पटना: श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार को भरत संवाद, नरसिंह अवतार, वामन अवतार की कथा सुनाई गयी. गेट पब्लिक लाइब्रेरी में आयोजित कथा में श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने परीक्षित जी महाराज के प्रसंग को प्रारंभ करते हुए कहा कि जब परीक्षित को पता चला कि सातवें दिन उनकी मृत्यु निश्चित है, तो उन्होंने सब कुछ त्याग दिया और शुकदेव जी से पूछा, जिसकी मृत्यु निश्चित हो, उसे क्या करना चाहिए. मृत्यु हमारे जीवन का कटु सत्य है.
हम इस संसार में खाली आये थे और खाली हाथ ही जायेंगे. यह पता होने के बावजूद भी हम अपना सारा जीवन सांसारिक भोग विलास में गुजार देते हैं. प्रभु ने हमें जिस कार्य के लिए मानव जीवन दिया है, उससे हम भटक जाते हैं. उन्होंने कहा कि कथा को हमें एकाग्रचित होकर सुनना चाहिए. जितने विश्वास के साथ हम भगवान की कथा सुनते हैं, उतना ही हमें फल प्राप्त होता है. दुनिया में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है, जो भगवान की कथा से बड़ा है. जिसने हमें ये मानव जीवन दिया.
जिसका दिया हुआ हम खाते हैं, उसी की भक्ति के लिए हमारे पास समय नहीं है. उन्होंने कहा कि मानव जीवन मिल जाने के बाद जीव को जीवन भर क्या करना चाहिए. किस पर विश्वास करना चाहिए और किस पर नहीं करना चाहिए. इस पर कपिल महाराज बोले, मां मानव जीवन मिलने के बाद जीव को जीवन र्पयत भगवान को मनाने की कोशिश करते रहना चाहिए. क्योंकि मानव जीवन द्वार है, परमात्मा मिलन का. सत कर्म का और मोक्ष प्राप्ति का. जानती हो मां, बच्च जब मां के गर्भ में होता है, ता मांस का एक लोथड़ा होता है.
धीरे-धीरे उसमें अंग बनाना शुरू होता है. इस पर ऊपरी त्वचा नहीं होती. मां जो भी खाती है, वह सीधा बच्चे को जाकर चुभता है, जो बच्चे इस चुभन को नहीं सह पाते, उनकी गर्भ में ही मृत्यु हो जाती है. मां के गर्भ में बच्चे का स्थान मल-मूत्र के पास होता है. बच्च इस पीड़ा को सह नहीं पाता, वह चिल्लाता है, भगवान मुङो बचाओ, मुङो यहां से बाहर निकालो, तब प्रभु कहते हैं कि मैं तुम्हें यहां से बाहर निकाल दूंगा. लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा कि जन्म लेने के बाद तुम्हें अपने धर्म को आगे बढ़ाना होगा. धर्म का प्रचार करना होगा. लेकिन, बच्च जन्म लेने के बाद प्रभु से किया हुआ वादा भूल जाता है. संसार की मोह माया में लिप्त हो जाता है और फिर मृत्यु के बाद दुबारा उसी कष्ट से होकर गुजरना पड़ता है. अगर हमें इस कष्ट से बचना है, जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त होना है. मोक्ष को प्राप्त करना है, तो प्रभु से किया हुआ वादा निभाना होगा.