मुजफ्फरपुर : कारगिल के द्रास सेक्टर में बिहार रेजिमेंट के जवान कुढ़नी के माधोपुर सुस्ता निवासी शहीद प्रमोद कुमार भी शहीद हुए थे. मातृभूमि की सेवा के बाद वे अपनी अपनी मां की सेवा करना चाहते थे, लेकिन उनका यह अरमान पूरा नहीं हो सका. मां दौलती देवी की आखें आज भी नम हैं, चेहरे पर उदासी साफ झलकती है.
आवाज में भी वह बात नहीं है, लेकिन, हिम्मत व धैर्य बरकरार है. कहती हैं कि बेटा खोने का दर्द आज भी सीने में है, पर खुशी है कि वह देश के लिए शहीद हो गया. 30 मई 1999 को द्रास सेक्टर में साथियों को खोजने गये जवान प्रमोद का पार्थिव शरीर 38 दिनों के बाद बर्फ के बीच से मिला था.
प्रमोद चार भाई थे. इनमें के तीन श्याम किशोर, प्रमोद कुमार व दीपक कुमार देश सेवा में ही थे. श्याम कहते हैं कि हम तीन भाई सेना में ही थे. किसी को भी मातृभूमि पर न्योछावर होने का मौका नहीं मिला. यह सौभाग्य प्रमोद को ही मिला. उसकी शहादत से गर्व महसूस होता है.
प्रमोद की शहादत के बाद श्रद्धा के फूल चढ़ाने आयीं तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने जो घोषणाएं कीं, उनमें से कई अभी पूरी नहीं हुई हैं. माधोपुर मध्य विद्यालय को उच्च विद्यालय में करने व उसका नाम शहीद प्रमोद के नाम पर करने की घोषणा आज तक अमल में नहीं आ पायी. माधोपुर चौक तक जाने वाली सड़क का नाम शहीद प्रमोद पथ नहीं हो पाया.