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दो हजार अभ्यर्थियों के आवेदन होंगे अस्वीकृत!

मुजफ्फरपुर: सुप्रीम कोर्ट ने असिस्टेंट प्रोफेसर (लेक्चरर) की बहाली के लिए नेट उत्तीर्ण होने अथवा यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत पीएचडी को अनिवार्य कर दिया है. इससे बीआरए बिहार विवि के करीब दो हजार शोधार्थियों का लेक्चरर बनने का सपना टूट सकता है. ये वो शोधार्थी हैं, जिन्होंने 2009 से पूर्व पीएचडी की उपाधि हासिल […]

मुजफ्फरपुर: सुप्रीम कोर्ट ने असिस्टेंट प्रोफेसर (लेक्चरर) की बहाली के लिए नेट उत्तीर्ण होने अथवा यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत पीएचडी को अनिवार्य कर दिया है. इससे बीआरए बिहार विवि के करीब दो हजार शोधार्थियों का लेक्चरर बनने का सपना टूट सकता है. ये वो शोधार्थी हैं, जिन्होंने 2009 से पूर्व पीएचडी की उपाधि हासिल की थी.

विवि प्रशासन ने इन सभी को यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत लाने के लिए ‘छूट’ प्रमाण पत्र जारी किया था. इसके लिए विवि प्रशासन ने 12 अगस्त 2010 व 27 सितंबर 2010 को क्रमश: यूजीसी की 471वीं व 472वीं बैठक के फैसले को आधार बनाया गया था. हालांकि सूचना के अधिकार के तहत पूछे गये एक प्रश्न के जवाब में खुद यूजीसी ने दोनों बैठकों में इस तरह की छूट दिये जाने की बात से इनकार कर दिया.

यही नहीं, भारत सरकार के गजट में भी इस तरह के प्रावधान का कोई जिक्र नहीं है. ऐसे में विवि की ओर से जारी ‘छूट’ प्रमाण पत्र अमान्य साबित हो जायेगा. इस आधार पर उनके आवेदन भी अस्वीकृत हो जायेंगे. इससे विवि प्रशासन की किरकिरी होना भी तय है.
दरअसल, गत 13 सितंबर 2014 को बिहार लोक सेवा आयोग ने बिहार के सभी विवि में रिक्त पदों के आधार पर लेक्चरर के पद पर बहाली के लिए प्रक्रिया शुरू की. शुरुआत में इसमें आवेदन के लिए नेट पास या फिर यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत पीएचडी की डिग्री अनिवार्य था. ऐसे में विवि प्रशासन ने 2009 से पूर्व पीएचडी कर चुके अभ्यर्थियों को राहत देते हुए उन्हें ‘छूट’ प्रमाण पत्र जारी कर यूजीसी रेगुलेशन 2009 के दायरे में लाने का फैसला लिया. इसके लिए बजाप्ते शिविर लगा कर अभ्यर्थियों को ‘छूट’ प्रमाण पत्र दिया गया था. अभ्यर्थियों ने बीपीएससी को भेजे गये आवेदन में उस प्रमाण पत्र को भी शामिल किया.
प्रभात खबर ने 26 नवंबर 2014 को अपने अंक में खुलासा किया था कि यूजीसी की जिस बैठक को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आधार बनाया गया था, उसमें ऐसा कोई फैसला हुआ ही नहीं था. बल्कि सदस्यों ने सिर्फ विचार किया था. हालांकि बाद में 2009 से पूर्व पीएचडी कर चुके अभ्यर्थियों ने इसे हाइकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद इन सभी को भी आवेदन देने की छूट मिल गयी थी. इससे विवि प्रशासन ने राहत की सांस ली थी. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह विवाद एक बार फिर खुल कर सामने आ सकता है.

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