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पटना : IGIMS में हुई भोजन नली के कैंसर की बिहार में पहली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी

पटना : मुजफ्फरपुर के 39 वर्षीय गुड्डू कुमार पिछले एक माह से भोजन निगलने में परेशानी महसूस कर रहे थे. एंडोस्कोपी और अन्य जांचों से पता चला कि उन्हें भोजन नली का कैंसर है. डॉक्टरों उन्हें इलाज के लिए दिल्ली या लखनऊ जाने का सलाह दी. मगर, पैसों के अभाव के कारण उन्होंने आइजीआइएमएस में […]

पटना : मुजफ्फरपुर के 39 वर्षीय गुड्डू कुमार पिछले एक माह से भोजन निगलने में परेशानी महसूस कर रहे थे. एंडोस्कोपी और अन्य जांचों से पता चला कि उन्हें भोजन नली का कैंसर है. डॉक्टरों उन्हें इलाज के लिए दिल्ली या लखनऊ जाने का सलाह दी. मगर, पैसों के अभाव के कारण उन्होंने आइजीआइएमएस में परामर्श लेने का फैसला किया. आइजीआइएमएस में डॉक्टर साकेत कुमार ने उनकी समुचित जांच की और आइजीआइएमएस में ही ऑपरेशन कराने की सलाह दी.

महज पांच घंटों में हुआ ऑपरेशन

विभागअध्यक्ष डॉ मनीष मंडल के मार्गदर्शन में डॉ साकेत ने मरीज का ऑपरेशन महज पांच घंटों में दूरबीन विधि से किया. ऑपरेशन में डॉ औशाफ, डॉ राकेश सिस्टर कनक एवं सिस्टर साहिदा का योगदान अहम रहा. निश्चेतना विभाग के डॉ विनोद वर्मा, डॉ निधि और डॉ राजा अविनाश ने इस जटिल सर्जरी में सहयोग दिया. सर्जरी के तुरंत बाद ही मरीज होश में आ गये और बातचीत करने लगे. अभी तीन दिन बाद मरीज दर्द रहित स्थिति में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. इस ऑपरेशन में जहां मरीजों को बड़े शहरों का रुख करना पड़ता था और खर्च भी बहुत होता था. वहीं, आइजीआइएमएस में इस ऑपरेशन को महज 50,000 रुपये में किया गया. यह सूबे के मरीजों के लिए राहत की खबर है.

कौन हैं डॉ साकेत?

डॉ साकेत कैंसर विशेषज्ञ हैं, हाल में ही उन्होंने एम्स्टर्डम से कैंसर के इलाज की ट्रेनिंग लेकर आये हैं. उन्होंने राजधानी स्थित आइजीआइएमएस में कैंसर का इलाज दूरबीन विधि से करने का फैसला किया. मालूम हो कि अभी तक बिहार में इस कैंसर का इलाज दूरबीन से संभव नहीं था.

आहारनली के कैंसर के लक्षण

आहारनली के कैंसर से भोजन निगलने में तकलीफ होती है. भोजन निगलने में अटकता है. वजन तेजी से कम होता जाता है. भूख काम लगती है.

लेप्रोस्कोपिक विधि के फायदे

इस विधि से ऑपरेशन करने से बड़ा चीरा नहीं लगाना पड़ता है. इससे दर्द से राहत मिलती है. खून का बहाव कम होता है, इससे रिकवरी शीघ्र होती है. वेंटिलेटर की आवश्यकता नहीं पड़ती है. छाती से संक्रमण का खतरा भी कम होता है. इस कारण मरीज को अस्पताल से छुट्टी जल्द मिल जाती है.

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