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पानी के लिए लोग भटकने को मजबूर
बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर भी पानी के लिए होती है मारामारी नवादा नगर : शहरी क्षेत्र में पेयजल का अभाव होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से आनेवाले लोगों को भीषण गरमी में भी पानी के पीने के लिए तरसना पड़ रहा है. बाजारों में पानी के चापाकल या नलका लगाने के स्थानों को […]
बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर भी पानी के लिए होती है मारामारी
नवादा नगर : शहरी क्षेत्र में पेयजल का अभाव होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से आनेवाले लोगों को भीषण गरमी में भी पानी के पीने के लिए तरसना पड़ रहा है. बाजारों में पानी के चापाकल या नलका लगाने के स्थानों को अतिक्रमित कर दिया गया है. पूरे मेन रोड एरिया में सरकारी चापाकल एक या दो जगहों पर हैं, लेकिन अतिक्रमण के कारण पता ही नहीं चलता है कि वहां चापाकल है भी या नहीं. पुराना बाजार, मेन रोड, सोनारपट्टी, गोला रोड, विजय बाजार व अन्य जगहों पर पेयजल की घोर किल्लत देखने को मिल रही है.
इसके अलावा रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर भी पानी की किल्लत दिख रही है. स्टेशन पर इक्का-दुक्का नल हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं. साथ ही जिस जल टावर से नल के जरिये पानी आता है, वह पानी काफी गंदा होता है. वहीं, नगर में बने भगत सिंह चौक बस स्टैंड और तीन नंबर बस स्टैंड के पास एक-दो चापाकल काम करते हैं, जिससे पैसेंजरों को राहत मिलती है. हालांकि अवैध तरीके से संचालित हो रहे रजौली बस स्टैंड, सद्भावना चौक से होकर जानेवाले वाहनों में सवार यात्रियों को पानी के लिए परेशान होना पड़ता है.
पीएचइडी व नगर पर्षद नहीं दे रहा ध्यान :शहरी क्षेत्र में नगर पर्षद के साथ ही पीएचइडी द्वारा पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है लेकिन इन दिनों दोनों ही विभागों द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
नगर पर्षद द्वारा सामान्यत: हर वार्ड में तीन से चार चापाकल लगाये गये हैं, लेकिन शहरी क्षेत्र के वार्डों में चापाकल या नल लगाने के लिए जगह हीं नहीं मिल पाती है. वहीं, जहां पहले से पानी के श्रोत बने हुए थे, उन्हें भी किसी तरह से बंद किया जा रहा है. बताया जाता है कि फलगली एरिया में लगे एक चापाकल व नल तथा मेन रोड भदानी गली के पास बने चापाकल से पूरे क्षेत्र के दुकानदार प्यास बुझाते हैं. नगर पर्षद के सूत्रों का कहना है कि पिछले पांच सालों में क्षेत्र में लगभग तीन सौ चापाकल लगाये गये. लेकिन, कुछ ही चापाकल दिखते हैं. मुख्य मार्ग में चापाकल खोजे नहीं मिलता है.
ठेलेवाले बनते हैं सहारा :पानी पीने के लिए लोगों को ठेले व खोमचा लगानेवाले लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है. प्यास बुझाने के लिए लोगों को मजबूरन तरबूज, सत्तू, चना, चाट-पकौड़े आदि खाना पड़ता है ताकि वे पानी भी पी सकें.
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