कहां जाये ठिकाना अपना चंबल लिख दोउर्दू अदब के मशहूर शख्सियत मुन्नवर राणा से बातचीतगजल के स्वरूप व नजाकत पर की गंभीर चर्चाविनयमुजफ्फरपुर . शायरी में एक बड़ा नाम मुनव्वर राणा का है. आपसी रिश्तों के दर्द को उन्होंने बखूबी व्यक्त किया है. यूं कहें तो उन्होंने गजल का स्वरूप बदल दिया. इश्किया शायरी से अलग गजल को आम आदमी की जुबान दी. उनके मिसरे में बोल चाल के वाक्य. उर्दू हिंदी के लफ्जों की जगह कई शेरों में क्षेत्रीय भाषा के इस्तेमाल ने मुनव्वर की शायरी को ऊंचाई दी है. माशूक, महबूब, हुस्न व साकी की बोतल से गजल को बाहर निकालने में मशहूर अदीब की बड़ी भूमिका रही है. मुनव्वर राणा पांच जनवरी को प्रभात खबर के मुशायरे में मुजफ्फरपुर आये थे. गजल की बनावट व स्वरूप पर उनसे लंबी बात हुई. यहां हम उनकी बातों को उन्हीं के अंदाज में रख रहे हैं. गजल कैसे जमाने के साथ बदलती रही है- हर जमान में गजल ने अपना स्वरूप बदला है. किसी भी साहित्य को जिंदा रखने के लिए ये करना पड़ता है. गजल एक जमाने में इश्क की कहानी, महबूब से मिलने व बिछड़ने के लिए प्रयुक्त होता था. रूठने व मनाने के दास्तानों तक गजल सीमित थी. उस वक्त नवाबों व राजदरबारों को जमाना था. गजल उनका दिल बहलाने के लिए थी. उस जमाने में इस तरह के शेर ज्यादा कहे जाते थे, अल्लाह रे नाजुकी कि चमेली गये फूल, सिर पर रख दिया तो कमर तक लचक गयी. दुपट्टे को आगे से दुहरा न ओढ़ो, नमूदार चीजें छुपाने से हासिल. चुपक-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है. पूछा जो उनसे चांद किस तरह निकलता है, जुल्फों को रुख पे डाल झटका दिया यूं.हिंदोस्तां में गजल किस समय से बदलीइंकलाब. उस वक्त के दौर में. जैसे ही इंकलाब की आवाज गजल के कानों में पड़ी, जैसे ही स्वतंत्रता सेनानियों की चीखें गजल के कानों तक पहुंची, गजल ने फौरन कहा, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है. वक्त आगे बढ़ा गजल ने आजादी का बिगुल ये कहते हुए बजा दिया कि लाख परदे लगे हो शहर के दरवाजे पर, इंकलाब आने को होता है तो आ जाता है. आजादी के बाद गजल कहां खड़ा हुईआजादी के समय तक तो गजल अपने दामन को बड़ा करती रही. लंबे संघर्ष के बाद हिंदुस्तां को आजादी मिली, लेकिन इंसाफ नहीं मिला तो गजल ने एहतजाज विरोध का रूप धरा. गरीबों के पक्ष में खड़ी हुई. इंकलाब जिंदाबाद की तस्वीर गूंजी. ये कहने पर मजबूर हुई, ऐ मेरे वतन तेरा सगा बेटा हूं, हूं फुटपाथ पर मुझको महल भी चाहिए, तूने सारी वादियां जीती हैं मुझ पर बैठ कर, अब मैं बूढ़ा हो रहा हूं अब दफन भी चाहिए. गजल ने नाइंसाफियों, गरीबी व लूटती हुई इज्जत के खिलाफ हमेशा अपनी लय को तेज रखा. कभी ये कहती नजर आयी, जहां लड़की की इज्जत लूटना एक खेल बन जाये, वहां पर कबूतर तेरी चिट्ठी कौन बांधेगा. तलाक दे तो रहे हो, गुरुर व कहर के साथ, मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेहर के साथ. कभी ये कहती नजर आयी, ऐ पड़ोसी तेरे नेजे पर जो ये बच्चा है, तेरा बबलू इसे ढूंढ़ कर रोयेगा बहुत. गजल ने कहा, गांव के भोले वासी आज तलक ये कहते हैं, हम तो न लेंगे जान किसी की राम दुखी हो जाते हैं. समय के साथ कैसे स्थापित हुई गजलहर जमाने में आंसुओं, शबनम व खून से बनी स्याही में कलम डूबो कर लिखने का हुनर गजल को खूब आता है. अगर एक जुमले में कहा जाये तो गजल एक ऐसी वितान है, जिसमें पूरे भारत का इतिहास पढ़ा जा सकता है. लेकिन इसको पढ़ने के लिए आंखों से ज्यादा दिल की जरूरत होती है. आज के हालात पर ये शेर देखें, हमारा घर हमारे गांव के मुखिया ने लूटा, कहां जाये ठिकाना अपना चंबल लिख दिया जाये. सामाजिक बेबसी हर शहर को मकतल बनाती है, कभी नक्सल बनाती है तो कभी चंबल बनाती है. नये गजलकारों को क्या करना चाहिएजो लोग अभी लिख रहे हैं, उन्हें पढ़ने का शौक पैदा करना चाहिए. अपने दिल से सम्मान का शौक निकाल दें. वक्त का इंतजार करना सीखें. सबसे बड़ा सम्मान यही है कि वक्त आपके साथ चलता है. आपसे अच्छा लिखवाता है तो आपका वक्त समाप्त होने के बाद भी सैकड़ों वर्ष तक आपको जिंदा रखेगा. किसी रचनाकार के लिए अवार्ड कितना जरूरी हैअवार्ड चाहे तांबे, पीतल व अल्यूमीनियम के अवार्ड न श्मशान घाट जाते हैं और न ही कब्र. जिस दिन कोई लेखक, कवि, कलाकार मरता है, उसका मूल्यांकन सिर्फ उनके लेखन से होता है. गालिब, मीर, तुलसी व कबीर के दोहे सबको याद है, लेकिन उनको क्या सम्मान मिला, यह किसी को याद नहीं. लेकिन एक बात है जो सच है, वही लिखें, सबसे बड़ा सम्मान बड़ों का सम्मान करना है. आप भले ही हिमालय पर नहीं जा पायें, लेकिन ऊपरवाला हमेशा आपको साहित्य के हिमालय पर ले जायेगा. मुहब्बत करते जाओ, बस यही सच्ची इबादत है. मुजफ्फरपुर से जाते वक्त आप कैसा महसूस करते हैंइसके लिए एक शेर है, जिसमें मेरी भावनाएं हैं, मुजाहिर हैं मगर हम ये दुनिया छोड़ आये हैं, तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आये हैं, वो लीची से लदे पेड़ों का खामोशी से मुंह तकना, मुजफ्फरपुर हम तुमको अकेला छोड़ आये हैं.
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कहां जाये ठिकाना अपना चंबल लिख दो
कहां जाये ठिकाना अपना चंबल लिख दोउर्दू अदब के मशहूर शख्सियत मुन्नवर राणा से बातचीतगजल के स्वरूप व नजाकत पर की गंभीर चर्चाविनयमुजफ्फरपुर . शायरी में एक बड़ा नाम मुनव्वर राणा का है. आपसी रिश्तों के दर्द को उन्होंने बखूबी व्यक्त किया है. यूं कहें तो उन्होंने गजल का स्वरूप बदल दिया. इश्किया शायरी से […]
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