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बिजली के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत

पटना: बिहार में बिजली के क्षेत्र में सुधार हुए हैं. पिछले कुछ सालों में सरकार ने सार्थक पहल किये हैं. परंतु अभी भी यहां की दो-तिहाई आबादी बिजली की सुविधा से महरूम है. जितनी बिजली यहां मौजूद है, उसका काफी बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है. बिजली के क्षेत्र में मौजूद कई तरह की बाधाएं […]

पटना: बिहार में बिजली के क्षेत्र में सुधार हुए हैं. पिछले कुछ सालों में सरकार ने सार्थक पहल किये हैं. परंतु अभी भी यहां की दो-तिहाई आबादी बिजली की सुविधा से महरूम है. जितनी बिजली यहां मौजूद है, उसका काफी बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है.

बिजली के क्षेत्र में मौजूद कई तरह की बाधाएं और अक्षमता के कारण समुचित तरीके से परिचालन नहीं हो पाता है. राज्य को समुचित तरीके से ऊर्जा के क्षेत्र में योजना बना कर अमल करने की जरूरत है, तभी सही तरीके से विकास हो पायेगा. विश्व बैंक की तरफ से ‘ऊर्जा के आधारभूत विकास’ पर शुक्रवार को एक विशेष रिपोर्ट जारी की गयी. आद्री के सभागार में इस रिपोर्ट से संबंधित एक प्रस्तुतिकरण दिया गया. इसे विश्व बैंक की ऊर्जा एक्सपर्ट मनी खुराना, लीड अर्थशास्त्री शियोली पारगल, अर्थशास्त्री सुदेशना घोष बनर्जी और नंदिता राय ने तैयार किया है.

राज्य को करने चाहिए ये चार सुधार

ऊर्जा वृद्धि के लिए

समुचित प्लान तैयार करने की जरूरत है. इसमें वैसे क्षेत्रों को चिन्हित करने की जरूरत है, जहां बिजली का संकट ज्यादा है. इन क्षेत्रों को विशेष तौर से फोकस करके यहां ऊर्जा का विस्तार करना चाहिए.

क्षमता वर्धन

बिजली क्षेत्र में क्षमता वर्धन करने की सबसे ज्यादा जरूरत है. निजी क्षेत्रों को भी इसमें बड़े स्तर पर शामिल करना चाहिए. एक ठोस रणनीति तैयार कर निजी क्षेत्र को इसमें जोड़ना चाहिए.

ऊर्जा का एकाउंटिंग और ऑडिट

बिजली क्षेत्र में एकाउंटिंग और ऑटिड की सबसे ज्यादा जरूरत है. मीटर रीडिंग और बिलिंग पर समुचित ध्यान देने की जरूरत है. इसमें काफी बड़े स्तर पर गड़बड़ी होती है. मैनेजमेंट इंफॉरमेश सिस्टम (एमआइएस) तैयार करने की जरूरत है.

कर्मचारियों को प्रोत्साहन

बिजली विभाग से जुड़े और इसमें काम करने वाले लोगों को उचित ट्रेनिंग देकर इन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है. कौशल वृद्धि के लिए निरंतर ट्रेनिंग देने की जरूरत है.

लागत और वसूली में काफी पीछे

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में ऊर्जा में जितनी लागत आती है, उसके हिसाब से राजस्व की वसूली नहीं हो पाती है. लागत और राजस्व वसूली में लगातार अंतर बढ़ रहा है. 2004 में यह क्षति 20 पैसा प्रति किलोवॉट था, जो 2013 में बढ़ कर 1.20 रुपये पहुंच गया. पिछले 10 सालों में लागत में छह गुणा की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस अनुपात में टैरिफ या बिजली दर में बढ़ोतरी नहीं हुई. ऐसे तो यह रिपोर्ट पूरे देश के ऊर्जा क्षेत्र की मौजूदा हालत पर तैयार की गयी थी, लेकिन बिहार को इसमें खासतौर से फोकस किया गया है. हालांकि बिहार में 2013 तक के बिजली की स्थिति को ही इसमें उजागर किया गया है. समग्र रूप से तकनीकी और वाणिज्य (एटी एंड सी) स्तर पर वितरण में क्षति का अनुपात देश में सबसे ज्यादा बिहार में है. यहां यह 27 प्रतिशत है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 2.4 प्रतिशत है.

राज्य में प्रति व्यक्ति खपत सबसे कम

बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत सबसे कम 144 किलोवॉट है. जबकि राष्ट्रीय औसत 917 किलोवॉट प्रति व्यक्ति है. बिहार में यह खपत सबसे देश में सबसे कम है. बिजली डिस्ट्रीब्यूशन के क्षेत्र में बिहार की हालत काफी लचर होने से डिस्ट्रीब्यूशन लॉस सबसे ज्यादा 21 प्रतिशत है. हालांकि 2003 की तुलना में इसमें 10 फीसदी सुधार हुआ है. अभी भी इस मामले में देशभर में काफी पीछे है. प्रत्येक वर्ष करीब 30 प्रतिशत डिस्ट्रीब्यूशन में बिजली की क्षति होती है. आंतरिक स्नेत कमजोर होने के कारण बिजली क्षेत्र कमजोर है. बिहार में बॉयो-मास और भूसा से बिजली तैयार करने की काफी संभावनाएं हैं. काफी बड़ी संख्या में यहां बॉयो मास यहां मौजूद है. राज्य में कुछ स्थानों पर कुछ निजी क्षेत्रों ने भूसा से बिजली बनाने का प्लांट लगाया है. इस तरह की पहल को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि बिजली की बड़ी जरूरत को पूरी करने में मदद मिले.

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