फोटो कथा के समापन पर भक्तों की उमड़ी भीड़, निकाली गयी झांकीसंवाददाता, पटनागरीब सुदामा, निरीह कदापि नहीं थे, जिस प्रकार की दीन-दशा का वर्णन मिलता है, वह मात्र उनका संतोष था. अगर ऐसा नहीं होता, तो वह अपने मित्र के पास जा कर बहुत पहले संपन्न हो सकते थे. उनकी पत्नी को भले ही मित्रता की जानकारी नहीं थी. लेकिन, संतोषी सुदामा तो यह अच्छी तरह जानते थे कि उनका मित्र द्वारिका का नाथ है. यह कहना है महाराज गोपेश जी महाराज की. नागा बाबा ठाकुरबाड़ी में शुक्रवार को श्रीमद्भागवत कथा का समापन किया गया. अंतिम दिन महाराज ने कृष्ण-सुदामा चरित्र व श्री शुकदेव की कथा सुनायी. कथा सुन सभी श्रोता भावविभोर हो गये. उन्होंने बताया कि सुदामा का संतोष और भगवान की उदारता वंदनीय व प्रेरणास्पद रहेगी. महाराज ने कहा कि सुदामा का संतोष जीवन पर्याप्त बना रहा. वह कठिन परिस्थितियों में भी विचलित नहीं हुए. वृद्धावस्था में यदि पत्नी लोगों के बताने के बाद उन्हें द्वारिकाधीश के पास जाने को नहीं कहती, तो शायद सुदामा द्वारिका नहीं जाते. यह उनका सर्वथा उज्ज्वल पक्ष है. द्वारिका पहुंचने पर भगवान ने जिस प्रकार उनका सत्कार व सम्मान किया, वह भी कम अनुकरणीय नहीं है. कथा के दौरान आयोजक की ओर से आकर्षण कृष्ण-सुदामा की झांकी निकाली गयी. इसमें एक बच्चे को कृष्ण और एक को सुदामा बनाया गया था.
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कृष्ण-सुदामा कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता
फोटो कथा के समापन पर भक्तों की उमड़ी भीड़, निकाली गयी झांकीसंवाददाता, पटनागरीब सुदामा, निरीह कदापि नहीं थे, जिस प्रकार की दीन-दशा का वर्णन मिलता है, वह मात्र उनका संतोष था. अगर ऐसा नहीं होता, तो वह अपने मित्र के पास जा कर बहुत पहले संपन्न हो सकते थे. उनकी पत्नी को भले ही मित्रता […]
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