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सड़क और बिजली ने बदल दी है मिथिलांचल के गांवों की तस्वीर
मिथिलेश नजर आने लगी रौनक l प्रदेश में बदलने लगे गांवों के हालात, गांवों में रहना अब शान समझते हैं लोग, शहर से करने लगे हैं तुलना पटना : प्रदेश में गांवों की तस्वीर बदलने लगी है. सड़कों का जाल, राष्ट्रीय उच्च पथ यानी एनएच से कम होती दूरी और ऊपर से चौबीस घंटे बिजली […]
मिथिलेश
नजर आने लगी रौनक l प्रदेश में बदलने लगे गांवों के हालात, गांवों में रहना अब शान समझते हैं लोग, शहर से करने लगे हैं तुलना
पटना : प्रदेश में गांवों की तस्वीर बदलने लगी है. सड़कों का जाल, राष्ट्रीय उच्च पथ यानी एनएच से कम होती दूरी और ऊपर से चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता. इन सबने उन पुराने ख्यालातों को बदल दिया है, जहां गांवों में रहना एक मजबूरी मानी जा रही थी.
हम बात कर रहे हैं मिथिलांचल के गांवों की. गोल्डेन क्वार्डिलेटरल यानी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और चेन्नई को जोड़ने वाली 5846 किलोमीटर लंबी सड़क मिथिलांचल के कई जिलों को छूती हुई गुजरती है. इनसे जुड़ी राज्य सरकार की नयी व दुरुस्त सड़कें और पीसीसी सड़कों के जाल ने गांव और शहरों की दूरियां समाप्त कर दी हैं.
जीवन स्तर सुधरा है. शहरों पर निर्भरता कम हुई है. वहीं, पढ़े लिखे संभ्रांत लोगों की अच्छी संख्या बड़े ओहदों से रिटायर होने के बाद गांवों में बसने का निर्णय ले रहे हैं. इसके कारण गांवों की रौनक एक बार फिर लौटती दिख रही है.
घर में किराना का सामान हो या फर्नीचर की जरूरत, अब घर बैठे सब मुहैया हो रहा है़ गांवों में पीसीसी सड़कें बन गयी हैं. दिन भर में दर्जनों व्यापारी मोटरसाइकिल चला व्यापार करते हैं रिकाॅर्डेड माइक से अपना प्रचार भी करते जाते है़ं ऑटो पर चावल, दाल व अन्य सामान रखे हैं. मिथिला की मधुर भाषा में ऑटोचालक आवाज भी लगाता जाता है और सौदा भी करता जाता है.
गांव के प्रगतिशील किसान मुरारी जी मुझे अपनी किसानी से रूबरू कराते हैं. पोपुलर की खेती, दशहरी आम, मालदह और कलकतिया के अलग बागान, साथ में आम के बागान में हल्दी के पौधे़ मुरारी जी उर्फ कपिलदेव झा को कई बार प्रगतिशील किसान का पुरस्कार मिल चुका है़ वे बताते हैं पोपुलर की उन्होंने हजारों पौधे लगाये हैं. उनकी सलाह पर दूसरे ग्रामीणों ने भी पोपुलर के पौधे लगाये हैं.
स्वर्णिम चतुर्भुज के पहले इस इलाके से गुजरने से कतराते थे लोग
तटबंधों का पक्कीकरण: मधुबनी जिले से होकर झंझारपुर के करीब कमला बलान नदी गुजरती है़ स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के पहले इस इलाके से गुजरना मौत को दावत देने जैसा ही था़ कमला नदी के दोनों तटबंधों का पक्कीकरण किया गया है़ मिथिला में तटबंध को छहर के नाम से जानते हैं. कमला बलान की पश्चिमी छहर झंझारपुर के निकट समिया में स्वर्णिम चतुर्भुज को जोड़ती है़
हर समय गाड़ियां उपलब्ध: राउरकेला स्टील प्लांट के बड़े पद से रिटायर विनोद कुमार लाल अपने गांव से तकरीबन पांच किलोमीटर दूर रात्रि में गांव का भोज खाने आये हैं. गांवों में सड़कें अच्छी होने से हर समय छोटी-बड़ी गाड़ियां उपलब्ध होती हैं, जिसके कारण दूसरे गांवों में भी रात में भोज खाने लोग पहुंच पा रहे हैं. श्री लाल कहते हैं, पहले यह सुविधा नहीं थी़ मैं छह महीने गांव में ही रहता हूं. रिटायरमेंट के बाद बेटे के पास रहने का विकल्प था. गांव में मित्रों के साथ समय कट रहा हैं.
भा रही है गांव की आबोहवा
काको गांव के डॉ मोहन पशु चिकित्सक हैं. सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गांव में ही बसने का निर्णय लिया. उन्होंने गांव में ही आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त घर बनाया . तीन साल से गांव में रह रहे डाॅ मोहन और उनकी पत्नी को गांव की आबोहवा भा रही है़ डॉ मोहन आसपास के कई गांवों का भ्रमण कर चुके हैं. वे कहते हैं, एक घंटे में हम दरभंगा पहुंच सकते हैं, तो दरभंगा और मधुबनी के बजाय गांव में ही रहना श्रेयकर है़ उनकी पत्नी कहती हैं, शुरू में अटपटा लगा. अब मन लगने लगा है.
17 किमी जाने में लगते थे 2 घंटे
बिरौल मधुबनी जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर स्थित है. पहले पैदल, फिर टमटम और ट्रेकर की सवारी होती थी़ उबर-खाबर व पथरीली रास्तों से गुजरते हुए करीब घंटे-दो घंटे की सफर के बाद यहां से मधुबनी पहुंचा जा सकता था. अब दुरुस्त सड़क से यह दूरी महज 15 से 20 मिनट में तय हो रही है़ स्वर्णिम चतुर्भुज का एक नया लाभ आसानी से सड़क मार्ग से दिल्ली आना-जाना भी है़
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