पटना: जांघ की बजाय कलाई की नस के जरिये एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी से मरीज को आराम मिलता है. कोई परेशानी नहीं ङोलनी पड़ती. सुबह में अस्पताल में भरती मरीज शाम को घर लौट आता है.
खासकर, महिलाएं इसे ज्यादा पसंद करती हैं. पारस एचएमआरआइ हॉस्पिटल पटना में ट्रांसरेडियल पद्धति से ऑपरेशन करनेवाले विशेषज्ञ डॉ प्रमोद बताते हैं कि धमनी में ब्लॉकेज की जांच और उसे ठीक करने के दो तरीके हैं. पहला फीमोरल रूट और दूसरा ट्रांसरेडियल रूट. फीमोरल में जांघ की नस के जरिये एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की जाती है, जबकि ट्रांसरेडियल में कलाई की नस के जरिये. फीमोरल में मरीज को अस्पताल में रहना पड़ता है और कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मोटे लोगों की जांघ में नस ढूंढ़ने में दिक्कत होती है, जिससे उन्हें खतरा पहुंचाने का अंदेशा बना रहता है. नस से खून रिसने या थक्का जमने का भी खतरा बना रहता है.
नस दबाने से परेशानी
खून को बंद करने के लिए नस को दबाये जाने से भी परेशानी पैदा हो सकती है. पांव बांध देने से चलना फिरना बंद हो जाता है. ट्रांसरेडियल ज्यादा सुरक्षित और परेशानी न देने वाली तरीका है. सुबह को भरती मरीज चंद घंटे के बाद घर लौट जाता है. और दूसरे दिन से अपना काम करने लगता है. यह तरीका वैसा ही है जैसा कि एक डेंटिस्ट दांत निकालने के बाद उसे घर भेज देता है.