मुजफ्फरपुर: पवित्र माहे रमजान सबसे पवित्र महीना है. यह महीना अल्लाह के नाम करने से बंदों पर रहमत की बारिश होती है. खुदा बंदों की हर ख्वाहिश पूरी करता है. माहे रमजान शब्द रम्ज से लिया गया है. जिसका अर्थ होता है छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की अत्यधिक गरमी. माना जाता है कि इसी महीने में पवित्र कुरआन नाजिल हुआ था.
यह इबादत का महीना है. मौलाना सबा अशरफी कहते हैं कि माहे रमजान का पवित्र महीना, खुदा का महीना, कुरान के उतरने का महीना व सबसे सम्मानजनक महीना है.
इस महीने में आकाश व स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं व नरक के द्वार बंद हो जाते हैं. इस महीने में संत की उपासना, जिसे शबे कद्र के नाम से जाना जाता है. एक हजार महीनों की उपासना से बढ़ कर है. इस महीने रोजा रखने वालों का कर्तव्य खुदा की उपासना करना है. इस वर्ष भी माहे रमजान हमारे हमें असीमित कृपा का पात्र बनाने आया है. माहे रमजान जीवन के दिनों व संतों के मानवीय क्षणों के साथ हमारा साथी बनता है व फिर कुछ ही समय के पश्चात हमसे अलग हो जाने के लिए जल्दी करने लगता है. माहे रमजान के महीने में हम खुदा से अधिक निकट होने का आगाज करने लगते हैं.
माहे रमजान के महीने में हम यदि आत्ममंथन करे तथा ईश्वरीय अनुकंपाओ की छाया में आत्मनिर्माण करें तो निसंदेह, हमारा जीवन परिवर्तित हो जायेगा. ईश्वर की खोज में रहने वालों के लिए रमजान का पवित्र महीना एक स्वर्णिम अवसर है.