पटना: देश की राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों में पार्टी संविधान के विपरीत एकाधिकार प्राप्त सुप्रीमो संस्कृति हावी होती जा रही है. इससे दलों में आंतरिक लोकतंत्र समाप्त होता जा रहा है. लगभग सभी पार्टियों में उम्मीदवारों का चयन पार्टी संविधान से अलग हट कर शक्ति संपन्न व्यक्ति जिन्हें सुप्रीमो की संज्ञा दी गयी है, उनके द्वारा की जाती है. फलस्वरूप निर्वाचित प्रतिनिधि की प्रतिबद्धता पार्टी या पार्टी की नीतियों, सिद्धांतों के प्रति नहीं, बल्कि व्यक्ति विशेष के प्रति ज्यादा हो गयी है. यही से लोकतंत्र की समाप्ति की शुरुआत होती है. ये बातें नेशनल इलेक्शन वाच व एसोसिएशन फॉर डिमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के ‘राजनीतिक दल एवं सरकार में लोकतांत्रिक परंपराओं की उपेक्षा’ पर संवाद कार्यक्रम में कही गयीं.
कार्यक्रम के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में अर्थशास्त्री एमएन कर्ण ने कहा कि राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं के चयन के तरीके, संगठन की गाइडलाइन का कितना पालन होता है, इस पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए, तभी लोकतंत्र मजबूत होगा.
बिहार इलेक्शन वाच के समन्वयक राजीव कुमार ने कहा कि बिहार में सक्रिय राजनीतिक दलों द्वारा न तो साहित्य का प्रकाशन किया जाता है, न ही निर्धारित संख्या में कार्यकारिणी का गठन किया जाता है. महिलाओं की समुचित भागीदारी भी नहीं होती है. पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के अभाव से संसदीय लोकतंत्र लगातार कमजोर हो रहा है. इलेक्शन वाच के राष्ट्रीय समन्वयक जगदीश छोकर ने कहा कि राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र कायम करने के लिए कानून बनाये जाने की आवश्यकता है. इस दिशा में लंबा संघर्ष करना होगा क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं करना चाहता है.