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साइड इफेक्ट: सुस्त गवर्नेस, खाली होता खजाना
पटना: प्रदेश की मांझी सरकार राजनीतिक कामों में इतनी उलझ गयी कि राजकाज के काम पीछे छूट गये. खर्च तो सरकार बराबर कर रही है, पर आमदनी की रफ्तार धीमी पड़ी है. इसका असर राज्य के खजाने पर भी दिखायी पड़ रहा है. टैक्स वसूली का काम सुस्त पड़ा हुआ है. हालत यह है कि […]
पटना: प्रदेश की मांझी सरकार राजनीतिक कामों में इतनी उलझ गयी कि राजकाज के काम पीछे छूट गये. खर्च तो सरकार बराबर कर रही है, पर आमदनी की रफ्तार धीमी पड़ी है. इसका असर राज्य के खजाने पर भी दिखायी पड़ रहा है. टैक्स वसूली का काम सुस्त पड़ा हुआ है. हालत यह है कि चालू वित्तीय वर्ष खत्म होने में महज डेढ़ माह बचा है, जबकि टैक्स वसूली लक्ष्य से 40 } फीसदी पीछे है.
सरकार ने 2014-15 में 25 हजार 662 करोड़ रुपये टैक्स वसूलने का लक्ष्य रखा है. अब तक महज 15 हजार 500 करोड़ रुपये (60 फीसदी) टैक्स का संग्रह हो पाया है. चिंता की बात यह है कि वसूली की जो रफ्तार है, उसमें टैक्स वसूली का लक्ष्य पाना मुमकिन नहीं दिखता है. इससे सरकारी खजाने में करीब 400 करोड़ कम आयेंगे. इस शॉर्ट-फॉल (टैक्स में कटौती) का असर योजनाओं के पूरे होने से लेकर वेतन भुगतान तक पर पड़ सकता है. वित्तीय मामलों के जानकारों का कहना है कि अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो 28 फरवरी को सरकारी खजाने में मात्र 200-300 करोड़ रुपये बचेंगे.
टैक्स कलेक्शन में हर विभाग पीछे
राज्य में आंतरिक राजस्व का सबसे बड़ा स्नेत वाणिज्यकर है. चालू वित्तीय वर्ष में वाणिज्यकर के रूप में करीब 17 हजार करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य तय किया गया था. लेकिन, इस मद में अब तक करीब 65 फीसदी ही कलेक्शन हो पाया है. हालांकि, विभागीय अधिकारी दावा कर रहे हैं कि मार्च के अंत तक हर हाल में लक्ष्य हासिल कर लिया जायेगा. इसके अलावा उत्पाद, निबंधन, परिवहन और भू-राजस्व से सरकार को टैक्स प्राप्त होता है. इन विभागों का औसत टैक्स कलेक्शन निर्धारित लक्ष्य से करीब 40 फीसदी कम है. गैर कर राजस्व (नॉन-टैक्स रेवेन्यू) से भी सरकार को आमदनी होती है. इस मद से चालू वित्तीय वर्ष में करीब तीन हजार करोड़ रुपये प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसमें अभी तक करीब 40 फीसदी ही कलेक्शन हो पाया है.
पिछले साल से 5000 करोड़ ज्यादा लक्ष्य
चालू वित्तीय वर्ष में आंतरिक राजस्व के रूप में 25,662 करोड़ रुपये जमा करने का जो लक्ष्य तय है, वह पिछले वित्तीय वर्ष से करीब पांच हजार करोड़ ज्यादा है. पिछले वर्ष 20,962 करोड़ रुपये टैक्स जमा करने का लक्ष्य था, जिसमें 19,950 करोड़ प्राप्त हुए थे. यह उपलब्धि संतोषजनक थी. राजनीतिक उथल-पुथल के बीच वित्त विभाग में पूर्णकालिक मंत्री नहीं हैं. विजेंद्र प्रसाद यादव के इस्तीफे के बाद वित्त विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के जिम्मे है. पिछले एक दशक में योजना आकार में तो बढ़ोतरी हुई है, लेकिन उस रफ्तार से आंतरिक राजस्व नहीं बढ़ा है. यह बिहार के लिए बड़ी चुनौती रही है.
केंद्र से भी सहायता में कटौती
चालू वित्तीय वर्ष में केंद्रीय कर से राज्य को मिलनेवाले शेयर में भी काफी कमी आयी है. 2014-15 में राज्य को केंद्रीय कर से करीब 42 हजार करोड़ 14 किस्तों में मिलने थे. पर, अब तक लगभग 31 करोड़ ही मिले हैं. इनमें करीब छह हजार करोड़ की कटौती की आशंका है. केंद्र प्रायोजित योजना और केंद्रीय योजना मद में भी करीब 12 हजार करोड़ कम मिले हैं.
विभागों के खर्च की रफ्तार बढ़ी
राज्य में विभागों के पैसा खर्च करने की रफ्तार पिछले साल से बेहतर हुई है. जनवरी के अंत तक सभी 41 विभागों ने 72.91} रुपये खर्च कर दिये थे. यह पिछले साल से करीब 23} ज्यादा है. खर्च की स्थिति अच्छी है, लेकिन टैक्स कलेक्शन की रफ्तार ऐन मौके पर धीमा होने से वित्तीय समस्या खड़ी हो सकती है.
ऐसी नौबत आयी क्योंकि..
राजनीतिक घटनाक्रम से ब्यूरोक्रेसी में शिथिलता
निरंतर मॉनिटरिंग का अभाव
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी
अर्थव्यवस्था की रफ्तार थोड़ी मंद
बड़े पुल, सड़क व अन्य आधारभूत संरचना के निर्माण में सुस्ती
होगा चौतरफा असर
योजनाओं के आवंटन में कटौती
संकट गहराया तो वेतन भुगतान पर भी असर
केंद्रीय सहायता में कमी
वर्तमान वर्ष के योजना आकार में कटौती
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