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बिहार : नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में खुलासा, दिमागी बुखार से 100 में से 21 बच्चों की हो जाती है मौत
आनंद तिवारी पटना : पटना सहित पूरे बिहार में भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोतरी की जा रही है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इसका फायदा जरूरतमंदों को पूरी तरह नहीं मिल रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान समय में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) यानी दिमागी बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या में कोई […]
आनंद तिवारी
पटना : पटना सहित पूरे बिहार में भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोतरी की जा रही है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इसका फायदा जरूरतमंदों को पूरी तरह नहीं मिल रहा है.
एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान समय में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) यानी दिमागी बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आ रही है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से दिमागी बुखार को लेकर बड़े टीकाकरण अभियान आदि की सुविधा शुरू की गयी है, लेकिन सही मायने में इसका प्रचार प्रसार नहीं होने के चलते कई बच्चे वंचित हो रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार पूरे बिहार में दिमागी बुखार से पीड़ित 100 बच्चों में से 21 की मौत हो जाती है.
पिछले 10 साल में यह प्रतिशत कम हुआ है. 10 साल पहले बिहार में दिमागी बुखार से पीड़ित 100 में 35 बच्चों की मौत हो जाती थी. नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे (एनएमएचएस) की मानें तो दिमागी बुखार के मरीजों की संख्या सबसे अधिक छत्तीसगढ़ और उसके बाद वेस्ट बंगाल में है. वर्ष 2016-17 में एनएमएचएस ने पूरे राज्य से 60 हजार बच्चों पर सर्वे किया था.
गंभीर स्थिति में आते हैं
डॉक्टरों की मानें तो शुरुआती समय में इस बीमारी के बारे में लोगों को पता नहीं होता. गंभीर होने के बाद बच्चों को अस्पताल में लाया जाता हैए जिसके चलते मुश्किल हो जाती है.
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शिशु रोग विभाग के डॉक्टरों की मानें तो एनआईसीयू में ज्यादा गंभीर हालत वाले नवजात, जिनमें समय से पहले जन्मे, कम वजन वाले, पीलिया, निमोनिया और संक्रामक बीमारियों से पीड़ित बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जबकि इंसेफलाइटिस से पीड़ित बच्चे भी अस्पताल में गंभीर स्थिति में पहुंचते हैं.
दिमागी बुखार के लक्षण
शरीर में तेज दर्द, उल्टी एवं घबराहट होना, गर्दन में दर्द, खुद में बदलाव दिखना, दौरा पड़ना, बोलने या सुनने में परेशानी होना, याददाश्त में कमी आना, सिर में कई दिनों तक फुंसी रहना, शरीर में जकड़न नजर आना, दूध कम पीना, चिड़चिड़ापन एवं बात-बात पर रोना, जले हुए मांस या सड़े हुए अंडे की बदबू की शिकायत
बच्चों में यह रोग ज्यादा देखने को मिलता है. कोशिश करें कि बच्चों को पूरे कपड़े ही पहनाएं, ताकि उनकी स्कीन ढकी रहे. साथ ही घर में मच्छर और अन्य कीट से बचने के लिए मच्छरदानी का इस्तेमाल करें. शाम को अंधेरा होते ही बच्चों का बाहर निकलना बंद कर दें, क्योंकि यही समय होता है जब मच्छर व अन्य कीट अधिक सक्रिय हो जाते हैं. बच्चों में टीकाकरण भी जरूरी है.
– डॉ एनके अग्रवाल, शिशु रोग विशेषज्ञ
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