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…ताकि बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सके
मुजफ्फरपुर: न अपनों का प्यार है और न अपनों का दुलार, पास कुछ है तो भविष्य के सुनहरे सपने और कुछ बनने का इरादा. मुन्ना पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना चाहता है तो मुन्नी मां का नाम रोशन करना चाहती हैं. मां के साथ जेल में बंद इन नन्हे-मुन्नों के सपने सुन जेलकर्मियों व कैदियों […]
मुजफ्फरपुर: न अपनों का प्यार है और न अपनों का दुलार, पास कुछ है तो भविष्य के सुनहरे सपने और कुछ बनने का इरादा. मुन्ना पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना चाहता है तो मुन्नी मां का नाम रोशन करना चाहती हैं.
मां के साथ जेल में बंद इन नन्हे-मुन्नों के सपने सुन जेलकर्मियों व कैदियों की भी आंखें नम हो जाती है, लेकिन बच्चों को सपना साकार करने के लिये जेल में सजा काट रहे सजायाप्ता बंदियों ने बीड़ा उठाया है. यह बंदी बच्चों की जिंदगी संवारने के लिये जेल के अंदर ही स्कूल खोल दिया है. स्कूल खोलने से लेकर पढ़ने तक के परवरिश का जेल प्रशासन विशेष ध्यान रख रहा है. बच्चों की जिंदगी संवारने के लिये 15 सजायाप्ता बंदी शामिल हैं. इन बंदी को बच्चों को पढ़ाने के एवज में अगर उन्हें कुछ मिलता है तो बस बच्चों का प्यार और उसकी माताओं की दुआ.
बच्चे ले जाने की जिम्मेवारी बंदी सतीश शर्मा की है
रोज सुबह यूनीफार्म पहन बच्चे जेल के प्राइमरी स्कूल में ले जाने की जिम्मेवारी बंदी सतीश शर्मा निभा रहे हैं. दोपहर एक बजे वे ही इन बच्चों को जेल के वार्ड में छोड़ जाते हैं. बच्चों को शायद पता नहीं कि वे जेल के एक वार्ड से दूसरे वार्ड में ही हर दिन पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं. वार्ड गेट पर तैनात कर्मचारी स्कूल जाने के लिए बच्चों को दूसरे वार्ड से बाहर निकालते हैं तो बाय-बाय अंकल सुन उनकी आंखें भी नम हो जाती हैं, लेकिन वह बच्चों के इस प्यार दुलार को देख मुस्कुरा देते हैं. बच्चे जब पढ़ने के बाद वापस वार्ड में आते है तो वार्ड में मां के साथ बैठ होम वर्कपूरा करते हैं.
ये बच्चे जाते हैं स्कूल
पिंकी कक्षा तीन, राहुल कक्षा दो, मुन्नी और आदिल कक्षा तीन में हैं. पढ़ाई करने के बाद यह बच्चे शाम को दिल बहलाने के लिये जेल के बंदी इन बच्चों के साथ मस्ती भी करते हैं. जेल अधीक्षक इ जितेंद्र कुमार कहते है कि मां के साथ रह रहे इन मासूमों का भविष्य संवारने के लिये हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. कहा कि जेल में विभिन्न आरोपों में 57 महिलाएं सजा काट रही हैं. इन महिला बंदियों के 12 बच्चे भी परिजनों का सहारा न मिलने से जेल में हैं. इसमें सात लड़की और पांच लड़के हैं.
परिजनों ने मुंह फेरा
जेल अधीक्षक कहते हैं कि विभिन्न आरोपों में कैद महिलाओं के इन मासूमों की परवरिश के लिए अपनों ने भी ठुकरा दिया. अब इन बच्चों की जिम्मेवारी बच्चों को जेल में रखने की बन गयी है. जेल स्थित प्ले स्कूल में इन बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजा जा रहा है. बच्चों के भविष्य को अंधकार से बचाने के लिए इनकी मां को भी मोटीवेट किया गया है.
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