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कारगिल विजय दिवस : दोस्त को गोली लगी, तो दुश्मनों पर टूट पड़े गणेश

बिहटा : कारगिल की लड़ाई में 29 मई 1999 को सरहद पर बिहार के सपूत नायक गणेश यादव ने हंसते-हंसते सीने पर दुश्मनों की गोलियां खाकर देश के लिए अपनी शहादत दी थी. परिवार की गृहस्थी की गाड़ी तब से पत्नी पुष्पा बमुश्किल चला रही है. कारगिल दिवस जब भी आता है उनकी शहादत की […]

बिहटा : कारगिल की लड़ाई में 29 मई 1999 को सरहद पर बिहार के सपूत नायक गणेश यादव ने हंसते-हंसते सीने पर दुश्मनों की गोलियां खाकर देश के लिए अपनी शहादत दी थी. परिवार की गृहस्थी की गाड़ी तब से पत्नी पुष्पा बमुश्किल चला रही है.

कारगिल दिवस जब भी आता है उनकी शहादत की घटना को याद कर पत्नी पुष्पा, पिता रामदेव यादव एवं मां बचिया देवी का कलेजा गर्व से चौड़ा हो जाता है. पत्नी पुष्पा ने कारगिल युद्ध के संस्मरण को याद करते हुए बताया की शहीद नायक गणेश यादव एक महीने की छुट्टी पर घर आये थे.

अचानक बुलावा आ गया. छुट्टी में कई दिन शेष बचे थे अचानक लौटने की सूचना पर जब हमलोगों ने पूछा तो गणेश ने सिर्फ इतना बताया की किसी जरूरी काम से बुलाया गया है. परिवार के लोगों को युद्ध की कोई जानकारी नहीं थी. उनके जाने के बाद जानकारी मिली, लेकिन फिर कोई बात नहीं हुई. शव के साथ पहुंचे उनके दोस्त ने बताया कि गणेश बहुत बहादुर थे. दुश्मनों द्वारा गोलियां चलायी जा रही थी. तभी एक गोली गणेश के दोस्त को लग गयी.

उन्हें छटपटाता देखकर गणेश आग बबूला हो उठे. भीषण गोलीबारी में भी निडर होकर दुश्मनों पर टूट पड़े. घंटों तक गोलियां चली. इसमें एक गोली उन्हें आ लगी, लेकिन उन्होंने गोली लगने के बावजूद दुश्मनों को मार गिराया, जिन्होंने उनके दोस्त को गोली मारी थी. शव के साथ घर पहुंचे साथी जवानों ने जब ये कहानी सुनाई तो सभी फर्क से अपना सीना चौड़ा महसूस करने लगे.

औरंगाबाद : बेटे की शहादत पर गर्व है शिवशंकर के परिवार को

औरंगाबाद जिले के रफीगंज प्रखंड के बगड़ा वंचर गांव के शिवशंकर गुप्ता का भी नाम उन शहीदों में शामिल है, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना को धूल चटायी. चार जून, 1999 की सुबह अब भी नंदलाल गुप्ता और पूनम देवी को याद है. उनके बेटे शिव शंकर प्रसाद गुप्ता ने कुछ जवानों के साथ साहस का परिचय देते हुए अपनी कंपनी के कमांडर और सेक्शन कमांडर के पार्थिव शरीर को लाने का बीड़ा उठाया था.

दुश्मनों द्वारा की जा रही गोलीबारी के बीच 14230 फीट पथरीली एवं बर्फीली ऊंची पहाड़ी पर रहते हुए अपने कंपनी कमांडर के पार्थिव शरीर के पास पहुंचने में कामयाबी हासिल की. पर जैसे ही पार्थिव शरीर को 50 मीटर तक लेकर चले दुश्मनों की गोली लग गयी. शिव शंकर प्रसाद गुप्ता ने बिना घबराए अपने हथियार से दुश्मनों की ओर फायर कर उन्हें आगे बढ़ने से रोके रखा. लगभग दो घंटे की जुझारू वीरता के बीच शिवशंकर शहीद हो गये.

लखीसराय : शहीद नीरज ही आ जाते हैं याद

पैतृक गांव में शहीद दिवस मनाने की तैयारी पूरी

वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में सिंगारपुर निवासी योगी सिंह के पुत्र शहीद नीरज कुमार का नाम गांव में जिंदा है. उनके सहपाठी उन्हें अब भी याद कर भावुक हो जाते हैं. इस बार भी उनकी याद में उनके पैतृक गांव में शहीद दिवस मनाया जायेगा. इसके लिए तैयारी पूरी कर ली गयी है.

सन 1999 में नीरज के शहीद होने पर मुख्यमंत्री से लेकर कई जनप्रतिनिधि उनके आवास पहुंचकर शोकाकुल परिजनों से भेंट कर सांत्वना दी थी, साथ ही बिहार सरकार से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में जानकारी देते हुए मुहैया कराने का वायदा भी किया था. मुख्यमंत्री के द्वारा किये गये वायदे के अनुसार शहीद नीरज कुमार की पत्नी रूबी कुमारी को मध्य विद्यालय सिंगारपुर में शिक्षक के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया.

इसके साथ ही नीरज कुमार की स्मृति में सिंगारपुर एवं रामपुर के बीच एक शहीद द्वार भी बनाया गया. वर्तमान में शहीद नीरज की पत्नी लखीसराय विद्यापीठ चौक पर निवास कर रही है. रूबी कुमारी बताती है कि हरवर्ष 26 जुलाई की याद आती है तो आंख में आंसू आ जाते हैं. साथ ही गर्व होता है कि उनके पति देश के लिए शहीद हुए हैं. उस समय को वह कभी नहीं भूल सकती है जब वे शहीद हुए थे, उस वक्त उनके गोद में महज सात माह की पुत्री सुमन कुमारी थी जो अब पार्ट वन में पढ़ाई कर रही है.

उन्होंने कहा कि जब कहीं किसी सैनिक के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है, तो मेरी बेटी सुमन कुमारी कहती है- इन सैनिक चाचा का भी बच्चे मेरे तरह ही अनाथ हो जायेंगे. शहीद की पत्नी कहती हैं कि जो देश पर न्यौछावर हो गया, वह लौट के नहीं आयेगा. नीरज कुमार के पैतृक गांव सिंगारपुर ही नहीं बल्कि पूरे जिले के लोगों द्वारा हमेशा शहीद नीरज की चर्चा की जाती है. साथ ही उनका उदाहरण भी दिया जाता है कि देश का सच्चा पुत्र देश के लिए अपने जान का न्योछावर कर दिया.

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