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बिहार : धीमे निर्माण की शिकार है प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना

विभागीय मॉनीटरिंग और बालू की कमी को बताया जा रहा है जिम्मेदार पटना : केंद्र व राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में मकान बनाने की गति बेहद धीमी है. इसके लिए विभागीय मॉनीटरिंग की कमी और बालू की कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है. साल 2016-17 में राज्य सरकार ने 6,37,658 […]

विभागीय मॉनीटरिंग और बालू की कमी को बताया जा रहा है जिम्मेदार
पटना : केंद्र व राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में मकान बनाने की गति बेहद धीमी है. इसके लिए विभागीय मॉनीटरिंग की कमी और बालू की कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है. साल 2016-17 में राज्य सरकार ने 6,37,658 मकान बनाने का लक्ष्य रखा था.
योजना के अनुसार वित्त वर्ष की समाप्ति पर यह काम 31 मार्च, 2017 तक पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन प्रक्रिया में देरी हुई. इस वजह से अब तक केवल 1484 मकान बनकर तैयार हुए हैं और इनकी जांच भी हो चुकी है. वहीं, साल 2017-18 में 5,38,959 मकान बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित है. प्रत्येक लाभुक को किस्तों में 1,20,000 रुपये और उग्रवाद प्रभावित इलाकों में 1,30,000 रुपये दिये जाते हैं. इसमें 60 फीसदी हिस्सा केंद्र और 40 फीसदी राज्य सरकार का होता है. ग्रामीण विकास विभाग के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि साल 2016-17 में 6,37,658 मकान बनाने का लक्ष्य था.
इसमें से 4,82,784 मकान बनाने का निर्णय हुआ. इसके लिए 4,71,309 लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ. इसमें से 4,53,962 मकान बनाने के लिए जियो टैगिंग की गयी लेकिन 4,35,487 मकानों को बनाने की स्वीकृति दी गयी. इन सभी लाभुकों से बैंक अकाउंट डिटेल मांगा गया. जांच के बाद 4,20,874 लाभुकों का बैंक अकाउंट सही पाया गया. इनमें से 3,81,359 लाभुकों को पहली किस्त की राशि दे दी गयी. वहीं दूसरी किस्त केवल 55,003 लोगों को मिली और तीसरी किस्त 3760 लाभुकों को ही मिली.
क्या कहते हैं अधिकारी
ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविंद कुमार चौधरी ने कहा कि साल 2011 की जनगणना में सामाजिक, आर्थिक और जातीय आधार पर गृहविहीन परिवारों को आवास उपलब्ध करवाने की यह योजना है. मकान निर्माण प्रस्तावों काम की जियो टैगिंग की जाती है. सभी लाभुकों के अकाउंट में सीधा पैसा जाता है. इसमें बिचौलियों की भूमिका नहीं है.
दूसरी और तीसरी किस्त में कम हो गये लाभुक
आवास बनाने के लिए हर लाभुक को घर का पिलिंथ तक बनाने के लिए पहली किस्त में 50,000 रुपये दिये जाते हैं. वहीं, उग्रवाद प्रभावित इलाकों में 55,000 रुपये दिये जाते हैं.
यह राशि 3,81,359 लाभुकों को दी गयी लेकिन केवल 55,003 लोगों ने अपने मकान का पीलिंथ निर्माण किया. इसलिए केवल इन्हीं लोगों को दूसरी किस्त का पैसा पीलिंथ से छत तक बनाने के लिए दिया गया. इसमें हरेक को 40,000 रुपये दिये गये और उग्रवाद प्रभावित इलाकों में 45,000 रुपये दिये गये.
इनमें से केवल 3760 लाभुकों ने ही दूसरी किस्त के पैसे का उपयोग किया और प्लिंथ से छत तक बनवाया. इसके बाद केवल इन्हीं को फिनिशिंग, प्लास्टर, पेंट, खिड़की, दरवाजा और फ्लोर फिनिशिंग के लिए तीसरी किस्त का पैसा दिया गया. इसके तहत हरेक को 30,000 रुपये दिये गये. इन सभी में 1484 मकान बनकर तैयार हुये और इनकी जांच पूरी हुयी.
लक्ष्य प्राप्ति में आ रही है समस्या
इस योजना के लाभुकों और विभागीय अधिकारियों की मानें तो एक जुलाई, 2017 से राज्य में शुरू हुई बालू की किल्लत से इसकी कीमत चार से पांच गुना बढ़ गयी. इससे मकानों का निर्माण कार्य बाधित हुआ. वहीं, नियमानुसार निर्माण कार्य पूरा नहीं होने से ही विभाग ने लाभुकों को किस्तों का भुगतान रोक दिया. इस वजह से लक्ष्य प्राप्ति में समस्या हो रही है.

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