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पटना जू में घड़ियालों की संख्या फिर पहुंची 100 के पार
पटना : पटना जू विश्व का एकमात्र ऐसा जैविक उद्यान है, जहां गांगेेय घड़ियाल बड़ी संख्या में हैं. तीन वर्ष के भीतर इनकी संख्या दुबारा 100 को पार कर चुकी है. ऐसे में इन्हें फिर से गंडक या किसी अन्य उपयुक्त नैसर्गिक जलीय पर्यावरण में पहुंचाना मजबूरी बनती जा रही है. संभव है कि उन्हें […]
पटना : पटना जू विश्व का एकमात्र ऐसा जैविक उद्यान है, जहां गांगेेय घड़ियाल बड़ी संख्या में हैं. तीन वर्ष के भीतर इनकी संख्या दुबारा 100 को पार कर चुकी है. ऐसे में इन्हें फिर से गंडक या किसी अन्य उपयुक्त नैसर्गिक जलीय पर्यावरण में पहुंचाना मजबूरी बनती जा रही है. संभव है कि उन्हें एक बार गंडक में छोड़ना पड़े. दरअसल जू में घड़ियाल रखने की क्षमता 50 है. इस लिहाज से घड़ियालों की संख्या क्षमता से दोगुनी हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि अगर इसी तरह संख्या बढ़ती रही तो जू के सामने इनको सुरक्षित रखने में काफी कठिनाई आ सकती है.
जानकारों के मुताबिक पटना की आबोहवा और जू का वातावरण इन्हें इतना पसंद है कि बिना किसी विशेष प्रयास के 2014 में इनकी संख्या बढ़ कर 100 से अधिक हो गयी थी. जब जू में इन्हें रखने की जगह भर गयी और आवासन में परेशानी होने लगी तो दो खेपों में 30 घड़ियालों को यहां से वाल्मीकि टाइगर रिजर्व ले जाकर गंडक नदी में छोड़ दिया गया था.
जू के घड़ियालों को नहीं हुई परेशानी
जू के जीव-जंतु को बाहर ले जाने के विकल्प पर विचार करते समय वन्य प्राणी विशेषज्ञों की सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर होती है कि जू के कृत्रिम पर्यावरण में पले बढ़े जीव-जंतु बाहर के पर्यावरण में किस हद तक खुद को सहज रख सकेंगे. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि शिकार पकड़ने की आदत विकसित नहीं होने या अभ्यास छूट जाने की वजह से जीव जंतु शिकार पकड़ने में अक्षम रहते हैं और भूख से उनकी मौत हो जाती है. इस आशंका से बचाने के लिए पटना जू के घड़ियालों को गंडक में छोड़ने से पहले जिंदा मछलियों को पकड़ने की ट्रेनिंग दी गयी. इसके लिए मरी मछलियों की आपूर्ति बंद कर इनके इनक्लोजर के तालाब में जिंदा मछलियां छोड़ी जाने लगीं. जब मछलियों को पकड़ कर खाने में घड़ियाल पूरी तरह अभ्यस्त हो गये, तो इन्हें गंडक में छोड़ा गया. पहली बार इन्हें 8 अप्रैल, 2014 को गंडक में छोड़ा गया, जबकि दूसरी खेप मार्च, 2015 में छोड़ी गयी.
पहली खेप में 6 घड़ियाल छोड़े गये जबकि दूसरी खेप में 24 घड़ियाल. गंडक नदी में इनके मूवमेंट को देखने के लिए सभी घड़ियालों में रेडियो ट्रांसमीटर लगाया गया. मॉनीटरिंग से पता चला कि छोड़े गये ज्यादातर घड़ियालों ने वाल्मिकी नगर से 40 से 100 किमी के बीच के क्षेत्र में ठिकाना बनाया. एक घड़ियाल की लोकेशन 400 किमी दूर मिली, जहां वह धारा की दिशा में तैरता चला गया था. पिछले प्रयोगों की सफलता से स्पष्ट है कि गंडक का जलीय पर्यावरण पटना जू के घड़ियालों के लिए पूरी तरह अनुकूल हैं और उन्हें वहां छोड़ कर निश्चिंत हुआ जा सकता है.
संख्या को बढ़ाने मेंभी मिलेगी सफलता
गांगेय घड़ियाल कुछ दशक पहले तक गंगा और सोन में बड़ी संख्या में मिलते थे, लेकिन पिछले 20-30 वर्षों से इनकी संख्या तेजी से कम हुई है. जू के घड़ियालों को बाहर ले जाकर उसके प्राकृतिक जलीय पर्यावरण में छोड़ने से उनकी नैसर्गिक आबादी भी बढ़ायी जा सकती है. इससे गंडक जैसी नदियों में दुबारा इनकी गतिविधियां दिखेंगी.
जू में जीव जंतुओं की संख्या बढ़ जाने पर उसे जंगल या नदी में छोड़ा जाना एक बेहतर निदान है. प्रयास करूंगा कि घड़ियालों को गंडक या किसी नदी में ले जाकर छोड़ा जा सके.
कंवलजीत सिंह, निदेशक, पटना जू
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