पटना: जदयू के चार और बागी विधायकों को राज्यसभा उपचुनाव में दल के अधिकृत प्रत्याशियों की खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करना महंगा पड़ा है. शनिवार को विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने बागी विधायक अजीत कुमार, पूनम देवी, राजू सिंह और सुरेश चंचल की बिहार विधानसभा की सदस्यता खत्म करने का फैसला सुनाया.
सदस्यता खत्म करने के साथ चारों बागी विधायकों को 15वीं विधानसभा के तहत मिलने वाले पूर्व विधायकों की सुविधाएं भी नहीं दी जायेंगी. 18 दिसंबर को ही चारों बागियों के मामले पर सुनवाई पूरी हुई थी और स्पीकर ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. इन चारों विधायकों पर राज्यसभा उपचुनाव में पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार उतारने, पोलिंग एजेंट बनने, इलेक्शन एजेंट बनने और दूसरे विधायकों को उनके पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करने का आरोप था. इसी आरोप पर एक नवंबर को भी जदयू के चार बागी विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह, राहुल शर्मा और रवींद्र राय की सदस्यता रद्द की जा चुकी है. अजीत कुमार कांटी विधानसभा क्षेत्र से, पूनम देवी दीघा से, राजू सिंह साहेबगंज से और सुरेश चंचल सकरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे.
नीतीश की शह पर फैसला
दीघा की विधायक पूनम देवी ने कहा कि जिस फैसले का हम लोगों का इंतजार था, विधानसभा अध्यक्ष ने उसे सुना दिया. विधानसभा अध्यक्ष ने गैर संवैधानिक तरीके से फैसला सुना दिया. उन्होंने नीतीश कुमार के इशारे पर फैसला सुनाया है. लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड के रिजल्ट से नीतीश बौखला गये हैं.
विधानसभा क्षेत्र : दीघा
तुगलकी फैसला
साहेबगंज से जदयू विधायक राजू सिंह ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने तुगलकी फैसला सुनाया है. वे इसके खिलाफ कोर्ट जायेंगे. वे जनता की अदालत में भी जायेंगे. राजू ने कहा कि जदयू के कई नेता महागंठबंधन के बड़े नेता बन रहे हैं. उन्हें खुली चुनौती है कि वे उत्तर बिहार के किसी भी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें, राजू सिंह उनके खिलाफ उतरेगा.
विधानसभा क्षेत्र : साहेबगंज
लोकतंत्र की हुई हत्या
कांटी से विधायक अजीत कुमार ने कहा कि स्पीकर कोर्ट के फैसले ने लोकतंत्र की हत्या की है. पांच महीने तक एकतरफा सुनवाई हुई. वादी पक्ष को अपनी बात रखने तक का मौका नहीं दिया गया. इस फैसले के खिलाफ वो हाइकोर्ट और जनता के बीच जायेंगे.पूरी सुनवाई के दौरान बागियों को प्रताड़ित किया गया.
फैसला अन्यायपूर्ण
सकरा से जदयू विधायक सुरेश चंचल ने कहा कि स्पीकर कोर्ट का फैसला अन्यायपूर्ण है. विधानसभा अध्यक्ष किसी दल विशेष के नहीं होते हैं. उन्हें सभी पक्षों की बात सुन कर फैसला देना चाहिए था, लेकिन उन्होंने जदयू के आलाकमान के इशारों पर फैसला सुना दिया. इस फैसले के खिलाफ वह न्यायालय की शरण में जायेंगे.
क्या थे आरोप?
राज्यसभा उपचुनाव के दौरान चारों विधायक अजीत, पूनम, राजू और सुरेश जदयू के दो उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के प्रस्तावक बने थे. पार्टी प्रत्याशी को छोड़ निर्दलीय के पक्ष में वोट डाला था. वोटिंग के समय निर्दलीय के इलेक्शन व पोलिंग एजेंट के रूप में भी काम किया था. इस वजह से संविधान की 10वीं अनसूची के पैरा 2 (1) (क) के अंतर्गत बिहार विधानसभा की सदस्यता से बाहर हो गये.