पटना: बिहार में 2011 में जापानी इन्सेफलाइटिस की उपस्थिति सूअरों में होने की पुष्टि हुई थी. पुष्टि होने के साथ ही जांच में जुटे विशेषज्ञों ने बिहार सरकार को इसकी जांच का सुझाव दिया था. पशुपालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 2011 में गया, मुजफ्फरपुर व अन्य जगहों पर जैपनीज इंसेफलाइटीस से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हुई थी.
इस दौरान दिल्ली से आये विशेषज्ञों ने एलीसा टेस्ट से यह पता लगाया था कि बिहार में सूअरों के संपर्क में आने के कारण कई बच्चों में जेइ हुई है. विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य विभाग को इस संबंध में गंभीरता से जांच कराने का सुझाव दिया था. विभागीय अधिकारी ने बताया कि सरकारी प्रक्रिया में देरी के कारण स्वास्थ्य विभाग की चिट्ठी पशुपालन विभाग को मिलने में काफी समय लग गया. इससे सूअरों में इसकी जांच में काफी देरी हुई. विशेषज्ञों ने सुझाव में कहा गया था कि यदि सूअरों में इस बीमारी के लक्षण का पता चलता है, तो समय रहते इससे निबटने में आसानी होगी. विभागीय सूत्र ने बताया कि हाल में सूअर में जेइ की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग का पत्र पशुपालन विभाग को उपलब्ध कराया गया. स्वास्थ्य विभाग के पत्र के आधार पर पशुपालन विभाग ने सूअरों में इसकी जांच का निर्णय किया है.
सूत्र ने बताया कि पशुपालन विभाग ने राज्य के सभी जिलों के जिला पशुपालन पदाधिकारी को पत्र लिख कर सूअरों में इस बीमारी के विषाणु के होने की जांच का निर्देश दिया है. विभाग के विशेषज्ञ ने बताया कि सूअरों से बीमारी को लेकर बिहार में कई बीमारी की जांच हुई है. विशेषज्ञ ने बताया कि पिछले साल मीजोरम में सूअरों से फैली घातक बीमारी प्रोसीन सिंड्रोम के बाद भारत सरकार के निर्देश पर बिहार में सूअरों की जांच हुई थी. जिसमें इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं मिला था. पिछले दिनों सूअरों की लगातार मौत के बाद जांच में पता चला था कि सूअरों में स्वाइन फीवर का लक्षण है.
स्वाइन फीवर से बचाव के लिए ढाई हजार टीके
पटना जिले के दानापुर व फुलवारी क्षेत्र के कई गांवों में फैले स्वाइन फीवर से बचाव की तैयारी जारी है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले एक सौ टीका जिला पशुपालन पदाधिकारी को उपलब्ध कराये गये थे. अब पुन: ढाई हजार टीका उपलब्ध कराया जा रहा है. तीन से चार दिनों में टीका मिलने की संभावना है.