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बिहार : उपचुनाव के बाद मिशन 2019 को लेकर मंथन

पटना : राज्य में अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम से 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का फाॅर्मूला नहीं निकाला जा सकता है. राज्य में बदले राजनीतिक समीकरण के बाद हुए उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले नहीं निकले. पहले से जो सीटें जिसके पास थीं, उसी के […]

पटना : राज्य में अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम से 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का फाॅर्मूला नहीं निकाला जा सकता है. राज्य में बदले राजनीतिक समीकरण के बाद हुए उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले नहीं निकले.
पहले से जो सीटें जिसके पास थीं, उसी के पास रहीं. फिर भी इस रिजल्ट ने जहां एक ओर एनडीए को यह सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि उसके वोट बढ़ने के बावजूद राजद से अररिया व जहानाबाद की सीटें क्यों नहीं छीन पाया, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन को यह मंथन करने की दरकार है कि पूरी कोशिश के बावजूद भभुआ सीट पर वह सफल क्यों नहीं हो पाया. दोनों खेमों में इस बात पर चर्चा शुरू हो गयी है कि 2019 को ध्यान में रखकर अपने सामाजिक आधार को बढ़ाना होगा. 2019 के लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी होगी.
उपचुनाव के पहले राज्य के दोनों गठबंधनों में मची उठापटक का भी इस उपचुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अररिया लोकसभा सीट पर मो तस्लीमुद्दीन के बेटे ने जदयू से पाला बदलकर राजद में शामिल हो गये थे. यह उनकी पिता की पारंपरिक सीट थी. अब इस परिणाम को लेकर सभी अपने-अपने तरीके से गुणा-भाग कर तो रहे हैं. पक्ष व विपक्ष दोनों शिविरों में चिंतन है.
राजद जहां अपनी दो सीटें बचाने में सफल रहा, वहीं भभुआ विधानसभा क्षेत्र में उसका कोई जोर नहीं दिखा. एनडीए में जदयू ने पहले ही उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं देने की बात कही थी. बाद में भाजपा की अपील के बाद उसे जहानाबाद में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन वहां मतदाताओं में वह जोश नहीं भर सकी कि गोल को बदला जा सके. एक तरह से यह चुनाव सहानुभूति की लहर पर जाकर अटक गया है. इसी को लेकर जदयू व भाजपा के नेता कह रहे हैं कि विपक्ष इस तरह की जीत पर न इतराये.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो उपचुनाव किसी सरकार के कामकाज की समीक्षा नहीं होती. फिर भी हारने वाले पर एक प्रेशर तो पड़ता ही है. उपचुनाव का परिणाम भी इसी मायने में देखा जा सकता है. उपचुनाव के परिणाम को 2019 के चुनाव परिणाम का ट्रेलर तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन राजनीतिक दल यह सोचकर हाथ-पर-हाथ धर कर बैठ भी नहीं सकते.

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