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पटना : आर ब्‍लॉक में घंटों कार्यकर्ताओं के संग बैठते थे जार्ज

मिथिलेश पटना : नकी एक आवाज से देश भर में रेल का पहिया रूक जाता था, जिनको सुनने के लिए संसद में शांति छा जाती थी और जिनके ओजस्वी भाषण सुन युवाआें के चेहरे पर क्रांति की चमक आ जाती थी, उस जार्ज का बिहार से गहरा लगाव था. चाहे राजनीति का क्षेत्र हो या […]

मिथिलेश
पटना : नकी एक आवाज से देश भर में रेल का पहिया रूक जाता था, जिनको सुनने के लिए संसद में शांति छा जाती थी और जिनके ओजस्वी भाषण सुन युवाआें के चेहरे पर क्रांति की चमक आ जाती थी, उस जार्ज का बिहार से गहरा लगाव था.
चाहे राजनीति का क्षेत्र हो या मजदूर आंदोलन का , जाॅर्ज की पारखी नजर किसी बिहारी नेताओं से कई कदम आगे रही थी. पटना का आर ब्लाक का विधायक आवास क्षेत्र हो या नया टोला का सोशलिस्ट पार्टी का दफ्तर, जाॅर्ज कार्यकर्ताओं के संग घंटो बैठ राजनीति पर चर्चा करते थे. चूड़ा और हरा चना उनका प्रिय आहार था. कार्यकर्ताओं के संग और उन्हें आगे बढ़ाने में जाॅर्ज का जोर नहीं था. कैप्टेन जय नारायण प्रसाद निषाद को उन्होंने ही सक्रिय राजनीति में लाया था.
बिहार में लालू प्रसाद की राजनीति से अलग हट कर बनी समता पार्टी की स्थापना में उनकी अहम भूमिका रही थी. नालंदा का राजगीर आयुध कारखाना, नालंदा और गोपालगंज के सैनिक स्कूल उनकी ही देन है.
कोई सुरक्षा कशंस नहीं, हमेशा सरल और सहजता के प्रतीक रहे जार्ज की सफेद पायजामा और तन पर मुड़ा कुचला कुर्ता, सिर पर सफेद बाल और पैरों में साधारण चप्पल, यही पहचान थी. उनके 1977 के पहले चुनाव को याद करते हुए पूर्व विधायक गौरीशंकर नागदंश बताते हैं, पूरा मुजफ्फरपुर जाॅर्ज के रंग में नहाया हुआ था. जेल का फाटक टूटेगा-हमारा साथी छूटेगा यह नारा गूंजता था. जार्ज जीते.
2009 में लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित हो चुका था. चुनाव परिणाम जाॅर्ज के पक्ष में नहीं था. हार्डिंग रोड स्थित एक विधायक आवास पर जार्ज साहब थोड़ी देर के लिए ठहरे थे. कमजोर जार्ज मुश्किल से कुछ बोल पाने की स्थिति में थे.
लेकिन, उस समय भी उनकी आंखों में देश और बिहार के लिए बहुत कुछ सपना था. बाद में राज्यसभा का चुनाव हुआ, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार से उम्मीदवार बनाया. नीतीश कुमार के आग्रह पर वो पटना आये और नामांकन का परचा भरा, वे जीते और राज्यसभा के सदस्य बने. चार अगस्त, 2009 से सात जुलाई, 2010 तक वो राज्यसभा के बिहार से सदस्य रहे. बाद में बीमारी की अवस्था मेें जार्ज सक्रिय राजनीति से दूर रहे.
बिहार के भी कई मजदूर संगठनों से जाॅर्ज का लगाव रहा था. मजदूर आंदोलन के बुजुर्ग नेता सतपाल वर्मा ने जाॅर्ज को याद करते हुए कहा कि राजनेताओ की भीड़ में वो अलग थे. हमने उनके साथ काम किया है. कई बार मजदूरों के हित में काम करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को निर्देश दिया था. हिंद मजदूर सभा को भी उन्होंने नेतृत्व दिया था.
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