की सुविधा नहीं मिल पायेगी. हालांकि पीएमसीएच प्रशासन का दावा है कि मार्च तक लैब का काम पूरा कर अप्रैल से जांच शुरू कर दी जायेगी. पिछले साल मुजफ्फरपुर में एइएस के बढ़े प्रकोप के बाद तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ हुई बैठक में लैब बनाने के प्रस्ताव सहमति बनी थी. इसके बाद पीएमसीएच में स्टेट वायरोलॉजिकल लैब व एम्स पटना में रीजनल सेंटर बनाने का निर्णय लिया गया था. इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से पीएमसीएच को एक करोड़ 30 लाख की राशि भी दी गयी है. साथ ही वहां के चिकित्सकों को ट्रेनिंग के लिए भेजा गया है. अधिकारियों के मुताबिक एक लैब को तैयार करने में लगभग साढ़े चार करोड़ का खर्च आयेगा. समझौते के मुताबिक इस खर्च का 25 प्रतिशत बिहार सरकार को वहन करना था, लेकिन जेइ व एइएस का समय आनेवाला है और अब तक लैब तैयार नहीं हो पाया है.
क्या है वायरोलॉजिकल लैब
सूबे के मेडिकल कॉलेजों में वायरोलॉजिकल लैब की सुविधा नहीं रहने के कारण वायरल बीमारियों की जांच के लिए बार-बार सैंपल अन्य राज्यों में भेजा जाता है. लैब की स्थापना के बाद जेनेटिक स्तर पर वायरस की जांच हो पायेगी. इसके बाद बीमारी की पहचान करना आसान होगा. फिलहाल बिहार में वायरस को सिरोलॉजी स्तर पर जांच की जाती है. इसमें कई तथ्य पकड़ में नहीं आते हैं, लेकिन वायरोलॉजिकल लैब की स्थापना के बाद जेनेटिक स्तर पर जांच होगी. इसके बाद सबसे एडवांस वायरल कल्चर किया जायेगा.
वायरलॉजिकल लैब बनने से हम जेनेटिक स्तर पर वायरस की जांच कर पायेंगे. इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से पैसों का आवंटन हुआ है, जिसके बाद परिसर में काम भी शुरू हो चुका है और संभावना है कि मार्च तक काम खत्म हो जायेगा और अप्रैल से जांच भी शुरू हो जायेगी.
डॉ विजय कुमार, प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग,पीएमसीएच
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