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चावल धुलते देख कटोरा लेकर घूमने लगते हैं बच्चे

मुजफ्फरपुर : रामबाग डायट स्थित बाढ़ राहत शिविर. दोपहर के 12 बजे थे. बरामदे में किनारे पर बैठकर एक व्यक्ति चावल धो रहा था. जब तक चावल धोकर चूल्हे पर उबल रहे पानी में डालता, परिसर में दर्जनों बच्चे कटोरा लेकर घूमने लगे. चावल पकने तक रसोईघर के सामने अच्छी-खासी लाइन लग गई थी. सबके […]

मुजफ्फरपुर : रामबाग डायट स्थित बाढ़ राहत शिविर. दोपहर के 12 बजे थे. बरामदे में किनारे पर बैठकर एक व्यक्ति चावल धो रहा था. जब तक चावल धोकर चूल्हे पर उबल रहे पानी में डालता, परिसर में दर्जनों बच्चे कटोरा लेकर घूमने लगे. चावल पकने तक रसोईघर के सामने अच्छी-खासी लाइन लग गई थी. सबके हाथ में बर्तन. सबकी नजर चूल्हे की ओर. करीब घंटाभर तक चले इस इंतजार का अंत हुआ और किचेन के सामने ही सबको दाल, भात व सब्जी बंटने लगी. उस वक्त तक लाइन में बच्चों के साथ बड़े लोग भी लग गए थे. एक ही लाइन में पुरुषों व महिलाओं के साथ बच्चे भी थे.

बारी-बारी से अपना खाना लेकर वे चहकते हुए बाहर निकल रहे थे, मानो कोई बड़ी सौगात हाथ लग गयी. कमोबेश यही हालात सभी राहत शिविरों की है. दिन का खाना दोपहर 12 बजे के बाद व रात का खाना 10 बजे के बाद मिलता है.

लाइन में लगे 10 साल के रियाज का कहना था कि सुबह में भूख लग जाती है. रात का भात बचा था, वही खाए हैं. रात में खाना मिलता है तब तक सो जाते हैं. परिसर में पेड़ के नीचे एक कटोरा में चावल व दूसरे में दाल लेकर बैठी आठ साल की नूरजहां खाने पर ही टकटकी लगाये थी. बोली, खाना लेकर आ आई. छोटा भाई आ रहा है तो दोनों साथ में खाएंगे. खादी भंडार स्थित राहत शिविर में शरण लिए बुजुर्ग पानमती देवी का कहना है कि कई साल से सुगर से परेशान हैं. घर छोड़ने के बाद शिविर में रोज सुबह-शाम चावल व आलू-चना की सब्जी मिल रही है. डॉक्टर ने मना किया है लेकिन क्या करें. कई दिनों से दवा भी बंद है. सबकुछ बिखरा हुआ है, तो डॉक्टर के पास कौन लेकर जायेगा. दवा भी खत्म हो गई है.

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