पटना: दवा घोटाले के बाद अब सरकार दूसरे विभागों से जुड़े निगमों के कामकाज पर कड़ी नजर रखेगी. केंद्र की तर्ज पर निगरानी समिति का गठन होगा. निगम के कामकाज खास कर खरीद प्रक्रिया या टेंडर जारी करने की उनके अधिकारों में कटौती होगी. अब ऐसे मामले विभाग के प्रधान सचिव और मंत्री के स्तर तक जायेंगे. उनकी लिखित सहमति के बाद ही निगम खरीद व टेंडर जारी कर सकेगा. सरकार ने ऐसी व्यवस्था शुरू करने की जिम्मेवारी सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपी है. वर्तमान में सभी निगमों को वित्तीय मामलों में खुद निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है. उसे किसी निर्माण या बड़े पैमाने पर खरीद के लिए मंत्री तक से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है.
यहां तक कि निर्माण और किसी बड़ी खरीद पर निगरानी क्लीयरेंस का भी प्रावधान नहीं है. इसी वजह से दवा की खरीद व कीमतों के निर्धारण में बीएमएससीआइएल ने अपने स्तर से निर्णय लिया. इसके कारण राज्य सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा है.
राज्य में करीब एक दर्जन ऐसे निगम हैं, जो विभाग के अधीन रह कर उनसे समानांतर कार्य लिये जा रहे हैं. मुख्य सचिव के कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार अब निगमों पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार व केंद्रीय निगरानी समिति की तर्ज पर उपाय किये जायेंगे, ताकि कोई निगम मनमर्जी नहीं कर सके. पिछले दिनों मुख्य सचिव के साथ विभिन्न विभागों की बैठक में मुख्य सचिव ने भ्रष्टाचार से निबटने के मुद्दे पर विस्तार से विमर्श किया. विमर्श के दौरान मुख्य सचिव ने निर्देश दिया कि वैसे निगमों में निगरानी के प्रावधान करने होंगे, जहां निर्माण और करोड़ों की खरीद होती है. इसके लिए उन्होंने निगरानी और सामान्य प्रशासन विभाग को प्रावधान तैयार करने का निर्देश दिया है.
इन निगमों में होते हैं निर्माण व खरीद : राज्य स्वास्थ्य समिति, बीएमएससीआइएल, पथ निर्माण निगम, पुल निर्माण निगम, बिहार राज्य बीज निगम, भवन निर्माण निगम, पुलिस निर्माण निगम आदि.