मुजफ्फरपुर: सुनील कुमार वर्मा ऑटो चालक हैं, बुधवार को इन्हीं का ऑटो मुजफ्फरपुर में माड़ीपुर ओवरब्रिज दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुआ. एसकेएमसीएच में इलाज करा रहे सुनील कहते हैं, रोज की तरह मैं अपने घर गोबरसही के पास डुमरी से खाना खाकर वापस कंपनी बाग आ रहा था. मेरे ऑटो में कोई सवारी नहीं थी. हम कंपनीबाग से सवारी लेकर भगवानपुर जाते. लेकिन जैसे ही माड़ीपुर ओवरब्रिज पर पहुंचे. तड़तड़ाहट की आवाज आने लगी, जब तक हम यह समझ पाते आवाज कहां से आ रही है. हमारा ऑटो नीचे जाने लगा, तब हमको लगा, अब हम नहीं बचेंगे. अगले कुछ सेकेंड में हम ओवरब्रिज के नीचे मालगाड़ी के डिब्बे के पास पहुंच गये थे. इसके बाद हम केवल इतना पता है, हम ऑटो से फेंका (बाहर निकल गये) गये हैं. इसके बाद हमें कुछ भी याद नहीं, जब होश आया तो हमने अपने को सदर अस्पताल के बेड पर पाया.
होनी को कौन रोक पाया
सुनील कहते हैं, साहब, होनी को कौन रोक सकता है, हम जब घर से चले थे, तब हमने यह नहीं सोचा था. हमारे साथ इतना बड़ा हादसा होगा. मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं, उन्होंने मुङो जीवनदान दिया है. इसी वजह से आज फिर हम अपने परिवार के साथ हैं. सुनील का इस समय एसकेएमसीएच में इलाज चल रहा है. उन्हें कमर व सिर में चोट लगी है. इस वजह से बेहतर इलाज के लिए उन्हें गुरुवार की सुबह सदर अस्पताल से डॉक्टरों ने एसकेएमसीएच रेफर कर दिया.
हादसे में सुनील का ऑटो तहस-नहस हो गया. सुनील जब बात कर रहे थे तो उनके चेहरे पर दुर्घटना के वक्त का खौफ साफ दिख रहा था. अब उनकी देखभाल पत्नी ललिता कर रही हैं. उनके दो बेटे व एक बेटी पिता की सेवा में लगे हैं.
चार बजे मिली सूचना
सुनील की पत्नी बताती हैं, जब घटना के बारे में हमको पता चला तो हमने इनका (सुनील) का फोन लगाना शुरू किया, लेकिन फोन बंद मिल रहा था. इससे हमारी चिंता बढ़ गयी थी. इसी बीच चार बजे सुनील के दोस्त का फोन आया. वह कहने लगे, सुनील घायल हो गये हैं. इसके बाद हम अपने बेटे प्रभाकर के साथ सदर अस्पताल आये, जब इन्हें देखा, तब जाकर कुछ संतोष हुआ. ललिता ने कहा, घर की रोजी-रोटी का जरिया ऑटो ही है. उसी से जो कमाई होती है. उससे दोनों बेटों प्रभाकर, प्रतीक व बेटी सुनीता की पढ़ाई का खर्च होती है. साथ ही परिवार भी चलती है. वह कहती हैं, अगर इन्हें कुछ हो जाता तो पूरा परिवार बिखर जाता. भगवान का लाख शुक्र है, जो उसने इन्हें नयी जिंदगी दी.
27 से चला रहा ऑटो
सुनील ने 1986 में ऑटो चलाना शुरू किया था. 27 साल बीत गये. शुरू से यह कंपनीबाग से भगवानपुर के बीच ऑटो चलाते हैं. पहले इन्होंने पुराना ऑटो खरीदा था, लेकिन पांच साल पहले नया ऑटो लिया था. अभी उसी को चला रहे थे, जब दुर्घटना हुई तो सुनील की जेब में साठ रुपये थे. वह कहते हैं, हमारा ऑटो किस हाल में है. इसकी जानकारी हमें नहीं मिली है. अभी तक कोई अधिकारी भी मिलने नहीं आया है, न ही किसी तरह की सूचना दी गयी है. अगर सरकार की ओर से मुआवजा मिलता है तो नया ऑटो खरीदेंगे. मुआवजा नहीं मिलेगा तो इसी ऑटो को मरम्मत करवा कर चलायेंगे, क्योंकि जीवन तो चलाना ही है.