मुजफ्फरपुर : पीएनडीटी एक्ट का पालन नहीं करने वाले सोनोग्राफी सेंटरों की जांच अब थानेदार करेंगे. थानेदारों को अधिकार होगा कि वह अपने क्षेत्र के सेंटरों की जांच कर यह सुनिश्चित करें कि वह एक्ट के अनुसार कार्य कर रहा हो.
यदि कोई सोनोग्राफी सेंटर एक्ट का पालन नहीं करता है तो पुलिस उस पर एफआइआर करेगी. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग से अनुमति लेना जरूरी नहीं है. विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी जल्द ही यह नयी व्यवस्था लागू करने वाले हैं.
सभी सिविल सजर्नों को भी इस निर्णय से अवगत करा दिया गया है. स्वास्थ्य विभाग ने यह कड़ा कदम सूबे में लिंग परीक्षण को रोकने के लिए उठाया है. सिविल सजर्न को यह जिम्मेवारी दी गयी है कि वे नियमित रूप से जांच कर एक्ट के अनुसार काम नहीं करने वाले सेंटरों का लाइसेंस रद्द कर संचालक पर एफआइआर करे.
इसके लिए प्रधान सचिव सिविल सजर्न को इंसेंटिव देने के लिए भी तैयार हैं. निर्देश के आलोक में ही गुरुवार को जिले के 18 बगैर लाइसेंस के चल रहे सोनोग्राफी सेंटरों का लाइसेंस रद्द किया गया.
नहीं भरा जा रहा फॉर्म एफ
स्वास्थ्य विभाग की ओर से लाइसेंस रद्द किये जाने की कार्रवाई के बाद भी सोनोग्राफी सेंटर पीएनडीटी एक्ट का पालन नहीं कर रहे हैं. अधिकतर सेंटरों में गर्भवती महिलाओं का ब्योरा नहीं भरा जा रहा है. जबकि एक्ट के अनुसार फॉर्म एफ की दो प्रतियां भरा जाना अनिवार्य है, जिसकी एक प्रति सिविल सजर्न कार्यालय को देनी है. लेकिन सीएस कार्यालय में अब तक फॉर्म एफ नहीं भेजा जा रहा है.
लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से ऐसे सेंटरों की जांच नहीं की गयी है. पिछले दिनों शहर के नौ सोनोग्राफी सेंटरों की जांच हुई थी. अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ जेपी रंजन के नेतृत्व में कई सेंटर अमानक पाये गये थे. कुछ संचालक तो सेंटर बंद कर फरार हो गये. हालांकि उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.
सोलह वर्षो से हो रहा कानून का उल्लंघन
जिले में पिछले 16 वर्षो से खुलेआम पीएनडीटी एक्ट का उल्लंघन हो रहा है. ऐसी बात नहीं कि स्वास्थ्य महकमे को इसकी खबर नहीं थी, लेकिन आपसी तालमेल से अवैध करोबार पर कोई शिकंजा नहीं कसा जा सका. देश में लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रस्ताव लाकर वर्ष 1994 में पीएनडीटी एक्ट को लागू किया.
यह एक्ट वर्ष 1996 से प्रभावी हुआ था, लेकिन एक्ट के अनुसार सोनोग्राफी सेंटर का संचालन नहीं हो रहा था. बगैर लाइसेंस के चलने वाले दर्जनों सोनोग्राफी सेंटरों पर आरएमपी जैसे चिकित्सक मरीजों की सोनोग्राफी कर रहे थे. सोनोग्राफी के लिए दर भी निर्धारित नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पैसे लेकर गलत रिपोर्ट दी जा रही है. कई ऐसे सोनोग्राफी सेंटर हैं, जहां रोज मरीजों के नाम व सोनोग्राफी का प्रकार रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जाता.
मेडिकल प्रैक्टिसनर भी जवाबदेह
कई डॉक्टर मरीजों को एक निश्चित सोनोग्राफी सेंटर में जांच के लिए भेजते हैं. पुरजे में उस सोनोग्राफी सेंटर का स्लिप लगा दिया जाता है. रेफर करने वाले डॉक्टर को यह पता होता है कि वहां मरीजों की सोनोग्राफी करने वाले अप्रशिक्षित हैं. लेकिन कमीशन के खेल में इसे जायज माना जाता है.
ऐसे में यदि रिपोर्ट गलत आती है तो मरीजों का इलाज भी उसी आधार पर होता है. जिले में कई सोनोग्राफी सेंटर ऐसे हैं, जिसमें वह रेडियोलॉजिस्ट मरीजों की जांच नहीं करता, जिसका नाम लाइसेंस लेते समय दिया गया है. संचालक लाइसेंस के लिए किसी रेडियोलॉजिस्ट का नाम तो दे देते हैं, लेकिन काम दूसरे व्यक्ति करते हैं.