Advertisement
जाली नोट व हेरोइन का डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट बना शहर
मुजफ्फरपुर: मादक पदार्थ व जाली नोट के तस्करों के लिए शहर एक प्रमुख मंडी बन गयी है. कुल मिलाकर यह शहर इन मादक पदार्थों का डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट बन गया है. यहां से गांजा, जाली नोट से लेकर हेरोइन तक की तस्करी नेपाल व पश्चिम बंगाल तक की जा रही है. इन पदार्थों को कभी सड़क […]
मुजफ्फरपुर: मादक पदार्थ व जाली नोट के तस्करों के लिए शहर एक प्रमुख मंडी बन गयी है. कुल मिलाकर यह शहर इन मादक पदार्थों का डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट बन गया है. यहां से गांजा, जाली नोट से लेकर हेरोइन तक की तस्करी नेपाल व पश्चिम बंगाल तक की जा रही है. इन पदार्थों को कभी सड़क मार्ग तो कभी रेल मार्ग से उतारा जाता है. राजस्थान से चलकर मुजफ्फरपुर पहुंचने वाले तस्करी के इन सामानों का रूट यहीं पर तय होता है. इसे नेपाल व बंगाल में कैसे खपाया जाये, योजना यहीं पर बनती है.
वर्ष 2015-16 में डीआरआइ व कस्टम ने पांच सौ किलो गांजा व पांच करोड़ के जाली नोट की खेप के साथ तस्करों को रंगेहाथ पकड़ा है. देश ही नहीं, विदेशों से तस्करी होकर मादक पदार्थ यहां पहुंचते हैं. मादक पदार्थ व जाली नोट की बरामदगी के आंकड़ों की स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तस्कर कैसे पांव पसारने में लगे हैं.
शहर में भी खप रहे नशीले पदार्थ
डीआरआइ सिर्फ एक साल में पांच अरब का मादक पदार्थ और पांच करोड़ का जाली नोट बरामद कर चुकी है. डीआरआइ सूत्रों की मानें तो खासकर गांजा व जाली नोट सड़क मार्ग से इस इलाके से गुजरते हैं. इन कारण से शहर भी नशीले पदार्थों के खपत का बड़ा बाजार बन चुका है.
लचर सुरक्षा से सुगम बना रास्ता
रेलवे की लचर सुरक्षा व्यवस्था ने भी तस्करों का रास्ता सुगम बना दिया है. रक्सौल से आने वाली ट्रेन की सुरक्षित बोगियों से भी कई बार मादक पदार्थ व जाली नोट की बरामदगी हो चुकी है. शहर के पास से फोरलेन गुजरती है. इसका फायदा भी तस्कर उठाते हैं. यहां पहुंचने के बाद होटलों में शरण लेते हैं, फिर सौदा कर निकल जाते हैं. डीआरआइ के हत्थे चढ़े तस्करों भी ने इसका खुलासा किया.
राजस्थान में गांजा को मुंहबोली कीमत
डीआरआइ अधिकारी की माने तो राजस्थान में गांजा की मुंहबोली कीमत मिलती है. इसका भाव 30-40 हजार रुपये प्रति किलो है. जबकि दिल्ली व उड़ीसा में एक किलो गांजा की कीमत 10-15 हजार रुपये तक है. चोरी-छिपे गांजा की खेती होने के कारण बिहार की बात करें तो इसकी कीमत पांच से 10 हजार रुपये प्रति किलो है. नेपाली व अन्य जगहों के गांजे की अपेक्षा मणिपुरी गांजा की कीमत बाजार में अधिक है.
नक्सली करते हैं गांजा की तस्करी
डीआरआइ की मानें तो मादक पदार्थों की तस्करी में नक्सली व अंडरवर्ल्ड के लोग भी मिले हैं. पकड़े गये तस्कर ने खुलासा किया कि गांजा का सबसे बड़ा तस्कर बंगाल का अनवर है. डीआरआइ के एक अधिकारी ने कहा कि इलाके अनुसार गांजा की कीमत तय होती है. गांजा की सरकारी कीमत (कस्टम का) दो हजार रुपये प्रति किलो है. जबकि मणिपुर, नेपाल की तराई और अन्य जगहों से निकलने के बाद तस्करी के बाजार से लेकर नशेड़ियों तक पहुंचते-पहुंचते गांजा की कीमत 20 हजार रुपये प्रति किलो हो जाती है.
माओवादियों का सिंडिकेट लगा है तस्करी में
माआेवादियों का सिंडिकेट भी तस्करी में लगा है. इनमें नक्सली व नेपाली माओवादी सक्रिय हैं. गांजा की तस्करी नक्सलियों की आमदनी का एक मजबूत स्रोत है. इस धन को हथियार की खरीद में खर्च किया जाता है. डीआरआइ के एक अधिकारी के अनुसार, नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गांजे की खेती होती है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement