35.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दौरा पर दौरा, नतीजा सिफर

मुजफ्फरपुर: एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम का कहर जिले में करीब 18 वर्ष से जारी है. वर्ष 1995 में जिले के कांटी प्रखंड से इस बीमारी की शुरुआत हुई थी. इस प्रखंड में इस बीमारी से13 बच्चे की मौत हुई थी. कांटी से शुरू हुई बीमारी से पूरा जिला चपेट में आ गया. इसी वर्ष करीब 100 […]

मुजफ्फरपुर: एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम का कहर जिले में करीब 18 वर्ष से जारी है. वर्ष 1995 में जिले के कांटी प्रखंड से इस बीमारी की शुरुआत हुई थी. इस प्रखंड में इस बीमारी से13 बच्चे की मौत हुई थी. कांटी से शुरू हुई बीमारी से पूरा जिला चपेट में आ गया. इसी वर्ष करीब 100 बच्चे की मौत हो गयी. जिले से लेकर पूरे देश में हाहाकार मचा. उस समय भी कई टीमें आयी. लेकिन अचानक वर्ष 1997-98 में बीमारी का प्रकोप थम गया.

फिर वर्ष 1999 से प्रकोप शुरू हुआ. वर्ष 2007 के बाद मौत का आंकड़ा काफी बढ़ने लगा. पिछले तीन वर्षो में मौत का आंकड़ा और अधिक बढ़ गया है. दो वर्ष पहले तक विभाग के फाइल में इसका कोई लेखा जोखा नहीं है. लेकिन अनुमान के तहत 18 वर्षों में दो हजार से अधिक बच्चों की मौत हो गयी है.

बीमारी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही चिकित्सकों की टीम के साथ ही विदेश के चिक्तिसकों की टीम का दौरा भी शुरू हुआ. बैठकों का दौर भी चला. बीमारी की पहचान के लिए लगातार योजनाएं बनती रही. जागरूकता अभियान भी चलाया गया. मंत्री से लेकर बड़े नेताओं का दौरा भी जारी रहा. फिर भी नतीजा सिफर रहा. इस बीमारी का प्रकोप लगातार जारी है. इस वर्ष भी अब तक 103 बच्चे भरती हुए. जिसमें 32 बच्चों की मौत हो गयी. पिछले साल भी 324 बच्चे भरती हुए थे. जिसमें 157 बच्चों की जान गयी थी.

दौरे से जगी थी आशाएं, साबित हुआ कोरम
बीमारी की शुरुआत के कुछ वर्ष विभाग ने इसका कोई नोटिस नहीं लिया. इसका डाटा भी संग्रह नहीं किया गया. लेकिन जब बीमारी का प्रकोप तेज हुआ तो विभाग की आंख खुली. स्वास्थ्य विभाग की कई टीमें आयीं. बच्चों की बीमारी पर राजनीति भी हुई. नेताओं के बयान बीमारी से बचाव के कम, विरोधी पक्ष की खामियों पर केंद्रित हुए. लोजपा प्रमुख रामबिलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, राजद नेता रामकृपाल यादव, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष महबूब अली कैसर सहित कई नेताओं ने दौरा किया था. सभी ने अपनी तरफ से इलाज में सहयोग की बातें कही थी. लेकिन वादा सिर्फ वादा ही रहा.
वर्ष 2012 में बीमारी से बचाव के लिए एक्शन प्लान बना. एनसीडीसी के विशेषज्ञ डा माला के नेतृत्व में जांच दल आया.

बच्चों के इलाज का जायजा लिया गया. एनसीडीसी के विशेषज्ञ डॉ हिमांशु चौहान के नेतृत्व में भी टीम पहुंची. करीब पंद्रह दिनों तक टीम प्रभावित क्षेत्रों में सर्वेक्षण करती रही. इस बीच गांवों में जाकर मच्छर के नमूने भी लिये गये. सुअरों का ब्लड भी लिया गया. लेकिन जांच का नतीजा सिफर रहा. पूणो के एनआइवी से डॉ तांबले के नेतृत्व में विशेषज्ञों की टीम आयी. बीमार बच्चों का सीएसएफ लिया गया. एक बच्चे का ब्रेन टिश्यू लेकर एनआइवी में जांच के लिए भेजा गया. लेकिन किसी वायरस की पुष्टि नहीं हुई.

इस वर्ष एनसीडीसी की टीम अप्रैल में पहुंची थी. टीम यहां से वर्ष 2012 का डाटा एकत्र कर वापस गयी. मई में डॉ माला व डॉ रविशंकर के नेतृत्व में टीम फिर पहुंची. बीमार बच्चों का फिर सीएसएफ लेकर दिल्ली भेजा गया है. सीडीसी की विशेषज्ञ डॉ पद्मिनी ने भी आकर बच्चों का जायजा लिया. एक सप्ताह पूर्व एनसीडीसी के संयुक्त निदेशक डॉ सोमनाथ कर्माकर यहां पहुंचे. वे बीमार बच्चों के इलाज का मुआयना कर रहे हैं. लेकिन बच्चों की बीमारी के बारे में अब तक कुछ ज्ञान हीं हो सका.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें