पटना: नगर विकास विभाग ने जनता के सुझाव के लिए पटना मास्टर प्लान का प्रारूप जारी कर दिया. प्लान में सुविधाओं के साथ कई बंदिशें भी हैं. पटना नगर निगम महज 72 वार्डो का नहीं रह जायेगा. अब इसमें 564 प्रशासनिक इकाइयां होंगी.
इनमें 558 गांव की प्रशासनिक इकाइयां हैं. दानापुर, खगौल और फुलवारीशरीफ नगर परिषद और मनेर व फतुहा नगर पंचायत इसमें समाहित हो जायेंगे. मास्टर प्लान के बाद टैक्स का भुगतान अनिवार्य होगा. अगर बिल्डिंग बाइलॉज को कैबिनेट की मंजूरी मिल गयी, तो 558 गांवों में मकान बनाने के लिए बाइलॉज के प्रावधान का पालन करना आवश्यक होगा. निर्माण के लिए नक्शा पास कराना होगा. फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) का भी पालन करना होगा.
वैसे ग्रामीण जो भू लगान के अलावा किसी तरह के कर देने के आदि नहीं थे. उन्हें मानसिकता बदलनी होगी. सड़कों के अनुसार होल्डिंग टैक्स देना होगा. प्रधान मुख्य सड़क, मुख्य सड़क व अन्य सड़क पर स्थित भवनों के होल्डिंग का निर्धारण होगा. फिलहाल क्षेत्र की आबादी 22 लाख है, जो 2021 में 28.01 लाख हो जायेगी.
कई सुविधाएं भी मिलेंगी : मास्टर प्लान के आने के बाद लोगों को कई सुविधाएं भी मिलेंगी. लोगों को कूड़े की सफाई की चिंता नहीं करनी होगी. यह काम नगर निकाय के जिम्मे होगा. साथ ही पेय जल की भी सुविधा मिलेगी. जलजमाव से निजात व शहर से इन बसावटों की कनेक्टिविटी भी नगरपालिका को देनी होगी. सभी बसावटों में रोशनी की व्यवस्था और नालियों का निर्माण व्यवस्थित तरीके से होगा.
प्लानिंग बोर्ड में एक भी पदाधिकारी नहीं
मास्टर प्लान के बाद सबसे बड़ी परेशानी इसे लागू करने वाले तंत्र को लेकर होगी. किसी भी शहर के लिए मास्टर प्लान तैयार करने की जिम्मेवारी नगर विकास एवं आवास विभाग के अंतर्गत गठित टाउन एंड कंट्री प्लानिंग बोर्ड की होती है. बोर्ड में अभी तक नियमित एक भी पदाधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई है. बोर्ड में 19 पद स्वीकृत किये गये हैं. यह बोर्ड ही मास्टर प्लान तैयार करता है. इसमें भवन निर्माण विभाग के दो पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गयी है. बोर्ड में न तो मुख्य प्लानर की नियुक्ति हुई है और न ही टाउन प्लानर, रिसर्च प्लानर और असिस्टेंट प्लानर की. सबसे बड़ी बात है कि इतनी बड़ी आबादी को समाहित करने वाले मास्टर प्लान को लेकर 10-20 हजार आपत्तियां व सुझाव भी मिल गये, तो इसके निबटारे में ही लंबा समय लग जायेगा. आखिर इस मास्टर प्लान में पेंच को देखते हुए ही दो हजार वर्ग किलोमीटर की परिधि को कम कर 1100 वर्ग किलोमीटर किया गया.