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बिहार : सरकारी मकानों पर कब्जा करानेवाले अफसरों पर कार्रवाई जरूरी
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक पटना के बहादुरपुर में बिहार राज्य आवास बोर्ड ने बहुत पहले सैकड़ों फ्लैट्स बनवाए़ आज उनकी स्थिति क्या है? उनकी स्थिति की एक झलक खुद आवास बोर्ड के एक विज्ञापन से मिलती है़ वह विज्ञापन इसी 27 नवंबर को स्थानीय अखबार में छपा है़ विज्ञापन में दो सौ से अधिक फ्लैटों […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
पटना के बहादुरपुर में बिहार राज्य आवास बोर्ड ने बहुत पहले सैकड़ों फ्लैट्स बनवाए़ आज उनकी स्थिति क्या है? उनकी स्थिति की एक झलक खुद आवास बोर्ड के एक विज्ञापन से मिलती है़ वह विज्ञापन इसी 27 नवंबर को स्थानीय अखबार में छपा है़ विज्ञापन में दो सौ से अधिक फ्लैटों के नंबर प्रकाशित किये गये हैं.
साथ ही उसी विज्ञापन के जरिये कार्यपालक अधिकारी की ओर से यह नोटिस निकाला गया है कि ‘इन अनावंटित फ्लैटों में रह रहे अवैध अतिक्रमणकारियों को सूचित किया जाता है कि सूची प्रकाशन के पंद्रह दिनों के भीतर वर्णित फ्लैटों को खाली कर उन्हें बोर्ड को सौंप दें. अन्यथा, कानूनी प्रक्रिया अपना कर उन्हें खाली करवा दिया जायेगा़ उधर इसी बुधवार को यह खबर भी आयी कि दानापुर रेल मंडल के सैकड़ों सरकारी आवास अवैध कब्जे में हैं.
सवाल यह है कि क्या इतनी अधिक संख्या में फ्लैट्स व मकान पर कब्जा एक दिन हुआ होगा? ऐसा नहीं है़ इन मकानों पर कब्जे की खबर देख कर लगता है कि ये फ्लैट्स न हों, मानो फुटपाथ हों! जो चाहे जब चाहे, कब्जा कर ले! शासन लाचार! क्या संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना ऐसा कब्जा संभव है? यह कब्जा क्या सिर्फ इन्हीं दो जगहों में ही है? कत्तई नहीं. बल्कि ऐसी खबरें देश के विभिन्न स्थानों से आये दिन आती रहती हैं. इस समस्या के स्थायी हल के लिए सरकार के पास कौन-कौन से उपाय हैं? उपाय होंगे ही. पर वे उपाय अब कारगर नहीं हो पा रहे हैं.
अब सरकारों को कुछ नया सोचना होगा. यह तो मानी हुई बात है कि संबंधित अफसरों की सांठगाठ या मौन सहमति के बिना ऐसे अतिक्रमण नहीं हो सकते हैं. उन अफसरों पर जब तक सबक सिखाने लायक कार्रवाइयां नहीं होंंगी, तब तक सरकारी मकानों पर कब्जे होते ही रहेंगे़ और उसके असली हकदार कठिनाइयां झेलते रहेंगे़
एक पुण्य स्मृति ऐसी भी : कोई नेता अपनी पुस्तक किसी पत्रकार की पुण्य स्मृति में समर्पित करे, यह मैंने पहली बार देखा़ झारखंड के संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने अपनी नयी पुस्तक ‘समय का लेख’ अपने पत्रकार मित्र दिवंगत फरजंद अहमद को समर्पित की है़ एक बड़े नेता और बड़े पत्रकार का यह संबंध अलग ढंग का लगता है़ जीवनकाल में तो कई पत्रकार कई नेताओं करीबी रहते हैं. पर रिटायर होते ही एक-दूसरे को भुला देने की परंपरा है़ पर यहां रिटायर कौन कहे, दिवंगत हो जाने के बाद भी सरयू राय अपने मित्र पत्रकार को याद कर रहे हैं.
कैसे बढ़े सिद्ध दोषियों की संख्या : अदालती सजाओं का प्रतिशत घट रहा है़ यही हाल लगभग पूरे देश का है़ पर, अभी दिल्ली का एक नमूना पेश है़ सिद्ध दोषियों की संख्या कम होने का एक बड़ा कारण है फाॅरेंसिक जांच प्रयोगशालाओं की देश भर में भारी कमी़ पूरी दिल्ली में ऐसी सिर्फ एक ही प्रयोगशाला है़
ताजा खबर के अनुसार उस प्रयोगशाला में डीएनए के करीब 5 हजार नमूने जांच के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं. वैसे वहां नमूनों की कुल संख्या 9 हजार हैं. याद रहे कि दोषियों को अदालतों से सजा दिलाने में डीएनए की जांच नतीजे बड़े काम आते हैं. पर उसके अभाव में अधिकतर मामलों में केस कमजोर हो जाते हैं. हालांकि, अपराधियों के बच जाने के कई और कारण भी हैं.
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि किसी की इच्छा के खिलाफ उसके डीएनए के नमूने नहीं लिए जा सकते़ इस फैसले का लाभ उठाकर अनेक शातिर अपराधी अपने नमूने नहीं देते़ शासन को चाहिए कि वह उपर्युक्त फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार करे़
आखिर कौन करेगा गंगा की सफाई? : यदि मोदी-योगी की सरकारें गंगा की सफाई नहीं करेंगी तो फिर भला कौन करेगा? गाय और गंगा की बात करने वाली भाजपा की केंद्र में बहुमत की सरकार है़
उत्तर प्रदेश में भी़ यहां तक कि उत्तराखंड में भी़ हालांकि भाजपाई ही कौन कहे, समाजवादी नेता डाॅ राम मनोहर लोहिया ने भी कभी सरकार से मांग की थी कि ‘नदियां साफ करो़’ पर पिछली सरकारों ने तो गंगा जैसी बहुमूल्य नदी को जहां-तहां बड़े नाले में परिणत कर दिया़ यही आरोप पहले भाजपा लगाती थी़ अब वही सरकार में है तो कुछ करे़ मौजूदा सरकार कुछ तो कर रही है़ नितिन गडकरी ने गंगा रिवर फ्रंट विकसित करने के लिए भारतीय मूल के कुछ विदेशी पूंजीपतियों को तैयार किया है़
वह अच्छी बात है़ वह काम भी जरूरी है़ पर गंगा के पानी के औषधीय गुणों को बरकरार रखने के लिए क्या हो रहा है? पटना के पास गंगा नदी में जो पानी है, क्या वह गंगा जल है?
या सहायक नदियों और नाले-नालियों का जल है? क्या गंगा के किनारे बसे नगरों के गंदे पानी को साफ करके उसे गंगा में गिराया जायेगा और उसे ही गंगा जल कह दिया जायेगा? वास्तविक गंगा जल में औषधीय गुण हैं. गंगा जल पर 19 वीं सदी में ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन ने रिसर्च किया था. जांच के बाद उसने पाया था कि गंगा जल के वायरस हैजा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुस कर उसे नष्ट कर देते हैं. इनके अलावा भी गंगा जल में अनेक गुण हैं. गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में वैसे गुणों वाला गंगा जल मौजूद है. उसे फिर से हासिल करने का अधिकार बिहार और बंगाल के लोगों को कब मिलेगा?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव : बहुजन समाज पार्टी उपचुनाव नहीं लड़ती. उत्तर प्रदेश की सिकंदरा विधानसभा उपचुनाव भी वह नहीं लड़ रही है. क्या उसका लाभ सपा को मिलेगा? या कांग्रेस को? पिछले आम चुनाव में भाजपा के मथुरा प्रसाद पाल करीब 38 हजार मतों से विजयी हुए थे. बसपा दूसरे स्थान पर थी. भाजपा ने दिवंगत विधायक के पुत्र को टिकट दिया है.
कांग्रेस के भी उम्मीदवार हैं. नगर निकायों के चुनावों में बाजी मार लेने के बाद अब मुख्यमंत्री योगी की परीक्षा सिकंदरा में होगी. वहां 21 दिसंबर को मतदान होगा और 24 दिसंबर को रिजल्ट. याद रहे कि इससे पहले के विधानसभा उप चुनावों में बसपा की अनुपस्थिति का लाभ आमतौर पर सपा को मिलता रहा है.
एक भूली-बिसरी याद : पंडित सुंदर लाल ने ‘भारत में अंग्रेजी राज’ नामक पुस्तक लिखी है.किताब दो भागों में है. अंग्रेजों के छल-कपट के उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि कच्छ के राजा को अंग्रेजों ने यह कह कर डराया कि तुम पर सिंध के मुसलमान और अमीर हमला करने वाले हैं. यदि तुमने अंग्रेज कंपनी के संरक्षण में आना स्वीकार नहीं किया तो अंग्रेज भी तुम्हारे खिलाफ सिंध के अमीरों को मदद देने को मजबूर हो जायेंगे.
सुंदर लाल ने लिखा कि इस विचित्र न्याय के औचित्य पर बहसकरने की आवश्यकता नहीं. न ही यह बताने की आवश्यकता है कि कच्छ पर सिंध के हमले की आशंका बिलकुल झूठ थी. लाचार होकर सन 1816 में कच्छ के राव ने कंपनी के साथ संधि कर ली. इस तरह कच्छ की स्वाधीनता समाप्त हो गयी और पश्चिमी भारत में अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ गया. पंडित सुंदर लाल ने छल-कपट से सत्ता हथियाने के कुछ अन्य उदाहरण भी दिये हैं.
और अंत में : सन 1967 से पहले कई राजनीतिक दल छोटे जरूर थे, पर उनमें नैतिक बल अधिक था. सन् 2017 आते-आते कई राजनीतिक दल आकार में तो बड़े हो चुके हैं, पर उनमें नैतिक बल घट चुका है.
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