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अभिलेखों व शिलापट्ट में मिले कई प्रमाण

विश्व विरासत में नालंदा को शामिल होने का सपना जून 2016 तक ही पूरा होने की उम्मीद है. इस संबंध में यूनेस्को को भारत द्वारा 400 पन्नों के डोजियर की स्थलीय जांच के लिए इंटर नेशनल काउंसिल ऑन मॉनुमेंटस एंड साइट्स (इकोमॉस) के एक्सपर्ट प्रो. मसाया मसूई दो दिवसीय दौरे पर बुधवार को नालंदा पहुंचे. […]

विश्व विरासत में नालंदा को शामिल होने का सपना जून 2016 तक ही पूरा होने की उम्मीद है. इस संबंध में यूनेस्को को भारत द्वारा 400 पन्नों के डोजियर की स्थलीय जांच के लिए इंटर नेशनल काउंसिल ऑन मॉनुमेंटस एंड साइट्स (इकोमॉस) के एक्सपर्ट प्रो. मसाया मसूई दो दिवसीय दौरे पर बुधवार को नालंदा पहुंचे. प्रो मसूई को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में पूरी जानकारी दी गयी.
बिहारशरीफ/सिलाव : प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर को विश्व विरासत में शामिल करने के भारत के दावों की जांच के लिए प्रो. मसाया मसूई दो दिवसीय दौरे पर नालंदा पहुंच गये हैं. प्रो. मसूई की यह जांच पहले चरण की जांच है. इसके बाद भी बिना बताये नालंदा खंडहर की जांच भी की जायेगी. जिसमें वास्तविक हकीकत का आकलन किया जायेगा. प्रो. मसूई के रिपोर्ट के आधार पर ही नालंदा खंडहर को विश्व विरासत में शामिल होने का रास्त साफ होगा.
जून 2016 तक इस बात का फैसला हो जायेगा कि नालंदा खंडहर विश्व विरासत में शामिल होगा अथवा नहीं. मगर पुरातत्व विभाग के अधिकारी इस बार पूरी तरह आश्वस्त हैं कि नालंदा खंडहर इस बार विश्व विरासत में शामिल हो कर रहेगा. जांच अधिकारी प्रो. मसूई के जापान के होने व बौद्ध धर्म से जुड़े हो सकने से इस बार विश्व विरासत में शामिल होने की संभावना अधिक दिख रही है.
यहां कई विषयों में उत्कृष्टता से होती थी पढ़ाई:आइकोमौस के एक्सपर्ट प्रो. मसूई को पुरात्वविदों ने जानकारी दी कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास भगवान महावीर एवं महात्मा बुद्ध के समय छठी शताब्दी ई.पू. से प्रारंभ होता है. यह स्थल भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य सारिपुत्र के जन्म और निर्वाण स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. 5 वीं शताब्दी ई.पू. में यह महान शिक्षण संस्थान के रूप में उन्नत हुआ.
यहां दूरस्थ देशों के छात्र भी शिक्षा ग्रहण के लिए आते थे. इनमें चीनी यात्री हृवेनसांग, इत्सिंग प्रमुख हैं.द्वारपाल लेते थे छात्रों का एडमिशन: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के चार दरवाजे थे. चारों दरवाजे पर द्वारपाल पंडित तैनात थे. इस संस्थान में दाखिला के लिए आने वाले छात्रों का द्वारपाल पंडित ही परीक्षा लेते थे. द्वारपाल पंडित की परीक्षा में पास होने वाले छात्रों का ही इस संस्थान में दाखिला होता था. यहां करीब दस हजार छात्र और एक हजार शिक्षक कार्यरत थे.
गांवों के दान पर चलता था संस्थान: नालंदा खंडहर की खुदाई के दौरान प्राप्त अभिलेखों व शिलापट्ट से यह प्रमाणित होता है कि इस संस्थान को चलाने के लिए तत्कालीन राजा ने करीब दस गांवों को संस्थान को दान में दिया था.
इन गांवों से प्राप्त दान से ही इस संस्थान का संचालन किया जाता था. यदा-कदा राजा भी सहयोग किया करते थे. इसकी स्थापना गुप्त वंशीय शासक कुमार गुप्त प्रथम (413-455 ई.) में की गयी थी. कनौज के राजा हर्षवर्धन (606-647 ई.) एवं पाल शासकों (8 वीं से 12 शताब्दी) द्वारा इस संस्थान को वित्तीय सहायता दी गयी.
नि:शुल्क आवासीय पढ़ाई की व्यवस्था:इस संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों के रहने, खाने-पीने व पढ़ाई के लिए संसाधन का सारा खर्च संस्थान द्वारा उठाया जाता है. इसके लिए छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था.
1206 के आक्रमण में हुआ नष्ट:आइकोमौस के एक्सपर्ट प्रो. मसूई को बताया गया कि यह विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान 12 वीं शताब्दी तक पूरी दुनिया में ज्ञान की रोशनी फैलाता रहा. 1206 में बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इस संस्थान में आग लगा कर पूरी तरह नष्ट कर दिया.
प्रो. मसूई को बताया गया कि 1915 से 1937 एवं 1974 से 1982 के दौरान बड़े पैमाने पर इसका उत्खनन कराया गया. उत्खनन में लगभग एक वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े क्षेत्र में ईंटों से निर्मित सुव्यवस्थित छह बृहत मंदिर, 11 बौद्ध विहार के अवशेष प्राप्त हुए हैं. सभी विहारों की संरचना तथा बाहृय स्वरूप लगभग समान है.
इसके आंतरिक बनावट में खुले विशाल आंगन के चारों तरफ बरामदायुक्त कक्ष, मूल्यावान वस्तुओं को रखने के लिए गुप्त कक्ष, उपरी मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां, कुआं, अन्नागार, एकल प्रवेश द्वार, पूजा एवं मंत्रणा के लिए सामान्य कक्ष आदि का प्रावधान किया गया है.
खुदाई में मिले हैं कई कलाकृतियां
प्रो. मसूई को बताया गया कि इस खंडहर के उत्खनन के दौरान भित्ति चित्र, चूना-मिट्टी से निर्मित भगवान बुद्ध की मूर्तियां, पत्थर, कांसा, कई कलाकृतियां, भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं की प्रतिभाएं, विष्णु, शिव-पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, गणोश, सूर्य की प्रतिमाएं, ताम्र पत्र, अभिलेख, मुहर, पकी मिट्टी से बनी वस्तुएं, सिक्के आदि मिले हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रो. मसूई को दी गयी जानकारी के आधार पर नालंदा खंडहर को विश्व विरासत में शामिल होने की संभावनाएं प्रबल हो गयी हैं.

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