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हृदयम फाउंडेशन ने 300 लोगों को दिया नया जीवन

हृदयम फाउंडेशन ने 300 लोगों को दिया नया जीवनसात दिवसीय नि:शुल्क चिकित्सा शिविर में किया गया मरीजों का इलाजयूके के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष ठाकुर ने मरीजों को दिये जरूरी सुझाववरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर यूके की हृदयम फाउंडेशन की ओर से सात दिवसीय कैंप के तहत हृदय रोग से ग्रसित 300 मरीजों का इलाज किया […]

हृदयम फाउंडेशन ने 300 लोगों को दिया नया जीवनसात दिवसीय नि:शुल्क चिकित्सा शिविर में किया गया मरीजों का इलाजयूके के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष ठाकुर ने मरीजों को दिये जरूरी सुझाववरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर यूके की हृदयम फाउंडेशन की ओर से सात दिवसीय कैंप के तहत हृदय रोग से ग्रसित 300 मरीजों का इलाज किया गया है. साथ ही उनका इको काॅर्डियोग्राफी व आइएनआर टेस्ट भी नि.शुल्क किया गया है. कई मरीजों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें एक महीने की दवा भी नि:शुल्क उपलब्ध करायी गयी है. मरीजों को इमेल पता दिया गया है. किसी तरह की समस्या होने पर वे मेल करके परामर्श ले सकते हैं. साथ ही जूरन छपरा रोड नं.4 स्थित डॉक्टर बीबी ठाकुर के क्लीनिक सह संस्था कार्यालय में मरीजों की समस्या को दूर करने का इंतजाम भी किया गया है. उक्त बातें यूके के हृदय रोग विशेषज्ञ सह संस्था के निदेशक डॉ आशीष ठाकुर ने सात दिवसीय चिकित्सा शिविर के समापन के मौके पर रविवार को प्रेस वार्ता में कही. डॉ बीबी ठाकुर के क्लीनिक पर आयोजित शिविर में उन्होंने कहा कि यहां उन्होंने जितने भी मरीज देखें हैं. सभी एंजाइना, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात व हृदय के वॉल्व की बीमारी से पीड़ित थे. उन्होंने कहा कि कई लोग हृदय रोग की भ्रांतियों के शिकार थे. उन्हें बीमारी नहीं थी, उन्हें आवश्यक परामर्श दिये गये. इस मौके पर डॉ बीबी ठाकुर, डॉ स्मिता ठाकुर, डॉ अंशुमान सिन्हा, अंशिनी ठाकुर, सुगंध सर्वप्रिय व मिहिका कुमार मुख्य रूप से मौजूद थे.गरीबों की सेवा करना मेरा लक्ष्यकार्डियोलॉजी में डीएम डॉ आशीष ने कहा कि मेरा जन्म इसी शहर में हुआ है. मैंने यहां ऐसे मरीजों को देखा है, जिनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं. यहां प्राइवेट स्वास्थ्य सेवा का लाभ लेने के लिए अधिकतर लोगों के पास पैसे नहीं होते हैं. यह दुखद है. सेवा भावना के लिए ही मैंने यूके में संस्था की स्थापना की. जिसके तहत प्रत्येक छह महीने पर यहां आकर मरीजों को देखता हूं. पिछले 15 वर्षों से मैं यूके मे हीं हूं. वहां चिकित्सा की स्थिति ऐसी नहीं है. वहां सब कुछ सरकार देखती है. यहां जब आता हूं तो मरीजों की स्थिति देख कर परेशान हो जाता हूं. जब से मैं यहां से गया हूं, कुछ भी नहीं बदला. अंतर सिर्फ इतना है कि पहले मरीजों के पास एक दिन की दवा के पैसे नहीं होते थे. अब उसके पास एक सप्ताह की दवा खरीदने का साम्थर्य है. ऐसे इलाज नहीं होता. मेरी कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को मैं सेवा भाव के तहत चिकित्सा सेवा दे सकूं. इस कार्य में पत्नी डॉ स्मिता ठाकुर व मुजफ्फरपुर में पिता डॉ बीबी ठाकुर सहयोग कर रहे हैं.

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