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मसाले की खेती के लिए मिलता है अनुदान
पटना : बिहार की जलवायु पांच किस्म की मसाला फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसमें हल्दी, मिर्च, धनिया, आदी और मेथी प्रमुख हैं. यहां हल्दी, मिर्च और मेथी की खेती सबसे ज्यादा होती है, जबकि धनिया सामान्य रूप से उगाये जाने वाली फसल में आती है. मसाला फसलों को प्रोत्साहित करने के […]
पटना : बिहार की जलवायु पांच किस्म की मसाला फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसमें हल्दी, मिर्च, धनिया, आदी और मेथी प्रमुख हैं. यहां हल्दी, मिर्च और मेथी की खेती सबसे ज्यादा होती है, जबकि धनिया सामान्य रूप से उगाये जाने वाली फसल में आती है.
मसाला फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग के आत्मा की तरफ से किसानों को हर तरह की जानकारी दी जाती है. साथ ही किसानों को अनुदानित दर पर इन फसलों के बीज भी दिये जाते हैं. इसके अलावा लागत पर अनुदान भी मिलता है.
मसालों का बीज प्राप्त करने के लिए प्रखंड या जिला स्थित आत्मा के कार्यालय में किसान संपर्क कर सकते हैं या जिला स्तर पर मौजूद सहायक निदेशक हार्टिकल्चर के पास भी आवेदन कर सकते हैं. किसानों को ‘मुख्यमंत्री बागवानी मिशन’ के माध्यम से भी अनुदान समेत अन्य सहायता प्रदान करने की योजना है. इसी योजना के तहत सबसे ज्यादा मसाला खेती को अनुदान और प्रोत्साहन दिया जाता है.
मसाला खेती के लिए 35 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत आती है. इस लागत के आधार पर किसानों को 50 फीसदी का अनुदान दिया जाता है. इसके तहत अनुदान प्राप्त करने के लिए किसान जिला में मौजूद सहायक निदेशक (बागवानी) कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं. हॉर्टीकल्चर कार्यालय जाकर भी बागवानी मिशन के तहत मसाला खेती की समुचित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
हल्दी की खेती
हल्दी उष्ण जलवायु की फसल है. फसल के उचित विकास के लिए गर्म और नम जलवायु सबसे उपयरुक्त होती है. फसल की गांठ बनते समय 25 से 30 डिग्री से तापमान उचित होता है. इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास युक्त बलुई दोमट से हल्की दोमट मिट्टी सबसे उचित है. खेत की चार बार जुताई करनी चाहिए. अंतिम जुताई के समय गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिला देना चाहिए. इसमें सामान्य रूप से सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन गांठ बनते समय या सितंबर-अक्टूबर में एक-दो सिंचाई जरूरत के अनुसार कर देनी चाहिए. इसकी बुआई का सबसे उत्तम समय 15 से 31 मई है. एक हेक्टेयर में 30-35 क्विंटल प्रकंद की जरूरत होती है. हल्दी की फसल के लिए कुछ अच्छे उन्नत प्रभेद भी हैं. इसमें राजेन्द्र सोनिया, आरएच 5, आरएच 9/10, आरएच 13/90, एनडीआर 18 प्रमुख है.
मिर्च की खेती
राज्य में हल्दी के बाद सबसे ज्यादा मिर्च की खेती होती है. उचित जल निकासी वाली दोमट भूमि इसके लिए सबसे अच्छी होती है. तीन-चार बार खेतों की बुआई से पहले जुताई करना आवश्यक होता है. प्रति हेक्टेयर मिर्च की खेती के लिए 1 से 1.50 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. मिर्च की खेती के लिए 8-10 टन कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए. पौधों की जड़ों की समुचित विकास के लिए निकाई-गुड़ाई अधिक जरूरी होता है. शीतकालीन मौसम में मिर्च की फसल में सिंचाई की जरूरत बहुत कम पड़ती है. दिसंबर से फरवरी में सिंचाई की जा सकती है. ग्रीष्म कालीन खेती के लिए 10-15 दिन में सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. इसे साल में कभी भी लगाया जा सकता है. इसके अच्छे किस्मों में पूसा ज्वाला, कल्याणपुर चमन, कल्याणपुर चमत्कार, कल्याणपुर-1, कल्याणपुर-2, सिंदूर, आंध्रा ज्योति, भाग्य लक्ष्मी, जवाहर-218, पंजाब लाल, पूसा सदाबहार प्रमुख हैं.
मेथी की खेती
मेथी ऐसी मसाला फसल है, जिसकी हरी पत्तियां सब्जी के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है. हल्की दोमट मिट्टी (जिसमें जल निकासी का उचित प्रबंध हो) सबसे अच्छी मानी जाती है. खेत की एक गहरी जुताई करते हैं, फिर पांच फारा से जुताई करते हैं और हरेक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल और मिट्टी भुर-भुरी बना लेते हैं. इसके बीज को रोपने से पहले इसका उपचार करना काफी फायदेमंद साबित होता है.
इसके लिए ट्राइकोडरमा विरीडी नामक प्राकृतिक फफूंदनाशी की पांच ग्राम दवा प्रति किलोग्राम को बीज में अच्छे से मिलाकर इसकी बुआई करनी चाहिए. इसकी बुआई के लिए सबसे अच्छा समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर होता है. इस समय बोई गई फसल से उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है. खेती की अंतिम जुताई के समय 100 क्विंटल कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर में डालकर मिला देना चाहिए. मेथी की अच्छी उपज के लिए इसकी दो से तीन बार सिंचाई करनी चाहिए. पहली बुआई के 22-25 दिनों के बाद और बाद की मौसम और मिट्टी के प्रकार के अनुसार जरूरत पड़ने पर सिंचाई करनी चाहिए. इसकी बेहतर किस्मों में राजेंद्र क्रांति, एचएम 444, पूसा गुच्छेदार, यूएम 305 प्रमुख है.
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