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200 मरीज भरती, ऑपरेशन 54 का

पीएमसीएच के ऑर्थो विभाग के ओपीडी से हर दिन 10 मरीज और इमरजेंसी में 25 मरीज ऐसे आते हैं, जिनको तत्काल ऑपरेशन की जरूरत रहती है. इस आंकड़े को एक सप्ताह से जोड़ा जाये, तो लगभग 200 मरीज का ऑपरेशन पूरे सप्ताह में होना चाहिए, लेकिन ऑपरेशन मात्र 54 मरीजों का होता है और बाकी […]

पीएमसीएच के ऑर्थो विभाग के ओपीडी से हर दिन 10 मरीज और इमरजेंसी में 25 मरीज ऐसे आते हैं, जिनको तत्काल ऑपरेशन की जरूरत रहती है. इस आंकड़े को एक सप्ताह से जोड़ा जाये, तो लगभग 200 मरीज का ऑपरेशन पूरे सप्ताह में होना चाहिए, लेकिन ऑपरेशन मात्र 54 मरीजों का होता है और बाकी मरीजों को पीएमसीएच से बिचौलिये लेकर निजी अस्पताल पहुंचा देते हैं. क्योंकि विभाग में एक ओटी में तीन टेबल लगे हुए हैं, प्रत्येक टेबल पर तीन ऑपरेशन होता है, जिसके मुताबिक पूरे सप्ताह में मात्र 54 ऑपरेशन होता है.

पटना: सुबह के साढ़े आठ बज चुके हैं, सभी परिजन अपने-अपने वार्ड में मरीज के पास खड़े होकर डॉक्टर का इंतजार कर रहे हैं. तभी एक सुरक्षा कर्मचारी आता है और परिजनों को बाहर निकालना शुरू कर देते हैं. कहता है कि बाहर निकलो डॉक्टर साहब आयेंगे, तो गुस्सा करेंगे. तभी एक परिजन कहना है मेरा मरीज ठीक नहीं है, हम डॉक्टर साहब से बात करेंगे. लेकिन सभी को वहां से बाहर निकाल दिया जाता है. इतने में तीन या चार जूनियर डॉक्टर आते हैं. मरीजों की रिपोर्ट तैयार करते हैं.

अभी लगभग साढ़े नौ बजने वाले हैं, सीनियर डॉक्टर राउंड लेने नहीं आये हैं. तभी एक यूनिट के डॉक्टर वहां पहुंचते हैं. एक मरीज को देखते हैं, तो दूसरा मरीज इंतजार करता है, लेकिन वह वहां से गुजर जाते हैं. परिजन डॉक्टर से कहता है कि सर मेरा भी रिपोर्ट देख लीजिए, लेकिन डॉक्टर यह कहते हुए कि तुम मेरे यूनिट में नहीं हो, थोड़ी देर में तुम्हारे यूनिट इंचार्ज आयेंगे, तो तुम्हारा इलाज करेंगे, आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन जो डॉक्टर फिलहाल मरीजों को देख रहे हैं वह मरीज से बात नहीं करते हैं. बस अपने जूनियर से बात करके चले जाते हैं. यह रोज की कहानी हैं.

एमसीआइ क्या कहता है

हर यूनिट में 30 बेड होना चाहिए. साथ ही एक प्रोफेसर, दो सहायक प्रोफेसर, एक सह प्रोफेसर, एक रेजिडेंट और दो जूनियर डॉक्टर होने चाहिए. लेकिन ऑर्थो विभाग में अभी 250 बेड हैं, इसके मुताबिक अभी आठ यूनिट का होना जरूरी है. इसमें 8 प्रोफेसर, 16 सहायक प्रोफेसर, आठ सह प्रोफेसर, आठ रेजिडेंट और 16 जूनियर डॉक्टरों की जरूरत है.

जांच में परेशानी

एमआरआइ की सुविधा नहीं

सीटी स्कैन के लिए लगते हैं पैसे (हड्डी में सिटी कराने वाले मरीजों को कम से कम तीन हजार रुपये का होता है स्कैन)

वार्ड में भरती मरीज दो बजे के बाद नहीं करा पाते पैथोलॉजी जांच

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