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जानें कौन है ये बुजूर्ग महिला जिन्‍होंने BIHAR से DELHI तक फैला रखा है बिजनेस

बिहार की मधुबनी पेंटिंग को राजकीय और राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रहीं अंबिका देवी के काम करने का जज्बा 65 साल की उम्र में भी नहीं हुआ है कम. पिछले 25 वर्षों से मधुबनी पेंटिंग का काम कर रही अंबिका देवी आज 65 वर्ष की उम्र में भी […]

बिहार की मधुबनी पेंटिंग को राजकीय और राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रहीं अंबिका देवी के काम करने का जज्बा 65 साल की उम्र में भी नहीं हुआ है कम. पिछले 25 वर्षों से मधुबनी पेंटिंग का काम कर रही अंबिका देवी आज 65 वर्ष की उम्र में भी इतनी लगन और बारीकी से अपनी कला को निखारती हैं कि देखनेवाला अनायास ‘वाह!’ कहने पर मजबूर हो ही जाता है. मूलत: बिहार के मधुबनी जिले की रहनेवाली अंबिका देवी अब तक देश के लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी इस कलाकारी के लिए तारीफें बटोर चुकी हैं.
राज्य से राजधानी का सफर
मधुबनी जिले के अमूमन सभी घरों में आज भी लोग शौक से मधुबनी पेंटिंग और पेपर मेसी वर्क करते हैं. ललिता देवी ने भी ऐसे ही घर में अम्मा-चाची आदि को बनाते देख कर यह कला सीखी. शादी हुई, तो ससुराल में भी फुरसत के समय थोड़ा-बहुत बनाती रहती थी. कभी-कभार दुकानों में तो कभी जान-पहचान में उनका बनाया सामान बिक जाया करता था. दोनों बेटे बड़े हुए, तो नौकरी के लिए दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहने चले आये.
कुछ समय बाद अंबिका भी अपने बेटों के पास रहने आ गयी. करीब 10 वर्ष पूर्व यही रहते हुए उन्होंने अपने परिवार के साथ मिल कर बिजनेस के तौर पर स्थापित करने का निर्णय लिया.
अपने साथ अपने कुनबे को भी किया समृद्ध
अंबिका पिछले 25 वर्षों से मधुबनी पेटिंग और पेपर मेसी का काम कर रही हैं. वह बताती हैं कि- ”गांव में ज्यादा आमदनी नहीं होती थी, इसलिए दिल्ली आ गयी. भारत सरकार के उद्यमिता विकास मंत्रालय से स्वरोजगार कार्ड बनवाया.
इससे राज्य स्तर पर आयोजित मेलों में भागीदारी निभा पाती हूं. अपना बिजनेस खड़ा करने के लिए 40-50 हजार रुपये की शुरुआती पूंजी लगायी थी. आज हर महीने 20-25 हजार रुपये कमा लेती हूं. पूरा परिवार इसी काम में लगा है. गांव के लोगों से सामान बनवा कर मंगवाती हूं, ताकि उनकी भी आमदनी हो जाये. हर किसी के लिए तो दिल्ली जैसे बड़े शहर में आकर बसना संभव नहीं है न.”
कला को दिलायी अंतरराष्ट्रीय पहचान
अंबिका देवी अब तक दिल्ली के अलावा देश के कई प्रमुख स्थानों जैसे कि आगरा, मद्रास, हैदराबाद, गोवा, गुजरात, राजस्थान, मुंबई, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं. पटना में आयोजित होनेवाले सरस मेले और उद्यमिता विकास संस्थान द्वारा आयोजित मेले में अब तक एक बार ही स्टॉल लगाने का मौका मिला है. अंबिका बताती हैं कि- ”दिल्ली हाट में उनके सामानों की सबसे ज्यादा बिक्री होती है. विदेशी पर्यटक भी बहुतेरे आते हैं. अगर उन्हें कोई चीज पसंद आ जाये, तो वे ज्यादा मोल-भाव नहीं करते. हमारी मेहनत को समझते हुए उचित मूल्य दे देते हैं. ”
जीवन के अंतिम पड़ाव में भी अंबिका देवी जिस लगन और मेहनत से बिहार की इस पारंपरिक कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिला रही हैं, वह काबिले-तारीफ है. बावजूद इसके राज्य या केंद्र सरकार द्वारा उन्हें कभी पुरस्कृत नहीं किया गया है और न ही कभी अन्य किसी तरह की आर्थिक सहायता प्रदान की गयी है.

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