नयी दिल्ली: बिहार की राजनीतिक रस्साकस्सी में भाजपा ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति पर काम कर रही है. वह खुलकर जीतन राम मांझी को फ्लोर पर समर्थन करने की घोषणा से कतरा रही है. भाजपा को भरोसा था कि मांझी 30 विधायकों का जुगाड़ कर लेंगे, लेकिन जदयू द्वारा विधायकों की परेड के बाद यह तय हो गया है कि मांझी के साथ इतने विधायकों का आना संभव नहीं है. इसलिए भाजपा विधानसभा के पटल पर मांझी को समर्थन देकर अपनी किरकिरी नहीं करा सकती है.
भाजपा की पूरी कोशिश जदयू-बनाम-जदयू बनाने की रही है. चूंकि मांझी को अब जदयू से बाहर कर दिया गया है, इसलिए भी अब भाजपा की ओर से दूसरे प्लान पर काम किये जाने की चरचा है. सूत्रों के मुताबिक भाजपा की कोशिश मांझी को बचाने से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को डैमेज करने की रही है. पार्टी के आला नेता इस बात से भयभीत बताये जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री बनते ही नीतीश कुमार कुछ वैसी घोषणा न कर दें, जिसका प्रभाव राष्ट्रीय फलक पर दिखे. ऐसा होने पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसलिए भाजपा की एक कोशिश नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने से रोकने की है. वहीं दूसरी कोशिश इस मामले को ज्यादा दिनों तक खींचकर नीतीश कुमार के खिलाफ मांझी द्वारा बयान दिलवाने की भी बतायी जा रही है. भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने इस मामले में भाजपा का हाथ होने से पूरी तरह इनकार करते हुए कहा कि यह मामला मांझी और नीतीश कुमार के बीच का है. मांझी के साथ जिस तरह का व्यवहार नीतीश कुमार ने किया है वह उचित नहीं है.
चूंकि राज्यपालों का दो दिनों का सेमिनार 11 और 12 फरवरी को दिल्ली में है, इसलिए ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि राज्यपाल दो दिन के बाद ही पटना पहुंचेंगे. उसके बाद ही किसी तरह का फैसला वे लेंगे. इस बीच वह प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से भी सलाह-मशविरा कर सकते हैं. मांझी को लेकर भाजपा का एक धड़ा आश्वस्त नहीं दिख रहा है. एक धड़ा राष्ट्रपति शासन लगाने के पक्ष में भी बताया जा रहा है. हालांकि, बहुमत को दरकिनार कर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश इतना आसान नहीं है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक इसके लिए प्लान और प्लॉट तैयार किया जा सकता है. विधानसभा में बहुमत के दौरान अव्यवस्था या गड़बड़ी फैलने पर राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं. वहीं विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने पर भी मंथन किया जा रहा है.
गौरतलब है कि मांझी जबतक जदयू में थे, तबतक भाजपा की सहानुभूति थी, लेकिन जदयू से निकाले जाने के बाद मांझी के प्रति भाजपा की सहानुभूति घटती जा रही है. पार्टी नेताओं का मानना है कि मांझी जदयू में रहकर जदयू का ज्यादा नुकसान कर सकते थे, न कि जदयू के बाहर आकर. इसलिए भाजपा की कोशिश मांझी सरकार बचाने से ज्यादा नीतीश कुमार की सरकार न बने, इसमें है.