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बिना पैसा मुजफ्फरपुर में गाने को तैयार थे मन्ना डे

मुजफ्फरपुर: शास्त्रीय संगीत के साधक व गायक मन्ना डे मुजफ्फरपुर में बिना पारिश्रमिक गाने को तैयार थे. साहित्यकार डॉ नंद किशोर नंदन ने जब 2001 में उनसे मुजफ्फरपुर में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अनुरोध किया तो वे सहर्ष तैयार हो गये. डॉ नंदन की आत्मीयता से प्रभावित होकर उन्होंने कहा कि अगर आप कार्यक्रम करेंगे […]

मुजफ्फरपुर: शास्त्रीय संगीत के साधक व गायक मन्ना डे मुजफ्फरपुर में बिना पारिश्रमिक गाने को तैयार थे. साहित्यकार डॉ नंद किशोर नंदन ने जब 2001 में उनसे मुजफ्फरपुर में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अनुरोध किया तो वे सहर्ष तैयार हो गये. डॉ नंदन की आत्मीयता से प्रभावित होकर उन्होंने कहा कि अगर आप कार्यक्रम करेंगे तो हम बिना पैसा लिये गायेंगे. केवल हमारे व संगत मंडली के आने-जाने व ठहरने का इंतजाम कर दीजियेगा. मन्ना डे का डॉ नंदन के साथ ऐसा जुड़ाव बन गया था, वे उनके अनुरोध को इनकार नहीं कर पाते थे. हालांकि डॉ नंदन को अफसोस है कि शहर में वे उनका कार्यक्रम आयोजित नहीं करा पाये.

2000 में हुई थी पहली मुलाकात : डॉ नंदन कहते हैं, वे कॉलेज के दिनों से ही मन्ना डे की गायकी से प्रभावित थे. 2000 में वे बेटी शिप्रा के साथ बंगलुरु गये थे. उन्हें पता चला कि मन्ना डे यहीं रह रहे हैं तो मिलने की इच्छा हो उठी. उन्होंने बैंगलुरू में रह रहे अपने शिष्य डॉ समीर को फोन किया. डॉ समीर ने मन्ना डे से मिलने का समय लिया व शाम में तीनों कृष्णा नगर स्थित उनके आवास पर पहुंचे. डॉ नंदन बताते हैं कि जब उन्होंने वहां मन्ना डे को सूचना भिजवायी तो उन्होंने कहा कि वे बीमार हैं, बात करने में दिक्कत है. डॉ नंदन ने फिर खबर भिजवायी कि वे हजारों किलोमीटर दूर से आये हैं. तब मन्ना डे ने तुरंत उनलोगों को बुला लिया. अपनी बीमारी भूल गये. फिर तीन घंटे तक संगीत व साहित्य पर चर्चा होती रही.

कितना सम्मान दे रहे हैं आप 2001 से डॉ नंदन ने अपने आवास पर मन्ना डे का संगीतमय जन्म दिन मनाने की शुरुआत की थी. पहले वर्ष ही उन्होंने मन्ना डे को फोन से इसकी सूचना दी. तब मन्ना डे ने कहा था कि इतनी दूर आप मेरा जन्म दिवस मना रहे हैं. कितना सम्मान दे रहे हैं आप. यह दुलर्भ स्मृति बन कर मेरे पास रहेगी. डॉ नंदन कहते हैं उसके बाद से लगातार वे उनका जन्म दिन मनाते रहे हैं. जन्म दिन के दिन सबसे पहले बधाई भी देते रहे हैं.

बस 100 वर्ष ही जिंदा रहूंगा
डॉ नंदन कहते हैं कि 2012 में उनके जन्म दिवस के दिन एक मई को उन्हें फोन कर उन्हें शतायु होने की बधाई दी. वे पत्नी सुलोचना के निधन से काफी दुखी थे, लेकिन बधाई पाने के बाद कहा वनली 100 इयर्स, तब मैंने उन्हें कहा था, यू आर द इर्मोटल पर्सनालिटी ऑफ ह्यूमन एक्जीसटेंस. इतना सुनकर वे थोड़ा हंसे. उसके बाद फिर उनसे बात नहीं हो पायी.

संगीतमय मन को पंख लगाये पुस्तक का पढ़ा था अंश : डॉ नंदन ने मन्ना डे के जीवन व साधना पर केंद्रित पुस्तक संगीतमय मन को पंख लगाये दो वर्ष पूर्व पूरी कर ली थी. डॉ नंदन चाहते थे कि यह पुस्तक मन्नाडे के जीवन काल में आये, लेकिन रोशनाई प्रकाशन के पास दो वर्ष से प्रकाशन के लिए रखी हुई थी. डॉ नंदन कहते हैं कि पुस्तक पूरी करने के बाद वे कई अंश को उन्हें पढ़ कर सुनाये भी थी. जिससे वे काफी प्रभावित हुए थे. कहा था जब कोई साहित्यकार संगीत पर लिखता है तो बेहतर लिखता है.

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