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बिहार : घाटे के बजट वाले देश के नेताओं के महंगे-महंगे परिधान
II सुरेंद्र किशोर II राजनीतिक िवश्लेषक गलत आर्थिक नीतियों के कारण इस देश की 73 प्रतिशत संपत्ति एक प्रतिशत धनवानों के पास सिमट गयी है. दूसरी ओर केंद्र सरकार अपना खर्च चलाने के लिए यदा-कदा मार्केट से कर्ज लेती है और अतिरिक्त नोट छापती है. बल्कि उसे करना पड़ता है. दूसरी ओर, हमारे कोई नेता […]
II सुरेंद्र किशोर II
राजनीतिक िवश्लेषक
गलत आर्थिक नीतियों के कारण इस देश की 73 प्रतिशत संपत्ति एक प्रतिशत धनवानों के पास सिमट गयी है. दूसरी ओर केंद्र सरकार अपना खर्च चलाने के लिए यदा-कदा मार्केट से कर्ज लेती है और अतिरिक्त नोट छापती है.
बल्कि उसे करना पड़ता है. दूसरी ओर, हमारे कोई नेता कभी दस लाख का सूट पहन कर निकलते हैं, कभी कोई अन्य नेता 70 हजार का जैकेट. महात्मा गांधी कोई नादान नेता नहीं थे जो जान बूझ कर अधनंगा फकीर बने हुए थे! वे समझते थे कि आम जनता का विश्वास पाने के लिए उसी की तरह दिखना पड़ेगा.
रहना भी पड़ेगा. पर जहां विश्वास पाने का तरीका जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक हो, वहां खुद को जनता जैसे दिखने से क्या लाभ? अधिक दिन नहीं हुए जब इस देश के एक मुख्यमंत्री 70 लाख रुपये की घड़ी पहनने लगे थे. आलोचना होने पर उन्होंने पहनना छोड़ दिया था. दस लाख रुपये का सूट या 70 हजार रुपये का कोट कोई और ही देता है. वे दाता कौन हैं?
वही एक प्रतिशत लोगों में से ही तो कोई होंगे जिनके पास इस गरीब देश की 73 प्रतिशत दौलत है. कई साल पहले एक मुख्यमंत्री ने जब लाखों रुपये के नोटों की माला पहनी तो यह कहा गया कि ऐसी अमीरी देख कर उनका ‘वोट बैंक’ खुश होता है. कोई सांसद, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अपने वेतन के पैसों से आलीशान जीवन नहीं बिता सकता है.
उसे इसके लिए कर चोरों और घोटालेबाजों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपकृत करना पड़ता है. हमारे देश में यदि कर चोरी बंद हो जाये और घोटालों में संसाधन बर्बाद होने रुक जाएं तो सरकारों के बजट का आकार दोगुना हो सकता है.
बड़ा बजट यानी विकास व कल्याण कार्यों पर अधिक खर्च. पर उसमें दिक्कत है कि तब हमारे अधिकतर हुक्मरानों के आलीशान जीवन में बाधा आयेगी. वे अपनी अगली सात पीढ़ियों के लिए धनार्जन नहीं कर पायेंगे. वे न तो चार्टर्ड प्लेन से यात्रा कर पायेंगे और न ही महंगे सूट-बूट में दिखेंगे. हालांकि आज भी ईमानदार नेता जहां-तहां मौजूद हैं. पर उन्हें जनहित में जितना कारगर होना चाहिए, वे नहीं हो पा रहे हैं.
सर्वोत्तम चालाकी है ईमानदारी
कहा गया है कि ‘ओनेस्टी इज द बेस्ट पाॅलिसी.’यानी ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है. यह नहीं कहा गया कि ईमानदारी सर्वोत्तम गुण है. क्यों? गुण तो है ही. शब्द कोष में आप पायेंगे कि पाॅलिसी का अर्थ कूटनीति और चालाकी भी है. मैं यहां चालाकी शब्द को सटीक मान रहा हूं.
आज के संदर्भ में ईमानदारी को अपनी नीति यानी चालाकी बना लेने वाले कई नेता जन-जन के प्रिय हुए हैं. गांधी जी उन्हीं लोगों में से थे. गांधी जी पोरबंदर के दीवान के पुत्र थे. खुद उन्होंने लंदन से बैरिस्टरी की पढ़ाई की थी. उन्हें अधनंगा बनने की कोई मजबूरी नहीं थी. आजादी की लड़ाई के अधिकतर योद्धा पूरा कपड़ा पहनते ही थे. उनका भी काम चल ही रहा था. पर गांधीजी को तो अंतिम व्यक्ति से पूरा तादात्म्य स्थापित करना था. उन्होंने किया. देश का विश्वास जीता. देश को उसका लाभ भी मिला.
वरुण की अपील में संशोधन
वेतन में सौ प्रतिशत वृद्धि की मांग के बीच भाजपा सांसद वरुण गांधी ने अमीर सांसदों से अपील की है कि वे वेतन न लें. वरुण गांधी को इसके बदले अमीर सांसदों से यह अपील करनी चाहिए कि वे वेतन तो ले लें पर उसके अलावा किसी से कोई उपहार स्वीकार न करें. न तो वे दस लाख का सूट स्वीकार करें या 70 लाख का जैकेट. अपने ऐसे किसी महंगे परिधान को पहन कर कम से कम गांधी जयंती समारोह में तो कत्तई शामिल न हों. 70 लाख की घड़ी भी नहीं या कोई अन्य चीज भी उपहार में न लें, ऐसी अपील वरुण तो कर ही सकतेे हैं. इसी से इस गरीब देश का बहुत भला हो जायेगा. सांसदों के वेतन के बारे में डाॅ आंबेडकर ने कहा था कि उनको उचित वेतन तो मिलना ही चाहिए.
पटना के लिए मिनी रिंग रोड भी उपयोगी
पटना रिंग रोड के एलाइनमेंट को केंद्र सरकार की मंजूरी मिल गयी है. यह इस प्रादेशिक राजधानी के लोगों के लिए बहुत बड़ी खबर है. पर इसके साथ ही कुछ मिनी रिंग रोड की भी जरूरत पड़ेगी. ऐसी ही एक मिनी रिंग रोड की गुंजाइश पटना एम्स के पास बनती है. चार किलोमीटर की एक ग्रामीण सड़क एनएच -98 और एनएच -30 को जोड़ती है. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत निर्मित यह छोटी सड़क जमालुद्दीन चक से चकमुसा तक जाती है.
इसके चौड़ीकरण के बाद यह एक रिंग रोड का हिस्सा बन जायेगी. फिर तो हजारों की आबादी के लिए एम्स पहुंचना काफी आसान हो जायेगा. इस सड़क के चौड़ीकरण के लिए शायद जमीन के अधिग्रहण की जरूरत नहीं पड़ेगी. कम सरकारी खर्च में ही बहुत उपयोगी काम हो जायेगा. एम्स से अनिसाबाद तक प्रस्तावित एलिवेटेड सड़क से जहां गया और बख्तियारपुर की तरफ से मरीजों का एम्स पहुंचना आसान हो जायेगा, वहीं जमालुद्दीन चक-चकमुसा के चौड़ीकरण से पश्चिम तरफ से आने वालों को सुविधा होगी. याद रहे कि इस साल एम्स के विस्तार का काम पूरा होने वाला है. इससे मरीजों की आवाजाही काफी बढ़ जायेगी.
एक भूली-बिसरी बात
प्राच्य विद्या विशारद फ्रेडरिक मैक्स मूलर ने कहा था कि ‘अपने पूर्वजों या यूं कहें कि पूर्ववर्ती लोगों के अनुभवों का लाभ यदि हमें न मिले तो उन्हीं अनुभवों को प्राप्त करने के लिए हमें फिर से नया प्रयत्न प्रारंभ करना पड़ेगा. इतिहास ही हमें अपने पूर्ववर्ती लोगों के अनुभवों, उनकी सुविधाओं और कठिनाइयों का ज्ञान कराता है.
और इसी ज्ञान के सहारे हम उनकी सुविधाओं को ग्रहण करते हुए तथा उनकी कठिनाइयों से बचते हुए अपने जीवन मार्ग को अधिक सुविधापूर्ण तथा सफल बनाने का प्रयास करते हैं. केवल इतिहास ही हमें इस प्रकार की प्रेरणा दे सकता है कि हम अपने पूर्वजों से भी आगे और ऊंचे पहुंच सकें.’ मैक्स मूलर ने जो कुछ कहा है, वह सही है. पर सवाल है कि हमारे देश का जो इतिहास लिखा गया है और जो पढ़ायाजाता है, उनमें कितनी शुद्धता है और कितनी मिलावट? यदि हम सही इतिहास नहीं पढ़ेंगे तो सही सबक कैसे ग्रहण कर पायेंगे?
और अंत में
बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिर रहा है. एक ताजा सर्वेक्षण रपट केंद्र सरकार ने गत माह जारी की. उसके अनुसार आठवीं कक्षा के सिर्फ 57 प्रतिशत छात्रों ने भाषा विषय में सही जवाब दिये. गणित में 8वीं कक्षा के छात्रों की हालत और भी खराब है. उनमें से सिर्फ 42 प्रतिशत के जवाब संतोषजनक थे.
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