पटना. उदारीकरण का सबसे नकारात्मक प्रभाव विज्ञान के अनुसंधान पर पड़ा है. संसाधनों की कमी के कारण कई छात्र बाहर हो गये. वर्तमान में 70-80 हजार वैज्ञानिक विदेशों में काम कर रहे हैं. जगजीवन राम संसदीय अध्ययन व राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित परिचर्चा ‘ प्रतिरोध की संस्कृति ‘ को संबोधित करते हुए केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान,रूड़की के मुख्य वैज्ञानिक यादवेंद्र ने कही. उन्होंने कहा कि आर्थिक संसाधन के अभाव में विज्ञान रिसर्च कम होते गये. विज्ञान का जुड़ाव आम जनता से कम हो गया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरे देश में महज एक बिल्डिंग इंस्टीच्यूट है. विज्ञान में जाति,लिंग व वर्ग की समस्या बनी हुई है. आज वहां एक भी योग्य वैज्ञानिक दलित वर्ग से नहीं आये,जो निदेशक बने. उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर कई देशों में चल रहे प्रतिरोध पर प्रकाश बिहार संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष व कवि आलोक धन्वा ने द्वितीय विश्व युद्घ की चर्चा करते हुए कहा कि यह वैश्विक लोकतंत्र के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे बड़ी घटना रही है. इस युद्घ ने विश्व चिंतन की दिशा ही बदल दी. विधान पार्षद प्रो रामवचन राय ने कहा कि यहां दो स्तरों पर प्रतिरोध की संस्कृति रही है. एक सत्ता की संस्कृति व दूसरी कर्म की संस्कृति. परिचर्चा में कामेश्वर झा, मनोज श्रीवास्तव, संतोष यादव, अरुण नारायण एवं अख्तर हुसैन ने अपने विचार व्यक्त किये. संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने धन्यवाद ज्ञापन किया. परिचर्चा में शेखर, विपेंद्र, कुमार गौरव, फैयाज इकबाल, ममीत प्रकाश, विनीत, राकेश तथा संस्थान के सदस्य गण उपस्थित रहे.
उदारीकरण का सबसे नकारात्मक प्रभाव विज्ञान के अनुसंधान पर : यादवेंद्र
पटना. उदारीकरण का सबसे नकारात्मक प्रभाव विज्ञान के अनुसंधान पर पड़ा है. संसाधनों की कमी के कारण कई छात्र बाहर हो गये. वर्तमान में 70-80 हजार वैज्ञानिक विदेशों में काम कर रहे हैं. जगजीवन राम संसदीय अध्ययन व राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित परिचर्चा ‘ प्रतिरोध की संस्कृति ‘ को संबोधित करते हुए केंद्रीय भवन […]
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