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विकास के तरीकों पर विचार करें,नहीं तो विनाश तय : सच्चिदानंद

मुजफ्फरपुर: भूमंडलीकरण के नाम पर जो विकास की पद्धति अपनायी जा रही है, वह अप्रासंगिक है. विकास के नाम पर प्राकृतिक संपदाओं, परंपराओं व संस्कृति का हनन हो रहा है. यह काफी भयावह है. ऐसे में यदि विकास के तरीकों पर नये सिरे से विचार नहीं किया गया तो दुनिया का विनाश तय है. यह […]

मुजफ्फरपुर: भूमंडलीकरण के नाम पर जो विकास की पद्धति अपनायी जा रही है, वह अप्रासंगिक है. विकास के नाम पर प्राकृतिक संपदाओं, परंपराओं व संस्कृति का हनन हो रहा है. यह काफी भयावह है. ऐसे में यदि विकास के तरीकों पर नये सिरे से विचार नहीं किया गया तो दुनिया का विनाश तय है.
यह बातें गांधीवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कही. वे सोमवार को आरडीएस कॉलेज में यूजीसी संपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में मुख्य वक्ता के रू प में बोल रहे थे. विषय था, वैश्वीकरण के संदर्भ में गांधीवाद पर पुनर्विचार. उन्होंने कहा, पहले यूरोपीय देश विकास के मामले में आगे थे, लेकिन इन दिनों वहां विकास दर घटा है. विकास का मुख भारत, चीन, ब्राजील जैसे देशों की ओर मुड़ गया है. इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों को खत्म कर समृद्धि की इमारत खड़ी की जा रही है. किसानों की जमीन हड़पी जा रही है. इस कारण वे शहरों में जाकर झुग्गियों में रहने को मजबूर हो रहे हैं. इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में भविष्य में विस्फोट होना तय है.
इस्लामिक स्टेट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, अमेरिका व अन्य यूरोपियन देश अरब के देशों में जाकर कच्च तेल निकालने का काम करने लगे. इसके लिए वहां की परंपराओं को तार-तार किया गया. इसी के विरोध में उस क्षेत्र में इसलामिक स्टेट का जन्म हुआ, जो खतरनाक तरीके अपनाते हैं. इसलामिक स्टेट तक खत्म नहीं हो सकता, जब तक विकास के इस मॉडल में बदलाव नहीं किया जाता.
गांधी परंपरा के साथ विकास के पक्षधर थे : रवि वर्मा
अध्यक्षता करते हुए बिहार विवि के पूर्व कुलपति डॉ रवि वर्मा ने कहा, गांधी परंपरा को कायम रख कर आधुनिक जरू रतों को पूरा करने के पक्ष में थे. वह भारत को बदलना चाहते थे, लेकिन यहां की परंपरा, संस्कृति, भाषा की कीमत पर नहीं. कुछ ऐसी ही सोच आज की जरू रत है. विकास के नाम पर जो नीतियां बनायी जाती है, उसे देश की परंपराओं के साथ समावेशित करने की जरू रत है. स्वदेशी इसका एक बेहतर विकल्प हो सकता है.
15 शिक्षकों का हुआ सम्मान
सेमिनार के समापन समारोह में विवि व आरडीएस कॉलेज के पंद्रह शिक्षकों को सम्मानित किया गया. इसमें कई सेवानिवृत्त शिक्षक भी शामिल हैं. सम्मान पाने वालों में डॉ डीएन मल्लिक, डॉ नवल किशोर प्रसाद सिंह, डॉ अखिलेश्वर शर्मा, डॉ सीपी ठाकुर, डॉ कृत्यानंद सिंह, डॉ एमआर काजमी, डॉ आरडी पांडेय, डॉ आरएन कुंवर, डॉ रामचंद्र ठाकुर, डॉ राम सागर मिश्र, डॉ एसएमएम सुभानी, डॉ सरस्वती शरण शर्मा, डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ सुरेंद्र कुमार व डॉ मीना वर्मा शामिल हैं. समापन समारोह का मंच संचालन डॉ अरुण कुमार सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डॉ विकास नारायण उपाध्याय ने की. तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ रामजनम ठाकुर ने की.
पूर्व सांसद व चिंतक डॉ रामजी सिंह ने कहा, लोकतंत्र का मतलब है जनता की सरकार. पर आज देश में पार्टी की सरकार हो गयी है. जब जनता की सरकार ही नहीं है, तो जनता के लिए यह भला कैसे सोच सकती है! भारत की आत्मा गांवों में बसती है. यहां मुगल व अंग्रेजों ने सत्ता संभाली, लेकिन सभ्यता, संस्कृति, भाषा व विचार की दृष्टि से भारत कभी परतंत्र नहीं हुआ, कारण ये गांवों में सुरक्षित रहे. कहा भी गया है गणतंत्र है तो लोकतंत्र है, लेकिन फिलहाल हालत एकदम बदली हुई है. विकास के नाम पर गांव खत्म हो रहे हैं. इसके कारण यह कहा जा सकता है कि गणतंत्र के गले में फांसी का फंदा लटका दिया गया है. बस इसे खींचने की जरू रत है और लोकतंत्र समाप्त हो जायेगा. ऐसे में जरू रत है कि अब एक नये लोकतंत्र की खोज की जाये. भूमंडलीकरण पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, यह साम्राज्यवाद का विकल्प है. पहले यूरोप के देश एशिया व अफ्रीका के देशों को गुलाम बना कर उसका आर्थिक शोषण करते थे. इसकी समाप्ति के बाद भूमंडलीकरण को विकल्प के रूप में खड़ा किया गया. बुद्धिजीवियों ने भी इसके प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभायी. अब इसे एकदम से खत्म करना आसान नहीं होगा. कारण राजनीतिक साम्राज्यवाद को खत्म करना आसान है, आर्थिक साम्राज्यवाद को मुश्किल.

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