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पटना : कहीं आप मछली के साथ जानलेवा रसायन भी तो नहीं खा रहे हैं
राजेश सिंह पटना : मछली खाने के एक नहीं, अनगिनत फायदे हैं. मछली में लो फैट होता है और बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड पाये जाने के कारण भी मछली स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है. मछली में विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और कई अन्य पोषक तत्व भी मौजूद होते […]
राजेश सिंह
पटना : मछली खाने के एक नहीं, अनगिनत फायदे हैं. मछली में लो फैट होता है और बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड पाये जाने के कारण भी मछली स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है. मछली में विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और कई अन्य पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं.
इसलिए मछली का सेवन शरीर की कई जरूरतों को पूरा करता है. इन सब खूबियों के बावजूद मछली खाने से पहले थोड़ा सतर्क रहना पड़ेगा. ध्यान रखिए कि जो आप मछली खरीद रहे हैं, उसे ताजी रखने के लिए केमिकल का तो इस्तेमाल नहीं हो रहा है. अगर ऐसा है तो वह मछली आपकी सेहत बिगाड़ देगी. ऐसी बीमारियों की गोद में आपको धकेल देगी, कि उबरना मुश्किल होगा.
जी हां, मछली को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए इस पर फॉर्मेल्डिहाइड का लेप लगाया जाता है. इतना ही नहीं मछली को खराब होने से बचाने वाली बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए अमोनिया का उपयोग किया जाता है. मछली के जरिए यही रसायन हमारे शरीर में जाते हैं और बीमारियां गिरफ्त में लेती हैं. इससे सिरदर्द, उल्टी, पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इतना ही नहीं, फॉर्मेल्डिहाइड से कैंसर भी हो सकता है.
बिहार में खपत और उत्पादन में भारी अंतर
मत्स्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पूरे राज्य में मछली की वार्षिक मांग छह लाख 42 हजार मीट्रिक टन है, जबकि मछली का वार्षिक उत्पादन पांच लाख छह हजार मीट्रिक टन है. वहीं, प्रति व्यक्ति मछली की वार्षिक उपलब्धता न्यूनतम 11 किग्रा होना चाहिए, लेकिन राज्य में इसका प्रतिशत मात्र 7.7 ही है. इसलिए सरकार मछली उत्पादन को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य, आय और रोजगार तीनों क्षेत्र में विकास करना चाहती है.
कई देश कर चुके हैं कड़ी कार्रवाई
इंडोनेशिया, थाईलैंड, बांग्लादेश आदि देशों में खाद्य पदार्थों पर फॉर्मेल्डिहाइड के उपयोग पर कार्रवाई हो चुकी है. बांग्लादेश में तो सुपर मार्केट में रखीं सब्जियां, फल, मछलियों को ताजा रखने के लिए इस रसायन का घातक उपयोग पकड़ा जा चुका है.
दूषित पानी से बनती है बर्फ
गन्ने का रस, चुस्की और ठेले की आइसक्रीम कुछ देर के लिए गर्मी से राहत भले देती हैं, परंतु यह स्वाद के साथ ही बीमारियां भी देती हैं. बाजार में बिक रही ज्यादातर बर्फ दूषित पानी से तैयार की जाती है. इस बर्फ के सेवन से पेट संबंधी बीमारियां और पीलिया तक हो सकता है.
माना जाता है कि गन्ने का रस पीलिया का रामबाण इलाज है. लेकिन गन्ना रस में अशुद्ध पानी से बनी बर्फ हो तो यह भले-चंगे आदमी को भी पीलिया का मरीज बना सकता है. वैसे तो बर्फ फिल्टर वाले पानी से बनाया जाना चाहिए, लेकिन फिल्टर प्लांट काफी महंगा पड़ता है.
प्लांट की लागत लाखों में आती है. इसलिए बोरिंग वाले
पानी से ही बर्फ फैक्ट्रियों में काम चलता है. उधर, विशेषज्ञों की मानें तो दूषित बर्फ के सेवन से पेट में इंफेक्शन, उल्टी-दस्त, टाइफाइड, पीलिया सहित कई अन्य बीमारियां
हो सकती हैं. ठंडे पेय पदार्थों के उपयोग से पहले क्वालिटी की पड़ताल कर लेनी चाहिए.
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