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बिहार : विधायिकाओं के हंगामे रोकने के लिए उपाय रहते भी लागू नहीं होते

II सुरेंद्र किशोर II राजनीतिक विश्लेषक लगातार हंगामों के कारण इस देश की संसद में जारी गतिरोध पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चिंता जताई है, तंज भी कसा – पर क्या यह काफी है ? संसद की कार्यवाही की अस्तव्यस्तता, भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण पर सन 1997 में हमारी पूरी संसद ने लगातार […]

II सुरेंद्र किशोर II
राजनीतिक विश्लेषक
लगातार हंगामों के कारण इस देश की संसद में जारी गतिरोध पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चिंता जताई है, तंज भी कसा
– पर क्या यह काफी है ?
संसद की कार्यवाही की अस्तव्यस्तता, भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण पर सन 1997 में हमारी पूरी संसद ने लगातार पांच दिनों तक चिंता व्यक्त की थी।देश और लोकतंत्र की भलाईमें बेहतर करने के लिएसंसद ने सर्वसम्मतसंकल्प प्रस्ताव भी पारित किया था
– फिर भी क्या हुआ ?ढाक के वही तीन पात! फिर बैतलवा डाल पर!
मौजूदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी सिर्फ चिंता प्रकट करने के बदले कुछ ठोस व कड़े कदम उठाने चाहिए ताकि संसद की कार्यवाही को हास्यास्पद बनाने से अब तो रोका जा सके !
हद हो रही है
वैसे इसमें अलग से कुछ नहीं करना है. सिर्फ सदन की प्रक्रिया व कार्य संचालन नियमावली को कड़ाई से लागू कर देना है. नियम है कि सदन के काम में बाधा पहुंचाने वाले सदस्यों को सदन प्रस्ताव पास कर सदन से बाहर निकाल सकता है. खुद न निकलें तो उन्हें मार्शल के जरिये टांग कर बाहर किया जा सकता है. मार्शल आखिर हैं किसलिए?
पहले यह काम खूब होता था. तब अधिकतर सांसदों को संसद की गरिमा की चिंता थी. संभवतः संसदीय इतिहास में सबसे अधिक बार अदमनीय समाजवादी नेता राज नारायण को मार्शल आउट किया गया था.
पहले उत्तर प्रदेश की विधायिका से और बाद में संसद से. पर ऐसे कदम उठाने से पहले सत्ता पक्ष व पीठासीन अधिकारी को चाहिए कि वे प्रतिपक्ष को एक आखिरी मौका दें. हर साल ब्रिटिश संसद के 20 कार्य दिवसों के एजेंडा का निर्धारण प्रतिपक्ष करता है. ऐसा भारतीय संसद में भी क्यों नहीं हो सकता है?
विधान मंडल में भी संभव है. यदि ऐसा यहां भी होता है और उसके बावजूद कोई सदस्य या सदस्य समूह सामान्य दिनों में सदन के काम में बाधा डालता है तो उन्हें सदन से निकाल बाहर करने का पूरा अधिकार सदन को प्राप्त है. इसमें की गयी हर ढिलाई लोकतंत्र का नाम खराब करती है.
उस नियमों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता जिन्हें ऐसी ही जरूरतों के लिए बनाया गया है? जो सरकार या पीठासीन पदाधिकारी इस्तेमाल नहीं करते, हंगामे के लिए क्या वे भी उतना ही जिम्मेदार नहीं हैं? यदि अब भी यह काम नहीं किया जाएगा तो प्रधान मंत्री के कल के भाषण को घड़ियाली आंसू ही कहा जायेगा. पूरी संसद ने 1997 में भी ठीक इसी तरह पांच दिनों तक घड़ियाली आंसू ही तो बहाये थे !
– भूमि विवाद के हल का कर्नाटकी तरीका
कर्नाटका में भूमि विवाद के मामलों के निपटाने के लिए दो ही स्तर हैं. जिला स्तर का गठित भूमि ट्रिब्यूनल में पहली सुनवाई होती है. उसकी अपील सिर्फ हाईकोर्ट में की जा सकती है. यानी इन दो स्तरों पर ही मामला फरिया जाता है. चंपारण में भूमिहीनों के लिए आंदोलनरत पंकज बताते हैं कि बिहार में भूमि विवाद के मामले सात स्तरों से होकर गुजरते हैं.
हदबंदी से फाजिल जमीन के मामले की पहली सुनवाई एसडीएम स्तर पर होती है. उसकी अपील एडीएम के यहां की जा सकती है. फिर जरूरत पड़ने पर मामला डीएम के यहां जाता है. कमिश्नर, राजस्व बोर्ड, राज्य स्तरीय ट्रिब्यूनल और फिर हाईकोर्ट. इस काम में दशकों लगते हैं. चंपारण के हजारों भूमिहीन ऐसी ही समस्या से जूझ रहे हैं. जमीन का पर्चा लेकर घूम रहे हैं, पर जमीन नसीब नहीं हो रही है.
पंकज जी से मिली इस जानकरी से हैरानी हुई कि भितहरवा के भी करीब 200 भूमिहीन पर्चा मिल जाने के बावजूद जमीन पर कब्जा का दशकों से इंतजार कर रहे हैं. उनका मामला भी विचाराधीन है.
– क्या गांधी जी की कर्मभूमि भितहरवा के इस मामले को विशेष केस मान कर बिहार सरकार करेगी उसका जल्द निबटारा
नहीं करवा सकती? याद रहे कि गांधी ने 1917 में भितहरवा में रह कर चंपारण का ऐतिहासिक सत्याग्रह चलाया था. सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष को बिहार सरकार ने बहुत अच्छे ढंग से मनाया है.
– आयकर दाताओं की संख्या अब भी कम
यह अच्छी खबर है कि बिहार और झारखंड में आयकर दाताओं की संख्या बढ़ रही है. अब करीब 21 लाख आयकर दाता हैं. गत साल 16 लाख ही थे. शायद नोटबंदी का असर है. पर जानकार लोगों के अनुसार यह संख्या भी अभी कम ही है. आयकर चोरी जारी है. 21 लाख यानी प्रत्येक जिले में करीब 34 हजार आयकर दाता.
– बिहार और झारखंड में 62 जिले हैं. इनमें पटना, जमशेदपुर और रांची जैसे बड़े नगर भी हैं. याद रहे कि सालाना ढाई लाख रुपये से अधिक आय पर आयकर लगता है. क्या प्रत्येक जिले में औसतन 34 हजार लोगों की ही आय ढाई लाख रुपये से अधिक है ?
ऐसा कत्तई नहीं है. यानी आयकर की चोरी व्यापक है. जिस तरह वाणिज्य कर चोरी होती रही है. दूसरी ओर स्वास्थ्य, शिक्षा और आंतरिक-बाह्य सुरक्षा जैसे अत्यंत जरूरी कामों के लिए सरकारों के पास पर्याप्त धन नहीं हैं. सरकारें कड़ाई से टैक्स वसूलें और उन पैसों से आम आदमी के जीवन को आसान करें. दुश्मनों से घिरे इस देश की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाये.
क्या ऐसे मूल कर्तव्य का भी पालन इस देश में नहीं होगा? टैक्स चोर और बैंक लुटेरे अपनी मनमानी करते रहेंगे?
एक भूली बिसरी याद : सरदार पटेल के सख्त विरोध के कारण ही राज गोपालाचारी इस देश के राष्ट्रपति नहीं बन सके थे. इसके बावजूद राजाजी ने बाद में लिखा था कि ‘अगर आजादी के बाद सरदार पटेल इस देश के प्रधान मंत्री और जवाहर लाल नेहरू विदेश मंत्री बने होते तो देश के लिए बेहतर होता.’
यह बात अलग है कि जवाहर लाल नेहरू आम जनता के बीच अधिक लोकप्रिय थे. कई कारणों से गांधीजी उनके ही पक्ष में थे. पर राजाजी तो देश हित में सोचते थे न कि व्यक्तिगत राग-द्वेष के आधार पर किसी के बारे में कोई राय बनाते थे. राज गोपालाचारी को लोग राजा जी कहते हैं.
राष्ट्रपति के पद के लिए जवाहर लाल नेहरू ने राजाजी का नाम 1949 में कांग्रेस विधान पार्टी की बैठक में पेश किया था. उस पर जब पार्टी में भारी विरोध हो गया तो नेहरू जी ने धमकी दी कि यदि राजा जी नहीं बनाए गए तो मैं प्रधानमंंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा. इसके बावजूद जब बात नहीं बनी तो एक डेमोक्रेट की तरह नेहरू ने बहुमत की बात मान ली.
यानी राजेंद्र बाबू 1950 में राष्ट्रपति बना दिये गये. याद रहे कि 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन आजादी की लड़ाई के दौरान का सबसे बड़ा आंदोलन था।फिर भी राजाजी उस आंदोलन के खिलाफ थे. भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ तो आॅल इंडिया मुस्लिम लीग के अध्यक्ष एम ए जिन्ना और और हिंदू महा सभा के अध्यक्ष बी डी सारवरकर भी थे.
कम्युनिस्टों ने भी भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था. डॉ आम्बेडकर तो दलितों के हित में सरकार से कुछ सहूलियत पाने के लिए वायसराय के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य बन गए थे.
उन्होंने भी भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था. इन तमाम विरोधों के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन सफल रहा और 1947 में अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया.
और अंत में : दुष्यंत कुमार की एक रचना का एक छोटा अंश यहां पेश है-
जिंदगानी का कोई मकसद नहीं है,
एक भी कद आज आदमकद नहीं है।
राम जाने किस जगह होंगे कबूतर,
इस इमारत में कोई गुंबद नहीं है।

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