-लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स ने किया बिहार-झारखंड के सीमाई वोटरों पर सर्वे
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बिहार में तवज्जो नहीं, झारखंड में बिचौलिया पॉलिटिक्स हावी
-लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स ने किया बिहार-झारखंड के सीमाई वोटरों पर सर्वे पटना : बिहार के वोटरों की प्राथमिकता बदल रही है. वे जाति के खांचे से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी प्राथमिकता जीवन में बदलाव लाने वाले उपायों ने ली हैं. वे विकास व प्रगति को तवज्जो दे रहे हैं. वे […]
पटना : बिहार के वोटरों की प्राथमिकता बदल रही है. वे जाति के खांचे से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी प्राथमिकता जीवन में बदलाव लाने वाले उपायों ने ली हैं. वे विकास व प्रगति को तवज्जो दे रहे हैं. वे नेताओं और बिचौलियों के चंगुल से बाहर निकलना चाहते हैं. दूसरी ओर पड़ोस के झारखंड की बात इससे उलट है़ वहां अभी भी बिचौलियावादी पॉलिटिक्स हावी है़ वहां बिहार में सात निश्चय की तरह कोई विकास योजनाएं नहीं चल रहीं, जिसका असर आम लोगों के मस्तिष्क पर पड़े. एक फर्क यह देखने को मिला है कि झारखंड के लोग सवर्ण मानसिकता से बाहर निकल चुके हैं,
जबकि बिहार में यह मानसिकता अभी भी हावी है़ लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स की इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (आइजीसी) ने बिहार-झारखंड की सीमा के आसपास के साढ़े तीन हजार लोगों से बातचीत कर रिपोर्ट तैयार की है़ रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के नीतिगत सुधारों ने मतदाताओं की अपेक्षाओं को जगाया है़ वोटर जीवन से जुड़ी जरूरतों के बारे में बात करते हैं. सर्वे में बिहार-झारखंड की सीमा पर चार किलोमीटर के भीतर 314 गांवों में रहनेवाले 3,514 नागरिकों से दोनों ही प्रदेशों में सरकार के कामकाज और चुनाव के दौरान वोट करने के पीछे की प्राथमिकताओं पर उनकी राय जानने की कोशिश की गयी़ सर्वे रिपोर्ट बताता है कि झारखंड में आदिवासी और गैर आदिवासियों के विवाद के चलते भी वहां बिचौलिया पॉलिटिक्स जारी है़ आईजीसी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के लोग चाहते हैं कि नीतीश सरकार की ओर से विकास के जो भी काम शुरू किये गये हैं, उन्हें संस्थागत रूप दिया जाये. लोगों में इस बात की आशंका है कि अगर मौजूदा सरकार बदली, तो उसकी लागू योजनाएं कहीं बंद न हो जाये या उसकी गति धीमी न हो जाये.
राज्य की मशीनरीबनी कामकाजी
आईजीसी के शोधकर्ता जोनाथन फिलिप और लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के बिहार प्रतिनिधि कुमार दास ने बताया कि रिपोर्ट तैयार करने के पहले कुछ बिंदुओं पर लोगों की राय ली गयी़ इनमें राजनीतिक प्रभाव, कार्यक्रम संबंधी औचित्य, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक जानकारी, राजनीतिक स्वायत्तता और वितरण संबंध शामिल थे. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 से पहले बिहार में मतदाता बिचौलियावादी राजनेताओं के पक्ष में ही खड़े दिख रहे थे़ लेकिन, 2005 में जब से नीतीश कुमार के नेतृत्व में नयी सरकार आयी, लोगों ने व्यापक नीति सुधार का अनुभव किया. इस दौरान राज्य की मशीनरी कामकाजी संस्था में रूपांतरित हुई.
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