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श्रमिक हुए बेकार, गदहों की लगी हजारों में बोली
समस्या. घाटों से बालू उठाव बंद होने से विकास कार्यों पर असर गदहे पर बोझ ढोने के पुश्तैनी धंधे से जुड़े लोगों के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल का फैसला जिले में वरदान बन गया है. घाटों से बालू का उठाव बंद होने से विकास कार्य बंद हो गये. श्रमिक बेरोजगार हो गये है़ लेकिन गदहों की […]
समस्या. घाटों से बालू उठाव बंद होने से विकास कार्यों पर असर
गदहे पर बोझ ढोने के पुश्तैनी धंधे से जुड़े लोगों के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल का फैसला जिले में वरदान बन गया है. घाटों से बालू का उठाव बंद होने से विकास कार्य बंद हो गये. श्रमिक बेरोजगार हो गये है़ लेकिन गदहों की मांग बढ़ गयी है़ शहर में गदहों से बालू मंगवाया जा रहा है.
नवादा कार्यालय : बालू का उठाव बंद हुआ तो हाहाकार मच गया. एकबारगी सारे काम ठप पड़ गये. भवन निर्माण सहित विकास के दूसरे कामों पर इसका असर पड़ा. शहर के प्रजातंत्र चौक पर रोज लगने वाला अघोषित मजदूर हाट में सन्नाटा छा गया. यहां मजदूरों की रोज बोलियां लगती थी. अब उन्हें कोई पूछता तक नहीं. काम के लिए इन मजदूरों को रोज चिरौरी करनी पड़ रही है.
दिन बीतते गये. मजदूर बेकार होते चले गये. अब तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बालू उठाव को हरी झंडी नहीं दी है. लिहाजा जिले भर में काम पर अनिश्चित समय के लिए ब्रेक लगा हुआ है. इसी बीच लोगों ने गदहों की तलाश शुरू की. स्थानीय गदहे बालू उठाव के काम पर लगाये गये. इसने मजदूरों को पूरी तरह बेकार बना दिया. इसके पुश्तैनी धंधे से जुड़े लोगों के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल का फैसला वरदान बन गया है. बालू उठाव के मामले में शहरवासियों को गदहों का सहारा मिला है. कहते हैं न-जब खूदा मेहरबान, तो गदहा पहलवान.
35-40 रुपये प्रति ट्रिप की दर से लिया जा रहा किराया : शहर में नदी से बालू ढोने के लिए गदहों का सहारा लिया जा रहा है. प्रति गदहा 35 से 40 रूपये प्रति ट्रिप लिया जा रहा है. इतने पैसे में गदहा के दोनों पाठ पर बालू लाद कर लाया जा रहा है. इससे छोटे-मोटे काम बड़े आसानी से किये जा रहे हैं. इनका भी धंधा एक बार चल पड़ा है. इस्लाम मियां कहते हैं- हमें पूछता कौन था. अब तो धोबी भी हमारी मदद नहीं ले रहा था. पर, अल्लाह हम पर भी मेहरबानी की बरसात कर गये हैं. इन दिनों अच्छा चल रहा है. तगड़ी कमाई हो जा रही है.
रिश्तेदारों के यहां से भी मंगाये गये गदहे
बालू उठाव की जरूरत व बढ़ती मांग को लेकर इससे जुड़े लोगों ने अपने रिश्तेदारों का यहां से भी गदहे मंगवाये हैं. नूर मियां कहते हैं -हम लंबे समय से गदहों के जरिये बोझ ढोने का काम करते हैं.
हमारे गदहे पूरे दिन काम करने में सक्षम हैं. मांग भी बढ़ी है. लिहाजा हमने अपने ससुराल से चार गदहे मंगवा लिया है. अब इसकी मदद से लोगों की जरूरतें पूरी कर रहा हूं. यह तो ग्रीन ट्रिब्यूनल वालों की मेहरबानी है कि हमें भी काम मिल गया. बरना मशीनी युग में हम तो हाशिये पर चले गये थे.
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