पटना: प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत राज्य में बड़ी संख्या में बैंक खाते खुल रहे हैं. नवंबर तक इसके तहत करीब 38 लाख लोगों के खाते खुल गये हैं. लेकिन, अब भी लोगों की पहुंच से बैंक दूर है. इसका प्रमुख कारण व्यावसायिक, को-ऑपरेटिव और क्षेत्रीय बैंकों द्वारा शाखाएं खोलने में रुचि नहीं लेना है.
चालू वित्तीय वर्ष (2014-15) के दौरान राज्य में सभी 41 बैंकों को 600 शाखाएं खोलने का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन अभी तक महज 136 शाखाएं ही खुल पायी हैं. इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने में अब सिर्फ तीन महीने बचे हैं, ऐसे में निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक शाखाएं खुलना संभव नहीं लग रहा है.
राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे
जनसंख्या के हिसाब से बिहार में बैंक की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से भी कम है. राष्ट्रीय औसत 12 हजार की जनसंख्या पर एक बैंक का औसत है. इस औसत को पाना अभी बिहार में बहुत मुश्किल है. इसके हिसाब से सूबे में बैंकों की शाखाओं की संख्या करीब आठ लाख होनी चाहिए. वर्तमान में सभी बैंकों की करीब 6500 शाखाएं ही हैं. राज्य में पांच हजार की आबादी पर एक बैंक उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. यह भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है. पांच हजार से अधिक की आबादीवाले करीब 1800 गांव ऐसे हैं, जहां एक भी बैंक शाखा नहीं है. राज्य की 8471 पंचायतों में सिर्फ 5298 में ही शाखाएं हैं.
क्या होगी समस्या
बैंक की शाखा कम होने से लोगों को बैंकिंग सुविधाएं मिलने में काफी परेशानी होगी, खासकर ग्रामीण इलाकों में. लोगों को एक काम कराने में घंटों समय लगता है. किसी-किसी बैंक की शाखा पर जरूरत से ज्यादा वर्क लोड हो जाने से कई जरूरी काम नहीं हो पाते हैं. जिन लोगों ने खाता खुलवा भी लिया है, उनकी पहुंच से बैंक दूर होने के कारण कई सुविधाएं लेने में बेहद परेशानी होगी.
बीसीए की बहाली भी कम
लोगों को उनके घर के पास बैंकिंग सुविधा मुहैया कराने के लिए बैंकिंग क्रॉसपोंडेंट एजेंट (बीसीए) बहाल करने का प्रावधान बैंकों में लागू किया गया है. लेकिन, इनकी बहाली की प्रक्रिया धीमी होने बीसीए भी लोगों की जनसंख्या के अनुपात में उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. 1600 की जनसंख्या पर एक बीसीए बहाल करने का प्रावधान किया गया है. अभी तक 11 हजार बीसीए ही बहाल हो पाये हैं, जो जरूरत के मुताबिक आधे ही हैं.