मुजफ्फरपुर: आम्रपाली एक्सप्रेस से पिता बिजली के साथ शनिवार के दिन में तीन बजे रामदास मुजफ्फरपुर स्टेशन पहुंचा. ट्रेन से उतरते ही उसके चेहरे पर जो खौफ दिख रहा था. वह पाकिस्तान की जेल में दी गयी प्रताड़ना की कहानी कह रहा है. उसे पाकिस्तान से लगभग डेढ़ माह पहले छोड़ा गया है, लेकिन उसके शरीर के जख्म अभी तक नहीं भरे हैं. वह बोल नहीं पा रहा है. उसके मुंह से लगातार लॉर टपकती रहती है, जैसे उसे बिजली के झटके दिये गये हैं. पूरे शरीर में पिटाई के निशान है, जिन पर हाथ लगते ही वह सिहर उठता है. उस व्यक्ति की ओर से निरीह भाव से देखने लगता है, जो उसका शरीर को छूता है.
कहा रहली गणोश के पापा
स्टेशन से निकल कर रामदास पिता बिजली व चाचा जयराम के साथ घर के लिए रवाना हो गया. ऑटो में बैठ कर तीनों घर पहुंचे, जहां पहले से उसके स्वागत की तैयारी थी. जैसे ही रामदास घर पहुंचा की पत्नी शकीला के मुंह से अचानक निकल पड़ी तीन साल से कहां रहली है गणोश के पापा..यह कहते ही उसके आंख में आंसू भर आये.
धोया रामदास का पैर
रामदास के स्वागत की तैयारी पहले से ही थी. घर में घूसते ही उसके बड़े भाई लक्ष्मण की पत्नी पूनम ने थाली में रामदास के पैर को धोया. इसके बाद नहलाकर घर के देवता की पूजा करायी गयी, जब राम दास अपनी पत्नी और बच्चे के साथ बैठा तो बेटा गणोश उसे नहीं पहचान रहा था, लेकिन शकीला बेटे को रामनाथ के बगल में बैठाकर उसे बताने की कोशिश कर रही थी, ये उसके पिता है, लेकिन नन्हा गणोश रोने लगा.
बधाई देने पहुंचे लोग
रामदास कुछ बोल तो नहीं रहा था, लेकिन वह बेटे गणोश को गौर से निहार रहा था. रामदास के आगमन पर पूरे घर जश्न का माहौल था. घरवालों ने लजीज भोजन की व्यवस्था कर रखी थी. सभी परिवार के लोगों ने एक साथ बैठकर खाना खाया. वहीं, देर शाम तक उसके घर पर आस-पास के लोगों का जमावड़ा लगा रहा. आस-पास के लोग उसके पिता को बधाई दे रहे थे.
बोला नहीं, बस पहचान लिया
बिजली ने बताया, जब वह अमृतसर पहुंचे तो उसके बेटे ने उसे पहचान तो लिया, लेकिन कुछ बोल नहीं रहा था. इसे देखकर उसे मन ही मन तो खुशी हो रही थी तो बेटे की इस हालत को देखकर उसका दिल रो रहा था. उसने बेटे को सीने से लगाया और साथ में गये प्रशासन के अधिकारी से गुजारिश की वह जल्द से वापस जाने की तैयारी करें.
न बोलता, ना कुछ मांगता
अधिकारी सत्येंद्र ने बताया, रामदास अमृतसर में रेडक्रॉस सोसायटी में प्रभारी विनिता शर्मा की देखरेख में था. जहां उसका इलाज चल रहा था. उसे खाना खिलाने में लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ती थी. न तो वह कुछ बोलता था व न ही कुछ मांगता था.
पांच हजार लिया कर्ज
रामदास को लाने के लिए भले ही प्रशसनिक अधिकारी साथ में गये थे, लेकिन पूरा खर्च बिजली सहनी को उठाना पड़ा. घर की माली हालत ठीक नहीं है. इसके बावजूद बिजली को दस रुपये सैकड़ा के हिसाब से पांच हजार रुपये महाजन से कर्ज लेना पड़ा. कर्ज के पैसे ही वह अपने जिगर के टुकड़े को अमृतसर से लेकर वापस मुजफ्फरपुर पहुंचा.
किसी ने नहीं किया सहयोग
बिजली ने बताया, प्रशासन से लेकर नेता तक से मदद की गुहाई लगायी, लेकिन किसी ने सहयोग नहीं किया. दोनों भाई को जाने में 810 रुपया, वापस आने में 1695 रुपये का टिकट लगा, लेकिन टिकट कटाने के लिए साथ गये साहब ने 2200 रुपया लिया. अब रामदास की दवा और खाने की व्यवस्था कैसे होगी, बिजली को इसकी चिंता सता रही है. उनके पास रहने के लिये साधारण झोपड़ी का घर है. इसमें परिवार के कई सदस्य रहते है.
नहीं मिला इंदिरा आवास
आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी बिजली को अभी तक इंदिरा आवास भी नहीं मिला. रामदास की मां सुशीला देवी कहती है, बेटा के आवे से बहुत खुश छी, लेकिन बेटा के हाथ पैर थरथरा रहा है, इलाज के लिए पैसा नहीं है एकर कोई व्यवस्था कैसे होतई. पोता के पढ़ाई और परिवार के जिंदगी अब कैसे कटतई. पत्नी शकीला कहती है, आ त गेलन लेकिन अब तक हमरा पहचानवो ना कलथिन है. अब तक तक सब पैसा ससुर दिये अब आगे की होतई.