वारिसलीगंज : किताब दर्शन है, ज्ञान है व भविष्य का आधार है. चाहे वह कहानी की किताब हो या स्कूल के पाठ्यक्रम की. लेकिन, हाल के दिनों में स्कूली किताबों पर मानें तो ग्रहण सा लग गया है. निजी विद्यालयों के किताबों की कीमत आसमान छूने से अभिभावक का पसीना छूट रहा है. सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में भले ही संसाधनों की जितनी व्यवस्था लागू कर दे, लेकिन निजी विद्यालयों के चका-चौंध के आगे इनकी प्रतिष्ठा धूमिल होती जा रही है. निजी विद्यालयों में विभिन्न प्रकाशनों की चलने वाली पुस्तकों का मूल्य इतना बढ़ गया है कि किताबों को खरीदने में अभिभावकों की पॉकेट ढीली हो रही है. फिर भी बच्चों के भविष्य के लिए अभिभावक विद्यालय के दिशा-निर्देश पर ही अमल कर रहे हैं.
हर साल सिलेबस में चेंज
अगर आपके बच्चें निजी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं और आप यह सोच रहे हैं कि आपके बड़े बेटे की किताब से छोटा बेटा पढ़ लेगा, तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी पाले हुए हैं. यहां तो हर साल सिलेबस चेंज होते रहता है. जिस कारण अभिभावकों को अधिक खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा है. इन सबके पीछे कमीशन का खेल होता है, जो प्रकाशन समूह स्कूल प्रबंधन को जितना ज्यादा कमीशन देता है, उसी प्रकाशन की किताबें स्कूलों में चलायी जाती है.
स्कूल में ही मिलेगी किताब
बाजारीकरण के इस दौर में कदम से कदम मिलाते हुए अब कहा जाय तो एक तरह से किताबें की दुकान लगाना शुरू कर दिया है. अधिकतर विद्यालय अपने कैंपस में ही किताब रखते हैं. इसके कारण अभिभावक पर बतौर दबाव बनाया जाता है कि वह अपने बच्चों की किताब स्कूल से ही खरीदें, जबकि वहां बाजार की अपेक्षा किताब का दाम ज्यादा होता है.